बहुत से लोगो को शायद ये लगता है क़ि हमें केजरीवाल जी से कोई निजी समस्या है, तो ऐसे लोगों को बता दूँ क़ि आप लोग गलत सोच रहे हैं। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, 2015 में जब केजरीवाल ने दिल्ली में एकतरफा जीत हासिल की थी तब, इस बात को भूलकर क़ि केजरीवाल ने इससे पहले भ्रष्टाचार में लिप्त कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, हम लोगों ने केजरीवाल को बधाई दी और पूरा विश्वास भी जताया था क़ि अब दिल्ली की सूरत शायद बदलेगी। उसके बाद में जो कुछ हुआ वो सबको पता है और जिस तरह से लोगों का केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से भरोसा उठा उसके लिए कोई और नहीं बल्कि केजरीवाल स्वयं ही जिम्मेदार है।
वैसे तो केजरी जी और आम आदमी पार्टी का पर्दाफाश करने के लिए मुद्दों की कोई कमी नहीं है लेकिन अभी गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई मतलब नहीं बनता। हाल ही में हुए गोवा और पंजाब चुनाव में जनता ने केजरीवाल को उसकी असली जगह दिखाते हुए ये बता दिया है क़ि जनता को बार बार बेवकूफ बनाना कोई आसान काम नहीं है।
गोवा और पंजाब में मिली करारी हार ने अरविन्द जी और आम आदमी पार्टी के बड़े चाटुकारों को हिला कर रख दिया और जैसे की उम्मीद थी, पूरे के पूरे ‘आप’ कुनबे ने उलटे सीधे बयान देना शुरू कर दिया।
गोवा में 40 में से 39 सीटों पर आप पार्टी के उम्मीदार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। ऐसा ही कुछ हाल पंजाब में भी हुआ जहाँ आप पार्टी के लोग और खुद केजरीवाल 100 से ज्यादा सीटे जीतने का दम्भ भर रहे थे, लेकिन यहाँ पर भी जनता ने केजरीवाल जी को आइना दिखाने का काम बखूबी किया। अब अपनी हार का ठिकरा किसी के ऊपर तो फोड़ना ही था, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न था क़ि किसके ऊपर ? कुछ समझ में ना आने के बाद, जब मायावती ने EVM मशीन से छेड़छाड़ का एक तर्कहीन मुद्दा उठाया, केजरीवाल और उनके साथियों को जैसे ऑक्सीजन सी मिल गई।
इससे पहले की अरविन्दऔर मायावती के द्वारा EVM से छेड़छाड़ के आरोपो की समीक्षा की जाए, यह जानना बहुत जरुरी है क़ि:
2007 में जब मायावती की उत्तर प्रदेश में और 2015 में केजरीवाल की दिल्ली में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी तब भी चुनाव में EVM का ही प्रयोग हुआ था लेकिन उस समय दोनों में से किसी ने भी EVM से छेड़छाड़ वाला ऐसा कोई भी मुद्दा नहीं उठाया था।
क्या कारण हो सकता है की आज जनता द्वारा इतनी बुरी तरह से फटकारे जाने के बाद में इन दोनों को ही EVM से इतनी समस्या हो गई ?
यह मेरा निजी विचार है क़ि, मायावती के ज्यादातर समर्थक तकनीक की जानकारी लिये बगैर इस बात को उठा रहे हैं। इसलिए मायावती जी को भी को लगता है कि वो जो भी बात बोलेंगी, उनके समर्थक उनका भरोसा करेंगे। ये भी एक कारण हो सकता है क़ि मायावती जी ने दलितों के विकास और उत्थान के लिए कभी भी कोई सशक्त प्रयास नहीं किया। ये तो हो गई मायावती की बात, अब आते है सबके चहेते, खुद को अति समझदार और ईमानदार समझने वाले माननीय श्री अरविंद केजरीवाल जी की तरफ।
केजरीवाल जी IIT पढ़े हैं, तो संभवतः उन्हें भी अच्छे से पता होगा क़ि EVM से छेड़छाड़ के सारे आरोप बेबुनियाद हैं। अगर आपको नहीं पता तो बता दूँ, केजरीवाल ने अपने कार्यकर्ताओं को हर एक मतगणना केंद्र के बाहर कैमरा लेकर चौकसी में लगा दिया था। चुनाव आयोग पर इतना अविश्वास शायद ही किसी पार्टी ने कभी किया होगा। इतना सब कुछ करने के बाद भी केजरीवाल अगर EVM से छेड़छाड़ का आरोप लगाते है तो या तो खुद को महा ज्ञानी या फिर जनता को महामूर्ख समझते है | EVM से छेड़छाड़ का आरोप लगाने के पीछे केजरीवाल का एक मतलब और भी है। दिल्ली में अगले महीने MCD के चुनाव होने वाले हैं और केजरीवाल को इसमें अपनी हार सुनिश्चित लग रही है। चुनाव आयोग ने EVM से ही वोटिंग कराने का फरमान भी जारी कर दिया है , अब ऐसे में हार का ठीकड़ा फोड़ने के लिए एक निर्जीव वस्तु से ज्यादा उपयुक्त और क्या हो सकता है। EVM मशीन पर केजरीवाल कितने भी आरोप लगा ले, मानहानि का मुक़दमा तो दर्ज होने से रहा।
वैसे तो इस मुद्दे पर लिखने को बहुत कुछ है, मसलन केजरीवाल ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में EVM से छेड़छाड़ के जो तथ्य रखे हैं उन्हें सुनने के बाद कोई अच्छा खासा आदमी भी बीमार हो जाए। और मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता की मेरे पाठकों को किसी भी ऐसी पीड़ा से गुजरना पड़े।