कश्मीर भारत का नंदनवन है, माँ भारती के सर का मुकुट है और धरती का स्वर्ग है, हमने तो कश्मीर के बारे में यही सुना है। पर आज जो कश्मीर में हालात है ऐसे स्वर्ग की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। अभी हाल ही की बात ले लीजिये बडघाम मुठभेड़ के दौरान आतंकियों को बचाने के लिए स्थानीय लोगो ने जवानो पर ही पत्थरबाजी शुरू कर दिया, ये निंदनीय ही नही घृणास्पद भी है, कम से कम ये तो सोचा होता के अरे ये वही लोग है जिनपे हम पत्थर बरसा रहे है जिन्होंने कश्मीर बाढ़ के वक़्त अपनी जान पर खेलके एक एक आम नागरिक की जान बचाई थी । हमारे जवानो को शौक नही है अपने परिवार से दूर रह कर उन लोगो की रक्षा करने का जो उनपे पथराव करते है, पर फिर भी वो लोग अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे है।
कौन करवाता है आखिर कश्मीरियों से पत्थरबाजी?
और जिस पाकिस्तान की पैरवी ये तथाकथित कश्मीर के भटके हुए लोग करते है, वो देश इनसे पाँच सौ- पाँच सौ रुपयो में अपने ही जवानो पे पत्थर फिकवा रहा है, जबकि इनके खुद के देश में बुनयादी सुविधाओ के भी लाले है।
ऐसे में सेनाप्रमुख बिपीन रावत जी का बयान आया है के “आगे से सेना के कार्यवाही के बीच जो भी आएगा उसे भी आतंकी की तरह ही समझा जायेगा और उसके साथ वैसा ही सुलूक किया जायेगा जैसा किसी आतंकी के साथ करते है”, मेरी समझ में रावत साहब जैसे अधिकारी को लाने में हमने थोड़ी देर ही कर दी उन्हें बहुत पहले सेनाप्रमुख का पद देना चाहिए था क्योंकि जिस तरीके की बात वो कर रहे है आतंकी समर्थको से निपटने का वो एकदम उचित और सटीक तरीका है। मै व्यक्तिगत रूप से रावत साहब के इस बयान का समर्थन करता हूँ। अभी कुछ दिन पहले भी रावत साहब ने ऐसा ही कुछ बयान दिया था, तब देश के सारे तथाकथित बुद्धिजीवी एक सुर में रावत साहब का विरोध करने लगे, कहने लगे की वो पत्थरबाज और आतंकी समर्थक भी इसी भारत के बेटे है, इसी माँ भारती की संताने है, उनसे ऐसा व्यवहार उचित नहीं। हलाकि मै भी ये मानता हूँ क़ि वो भटके हुवे कश्मीरी इसी माँ के बेटे है, पर जब बेटे का हाथ माँ का आंचल खीचने लगे तो दूसरा बेटा यूँ ही शांत तो नहीं बैठा रहे सकता ना, ऐसे वक्त में माँ पे बुरी नजर डालने वाले को समाप्त करना न्यायसंगत भी है और धर्म भी।
मेरा सवाल है उन बुद्धिजीवियो से जो पत्थरबाजो की पैरवी करते है, जिस तरह आपको पैलेट गन से घायल हुवे युवा एक हफ्ते में ही दिख गए उसी तरह आपको सालो से उन पत्थरबाजो के पत्थर झेल के लहूलुहान होकर भी अपने कर्तव्य से टस से मस न होते जवान क्यों नहीं दिखे ?
आज जो लोग ये कहे रहे है के बेरोजगारी और सुविधाओ की कमी की वजह से लोग पत्थर फेकने जैसा काम करते है वो उस बेरोजगारी और सुविधाओ की कमी का कारन क्यों नहीं तलाशते ?
क्या कश्मीर में पत्थरबाजी जैसी घटनाये ही उसका एक कारण नहीं है?
क्या ये हास्यास्पद नही है के जिन घटनाओ का समर्थन आप कुछ चीजो की कमतरता होने की वजह बता रहे है, उन चीजो की कमतरता का कारण ही वो समर्थित घटनाये है ? कश्मीर जैसी सुहानी जगह का मुख्य आय स्त्रोत पर्यटन ही हो सकता है, ऐसे हालात में जहा कभी भी कही भी पत्थरबाजी हो सकती है ऐसी जगह कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो कोई क्यों जायेगा वहाँ घूमने।
कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी से जुड़ा एक और मुद्दा जो काफी महत्व्पूर्ण है वो है वहा के अलगाववादी। चाहे सय्यद अली शाह गिलानी हो या यासीन मलिक, ये बात तो छुपी नहीं है के ये सब ISI के प्यादे है जो पाकिस्तान के इशारो पे काम करते है। इन्हें कश्मीर और वहाँ की जनता से कुछ लेना देना नहीं है, इतना ही नहीं इन सब के सारे नजदीकी रिश्तेदार पश्चिमी देशो में आराम से रहते है, और ये कश्मीरी युवाओ से पत्थरबाजी करवाते है, कभी देखा है इन लोगो के बेटे या बेटीयों को पत्थरबाजी करते हुवे, नहीं ना, आप देख भी नहीं पाएंगे क्योंके वो कभी वहाँ होते ही नहीं। इन कश्मीरी युवाओ को भटकाने और उनसे पत्थरबाजी जैसी घृणात्मक हरकते करवाने काम यही लोग करवाते है। भारत सरकार को चाहिए के इन्हें मिलने वाली सारी सरकारी सुविधाये तत्काल रूप से बन्द करा दे और इन लोगो की हरकतों पे बारीक़ नजर रखी जाये।
एक बात तो तय है कोई कितनी भी कोशिश कर ले कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसे भारत से कोई जुदा नहीं कर सकता, हाँ थोड़े हालात सुधर जाये तो और बहेतर होगा।