18 मार्च 2017। वर्षों बाद उत्तर प्रदेश के राजनैतिक सरजमीं पर राष्ट्रवादी राजनीति का सूरज खिल उठा था, जब विजेता दल, भारतीय जनता पार्टी ने सर्वसम्मति से गोरक्षनाथ पीठ के महंत और प्रखर हिंदूवादी एवं राष्ट्रवादी नेता, श्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ को सिर आँखों पर बिठाते हुये भाजपा के विधायक दल का नेता, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर चुना, और वंशवाद और जातिगत और धर्मयुक्त भेदभाव से ऊपर उठते हुये एक नए, सुदृढ़ उत्तर प्रदेश की नींव रखी।
हाँ भैया, हम भी जानते हैं की तबसे कितना करुण विलाप हो चुका योगी आदित्यनाथ जी के मुख्यमंत्री बनने पर। उनकी कार्य नीति पे कम, उनके अस्तित्व पर ज़्यादा कीचड़ उछालने में दोनों मीडिया और राजनेता व्यस्त हैं। कोई यह नहीं देखेगा की कार्यकुशलता और अनुशासन के कैसे नए और कड़े आयाम योगी जी स्थापित करे जा रहे हैं, पर ये ज़रूर देखेंगे की इनकी लालच की अनंत जीभ को चस्का लगाने के लिए इनका स्पेशल टुंडे कबाबी मौजूद है की नहीं।
पर मज़ाक के अलावा, 5 जी की रफ्तार से भी तेज़ी से कार्य निपटने में कुशल योगी आदित्यनाथ एक ऐसे पथ पर अग्रसर हो रहे हैं जिस पर चलने की हिमाकत बहुत कम भारतीय राजनेताओं ने की है, और वो है अध्यात्मिक प्रगति। धर्मनिरपेक्ष राज्य का सपना पालने वालों के मस्तिष्क में ऐसी गूढ बात नहीं घुसने वाली, तो वो इस लेख से अपनी उचित दूरी बना सकते हैं।
आध्यात्मिक प्रगति माने क्या? माने की सिर्फ भौतिक सुविधाओं से अपने आप को लैस न करे, बल्कि अपने अंतरात्मा की आवश्यकताओं को भी समझें और उसे प्राप्त करने की भी ज़िम्मेदारी निभाए। चाहे वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र हो, या कर्मयोगी श्रीक़ृष्ण, या सिख पंथ के वीर योद्धा, जैसे गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिन्द सिंह इत्यादि, इन्होने हर कदम पर यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, कि आप चाहे कितनी आर्थिक प्रगति, यदि आप आध्यात्मिक प्रगति नहीं करते हैं, तो आपकी आर्थिक प्रगति विनाश के समय आपकी रक्षा नहीं कर सकेगा।
1947 के भयानक विभाजन और 1990 के वीभत्सकारी कश्मीरी नरसंहार ने हमें सचेत करने की कोशिश भी की, पर वो क्या है न, हम भारतीयों की बड़ी खराब आदत है, जब तक मुसीबत सर पर चढ़कर नाचने न लगे, तब तक हम उस मुसीबत से लड़ने की छोड़ो, उसकी तरफ मूंह तक नहीं ताकते।
पर योगी आदित्यनाथ कौन सी आध्यात्मिक प्रगति की तरफ ध्यान खींच रहे हैं?
किसी ने सत्य ही कहा है, कोई मुल्क तब तक नहीं विनाश की तरफ बढ़ता है, जब तक वह अपने इतिहास, अपने संप्रदाय, और अपने संस्कृति से विमुख न हो। ऐसा क्यूँ होता है कि सारे संयम हम ही बरतें, और जिनहे संयम बरतना चाहिए, वो बेतरतीब हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता का मखौल उड़ाए, और उसकी हत्या करने कि खुली चुनौती दे? कहने को विकास और पंथनिरपेक्षता ही दो रास्ते हैं, जिससे देश दिन दोगुनी, चहुमुंखी प्रगति कर सकता है, पर वो विकास ही क्या, जो आपको आपके ही प्रांत या देश में एक अजनबी कि तरह महसूस कराये। कैराना के ज़ुल्म भूल गए हैं या याद दिलाऊँ? याद है कैसे दादरी तहसील के बिसहदा गाँव के एक उपद्रव को पूरे भारत के जनमानस से जोड़कर हमारी सभ्यता को अपमानित किया गया था?
जो लोग यह सोच रहे हैं की अवैध बूचड़खानों पर त्वरित कारवाई और लड़कियों से छेड़छाड़ कि घटनाओं पर रोक लगाने के लिए योगी आदित्यनाथ के कदम अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता का घोर हनन है, उनके दोगलेपन पर भी थोड़ा प्रकाश डालता हूँ। अभी कुछ ही हफ्तों पहले किसकी सरकार थी? क्या तब पूर्व मुख्यमंत्री के शासन में महिला सशक्तिकरण सातवें आसमान पर था? क्या बूचड़खानों में जानवरों के साथ में प्रेम और वात्सल्य कि भावनाएँ दिखाई जाती थी?
ये सारा विलाप सिर्फ इसलिए है, क्योंकि मुख्यमंत्री केसरिया चोला पहनता है, और इनके शास्त्रों के अनुसार आप कुछ भी कर सकते हो, पर सनातन धर्म का महिमा मंडन नहीं। जो योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं, वो आध्यात्मिक प्रगति नहीं तो क्या है? जात पात, मजहब और रूढ़िवाद के दायरों से उठ कर, निडर होके अपनी सभ्यता को गले लगा कर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाना ही आध्यात्मिक प्रगति का मुख्य स्त्रोत है।
अगर इससे भारत के कथित उदारवादियों और बुद्धिजीवियों को मिर्ची लगी है, तो हम का करें भाई? सबका साथ, सबका विकास, अगर आध्यात्मिक प्रगति नहीं है तो क्या है?
आध्यात्मिक प्रगति के प्रणेता विवेकानन्द जी ने ही भगवदगीता से प्रेरित हो कर कहा था, कि ‘अपने धर्म और आचरण से विमुख व्यक्ति कभी भी प्रगति नहीं कर सकता’। यश तो भारतीय राजनीति में बहुतों ने कमाया है, खास कर उत्तर प्रदेश कि जटिल राजनीति में अपना उल्लू सीधा कर, पर योगी आदित्यनाथ जैसे आध्यात्मिक प्रगति कि तरफ बढ्ने वाले कुशल राजनीतिज्ञ उत्तर प्रदेश को छोड़िए, सम्पूर्ण भारत में बिरले ही देखने को मिले है। ये तो समय ही बताएगा कि योगी जी द्वारा किए गए कार्यों का उत्तर प्रदेश के चेहरे पर और भारत कि प्रगति में कितना अंतर लाएगा, पर आध्यात्मिक प्रगति को विकास के साथ कदम से कदम मिलकर चलाने पे प्रतिबद्ध करने वाले योगी आदित्यनाथ ने आने वाले भविष्य के भारत के लिए एक उज्ज्वल मिसाल कायम की है। आशा करता हूँ की वर्तमान राजनेता अपने संकीर्ण सोच और धर्मनिरपेक्षता के आडंबर से ऊपर उठ कर आध्यात्मिक प्रगति को अपनाएँ, यदि वे वास्तव में भारत के उन्नति के हितैषी है।