गौतम गंभीर ने सच क्या बोल दिया, वामपंथी उनके जान के पीछे ही पड़ गए

गौतम गंभीर

कश्मीर घाटी में सीआरपीएफ़ के जवान के साथ हुई अमानवीय बदसलूकी की अग्नि अभी ठंडी भी नहीं हुयी, की मशहूर क्रिकेटर और मौजूदा आईपीएल में कोलकाता नाइटराइडर्स टीम के कप्तान, गौतम गंभीर के दो ट्वीट ने मानो सोश्ल मीडिया और भारतीय जनमानस में भूचाल ला दिया। निम्नलिखित ट्वीट श्री गंभीर ने किए थे:- गौतम गंभीर

इन ट्वीट्स से एक बात साफ है, कभी विश्व कप 2011 दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले गौतम गंभीर के मन मैं न सिर्फ आतंकवादियों के प्रति आक्रोश है, पर अपनी धरती माँ की रक्षा करने वालों के लिए अटूट श्रद्धा भी है, जो ऐसी विधाओं से संबंध रखने वाले भर्तियों में कम ही देखने को मिलता है। पर अब समय बादल रहा है। अकेले गौतम गंभीर ही नहीं ऐसी सोच रखते, कभी उनके उम्दा जोड़ीदार रहे, विस्फोटक बल्लेबाज़ वीरेंद्र सेहवाग ने भी कुछ ऐसे ही विचार जवान से बदसलूकी की घटना के मद्देनजर रखे।

 

आश्चर्यजनक रूप से ये वही गौतम गंभीर हैं, जिनहोने तथाकथित रामजास कॉलेज में हुये हिंसा के तत्पश्चात छद्म उदारवादी और अपने सैन्य रिश्तों का गलत इस्तेमाल करने वाली छात्रा गुरमहर कौर के अभिव्यक्ति की आज़ादी की वकालत की थी। ऐसे में कश्मीरी आतंकवादियों के प्रति इनका गुस्सा जहां हमें चौंकने पर मजबूर करता है, वहीं पर कथित लिब्रल बिरादरी के दोगलेपन को भी उजागर करता है। पर उनके बारे में बाद में।

शायद अपने दूसरे ट्वीट में गौतम गंभीर ने भारत के पवित्र तिरंगे का एक ऐसा रूप भी दिखाया है, जिसे या तो कई लोगों ने देखा, या फिर देखने की शक्ति नहीं रखते। क्या तिरंगे के और भी रूप हैं। अगर गंभीर जी के शब्दों की गहराई को समझा जाये, तो हाँ, तिरंगे का सिर्फ एक रूप नहीं होता, जैसे की कम्यूनिस्ट सोच से प्रदूषित हमारे देश के कथित बुद्धिजीवी हमारे भोले बच्चों और युवा पीढ़ियों में भरते आए है और ऐसे जारी रखने की हिमाकत भी करना चाहते है।

हमारे कथित बुद्धिजीवियों के अनुसार, तिरंगे के तीन रंगों के निम्नलिखित भाव है:-

पर क्या तिरंगे के और भी रूप होते है? अगर गंभीर के शब्दों और वर्तमान भारत की युवा पीढ़ी के अंदर उमड़ती हुई ज्वाला को देखा है, तो हाँ, इस तिरंगे का एक रौद्र रूप भी है, जो सिर्फ देश की तरफ गलत नीयत से आँख उठा कर देखने वालों के लिए है, और जिसे गौतम गंभीर ने अक्षरश अपने ट्वीट में व्यक्त किया है। जिस आक्रोश को अब तक हमारे देश के कथित बुद्धिजीवी नहीं भाँप पाये हैं, उसे इतनी सरलता से गौतम गंभीर ने एक छोटे से ट्वीट में उकेर दिया।

हमारे हिन्दी भाषियों की सुविधा अनुसार गौतम गंभीर के ट्वीट का तात्पर्य:-

भारत विरोधी ये शायद भूल गए है की हमारे तिरंगे में केसरिया का अर्थ हमारे क्रोध की अग्नि, सफ़ेद जिहादियों की कफन, और हरा आतंक के प्रति हमारी नफरत का स्वरूप है।

अब ज़ाहिर सी बात है, ऐसा रौद्र रूप हमारे देश के दुश्मनों के तलवे चाटने वाली चाटुकार मीडिया को तो कतई रास नहीं आने वाला। सो हुआ भी वही। कई स्वघोषित कश्मीर के पालनहार जहां गौतम गंभीर को उपदेश देने लगे, वहीं उदरवादी पत्रकारों [अनाधिकारिक रूप से भारत कि कुख्यात आज़ादी ब्रिगेड] के कुख्यात प्रहरी, राणा अय्यूब और सागरिका घोसे ने तो देशद्रोह का मुकदमा तक चलाने की अपील कर डाली। यकीन नहीं होता तो खुद ही देख लीजिये।

कभी कभी इन देशद्रोहियों से मैं खुद पूछना चाहता हूँ : क्या देश का गुणगान या देश की रक्षा करना एक गुनाह है, कि जो भी देशहित में बोले, वो गलत, और जो भारत के टुकड़े करने कि धम्की दे, जो भारत को फिर से विदेशियों का ग़ुलाम बनाने के सपने दिखाये, वो हमारा नायक, हमारा पालनकर्ता और न जाने कौन कौन सी उपाधियाँ मिले उन्हे? अगर एक गौतम गंभीर जिहादियों को ललकारे, चाहें वो किसी भी प्रकार के हों, तो वो गुनहगार, पर एक देशद्रोहीन गुरमहर, जो उन जिहादियों कि आवाज़ बने, उनका साथ दे अपने पिता के अमर बलिदान को कलंकित करे, तो वो नायिका? इनकी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, और हमारी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता गुनाह और पाप? ऐसे लोगों कि दलीलें सुन तो कभी गीतकार इरशाद कामिल के बोल अनायास ही निकाल पड़ते हैं:-

“ …..मैं सही समझ के, जो भी बोलूँ, तुम कहते हो गलत,

मैं गलत तो फिर कौन सही………

मर्ज़ी से अपने जीने कि मैं, क्या तुम सबको अर्ज़ी दूँ,

मतलब कि तुम सबका मुझ पर, मुझसे भी ज़्यादा हक़ है…..’

और कोई चाहे कुछ भी कहे, पर गौतम गंभीर के तीखे बोल ने एक बात तो साबित कर दी, की अब युवा भारत जग सी है, नज़रअंदाज़ करना बंद करे, वरना एक सैलाब ऐसा आएगा, जो भारत का पुनर्निर्माण ज़रूर करेगा, पर किसी भी देशद्रोही या देश के दुश्मन को नहीं छोड़ेगा। अब भी वक़्त है, कायदे में रहोगे, तो फायदे में रहोगे।

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