रामनवमी के पावन पर्व पर ममता बनर्जी का घृणित बयान

ममता बनर्जी

हमारे देश सेक्युलर नेताओं में एक होड़ लगी है ही कि जो सबसे ऊँचे स्वर में छद्म धर्मनिरपेक्ष बातें करेगा वही मुसलमानों का सब से बड़ा नेता होगा, वही मुसलमानों का सच्चा हमदर्द होगा और वही इस देश में सब से बड़ा सेक्युलर नेता कहलाएगा। आज कल इस दौड़ में पश्चिम बंगाल कि मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी सबसे आगे चल रही हैं। अभी फिलहाल ही उन्होंने रामनवमी को लेकर जो बयान दिया है उस के कारण वो सेक्युलर नेताओं की टॉप टेन की लिस्ट में नंबर एक पर आ गई हैं। उन्होंने कहा है कि “राम नवमी धार्मिक दंगे फ़ैलाने का त्यौहार नहीं बल्कि प्यार और सौहार्द का त्यौहार है।”

राम नवमी का जो सच्चा अर्थ आज ममता बनर्जी ने हमें समझाया है पूरा हिन्दू समाज उसके लिए सदैव उनका आभारी रहेगा। अब ममता बनर्जी की धर्मनिरपेक्षता पर कोई शक नहीं किया जा सकता। उनके वर्तमान मुख्मंत्री पद के कार्यकाल में उनके द्वार लिए गए फैसले इस बात को और पुख्ता करते हैं कि वो इस समय भारत कि सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्ष नेता है। यकीं नहीं आत तो उदाहरण के तौर पर इन आंकड़ो पर ही नज़र दौड़ा लीजिये।

ममता बनर्जी ने 2017-2018 के बंगाल बजट में जितना पैसा बड़े उद्योगों, छोटे और माध्यम उद्योगों, टूरिज्म इंडस्ट्री, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी आदि सभी को मिला कर आबंटित किया है उस से कहीं ज्यादा पैसा उन्होंने माइनॉरिटी अफेयर्स (अल्पसंख्यक मामलों) व मदरसा शिक्षा को आबंटित किया है। माइनोरिटी अफेयर्स और मदरसा एजुकेशन को मिला है रु 2815 करोड़ और बाकि उपरोक्त बताए गए सभी मंत्रालयों को कुल मिला कर मिले हैं 2154 करोड़ रुपए। यहाँ तक कि सिंचाई विभाग को भी कुल मिला कर 2410 करोड़ रुपए मिले हैं जबकि इस विभाग के कामों से बंगाल कि 100% जनता को सरोकार होता है तब भी 30% की दबी, कुचली व शोषित मुस्लिम जनता कि शिक्षा (वो भी केवल मदरसों द्वारा) के लिए इस से ज्यादा पैसा आबंटित करना इनके उदार व करुणामयी हृदय को दर्शाता है।

ममता बनर्जी जी को लगता है कि बहुसंख्यक अपने अराध्य का नाम ले कर अल्पसंख्यकों को डराते हैं। इसीलिए उन्होंने कुछ ऐसे निर्णय लिए जिस से बहुसंख्यक हिन्दू ऐसा न कर सकें। जैसे कि इन्द्रधनुष के लिए सदियों से चला आ रहा बंगाली शब्द होता था “रामधोनु”। इस शब्द में आप साफ़ तौर पर राम का नाम देख सकते हैं। जो कि धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। जब भी ठंडी फुहार के बाद बंगला भूमि पर कभी इन्द्रधनुष दिखाई देता था तो वहां के अल्पसंख्यक डिप्रेशन में आ जाते थे क्योंकि अब यही शब्द बंगाल कि मुसलिम जनता को भी बोलना पड़ता था। ऐसे अंधकारमय युग से बहार निकालते हुए सबकी प्यारी ममता दीदी ने “रामधोनु” को बदल कर “रोंगधनु” कर दिया। अब वहां कि मुस्लिम जनता अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस कर रही है।

लेकिन वो कहते हैं न कि सच्चे व्यक्ति के अनेको दुश्मन होते हैं। ममता बनर्जी के इस धर्मनिरपेक्षी मुहीम को बार बार न्यायलय के कठोर और संकुचित फैसलों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए दुर्गा पूजा पर लगाए उनके बैन को ही ले लीजिये। पिछले वर्ष कि दुर्गा पूजा अल्पसंख्यक मुसलिमों के त्यौहार मुहर्रम से एक दिन पहले थी। लेकिन ममता बनर्जी जी ने दुर्गा मूर्ति विसर्जन का समय शाम 4 बजे तक का ही सुनिश्चित कर दिया था। ताकि अगले दिन जब ताजिया निकले तो सड़कों पर फैले पिछले दिन के फूल, गुलाल, रोली आदि को देख कर कहीं अल्पसंख्यकों का दिल न बैठ जाए। ऐसे में वो कैसे अपने त्यौहार को मना सकते हैं। लेकिन शायद न्यायालयों में बैठे तंगदिल न्यायाधीश, मुख्यमंत्री के इस दूरदर्शी कदम को समझ न सके और इस फैसको ले पर रोक लगा दी।

उसी तरह जब जनवरी में मकर सक्रांति के अवसर पर आरएसएस के मुखिया श्री मोहन भगवत जी कोलकता आ कर एक भड़काऊ व धर्मौन्मादी रैली करना चाहते थे तब भी प्रशासन ने इज्जाज़त नहीं दी थी। परन्तु फिर संकुचित सोच के न्यायव्यवस्था ने प्रशासन के इस धर्मनिरपेक्ष फैसले को निरस्त कर दिया था। ऐसा एक बार नहीं कई बार हो चूका है। क्या यही है एक धर्मनिरपेक्ष देश की न्याय व्यवस्था?

चलिए कटाक्षपूर्ण शैली को दरकिनार करते हुए कुछ गंभीर सवाल पूछते हैं।

कहा जाता है कि “बंगाल जो आज सोच रहा है वो हिंदुस्तान कल सोचेगा” अब यहाँ कोई शंका बाकि नहीं रह जाती कि बंगाल इस वक्त क्या सोच रहा है। क्या बंगाल में रह रहे बहुसंख्यक हिन्दुओं को दोयम दर्जे के नागरिक बना कर मुख्यमंत्री जी ने सेकुलरिज्म को पुनः परिभाषित नहीं किया है? क्या हिंदुस्तान में सेकुलरिज्म / धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल एक धर्म का तुष्टिकरण मात्र नहीं रह गया है?

आज भी ममता बनर्जी जी ने हिन्दुओं के एक अति महत्वपूर्ण त्यौहार के मौके पर हिन्दुओं की मंशा पर संदेह किया है। क्या हिन्दू सिर्फ इसलिए त्यौहार मनाते हैं कि मौका पा कर दंगा कर सकें? क्या ऐसा कोई उदाहरण इसिहस में मिलता है?

बंगला भाषा में एक कहावत कही जाती है “बोरो मासे तेरो परबों” अर्थात बंगाल में 12 महीनो में 13 त्यौहार मनाए जाते हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री मोहद्या से अपील है कि कुछ वोट बटोरने के लिए “राम” के नाम से अल्पसंख्यकों को डराना बंद करें और सभी को बंगाल के त्यौहार मस्ती से मनाने दें।

Exit mobile version