आप जीभ का स्वाद नही छोड़ सकते तो हम अपनी श्रद्धा का विषय कैसे छोड़ दें?

रोहिंग्या कश्मीरी पंडितों

इसराइल ने जब-जब हमास के आतंकवादियों को मारा हमने हर बार उन मरने वाले फ़लस्तीनियों के लिए आपको विलाप करते देखा। म्यांमार ने जब रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय को मारा तो आपने आसाम से लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान तक आग लगा दी। रोहिंग्या मुस्लिमों के मरने में भारत का कोई क़सूर ना होते हुए भी आपने अपना ही देश फूँक दिया। अमर जवान ज्योति तक तोड़ दिया।

आपको उस सीरियाई बच्चे ऐलान कुर्द के लिए भी दुखी होते देखा जो अपने परिवार के साथ सीरिया से ग्रीस जाते वक़्त समुद्र में डूब गया था, और यक़ीन मानिए हम भी उस मासूम क़ुर्दिश बच्चे के लिए उतने ही दुखी थे जितना कि स्वयं उस बच्चे का परिवार। जितना आपका मन पेशावर हमले बाद दुखी था, उतना ही हम भी उन मासूम स्कूली बच्चों की अकाल मृत्य पर दुखी थे। कारसेवकों से लेकर कश्मीरी पंडितों तक आप हिंसा करते रहे।

पेरिस हो या पाकिस्तान, सुडान हो या सीरिया, दुनिया के किसी भी कोने में जब किसी ने आतंकवाद, अतिवाद, हिंसा, बीमारी या किसी भी अप्रिय कारण से किसी ने अपना जीवन खोया, हमने उस पीड़ा को महसूस किया। हर मनुष्य के जीवन की क्षति हमारे लिए अपने स्वजन को खोने के बराबर आँका।
क्योंकि हमारे लिए हमेशा किसी भी मनुष्य का जीवन किसी भी वैचारिक और धार्मिक मूल्यों से अधिक रहा है। हम ने सदैव ही कहा,” मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।” अर्थात कोई भी प्राणी दुःख का भागी ना हो। दुःख किसी भी जाति, किसी भी समुदाय का हो पर हमने सदैव उसे सदा अपना दुःख, अपनी पीड़ा मान यथासंभव उसके निवारण, उसके प्रतिरोध का प्रयास किया।

पर हमें बड़ा बुरा लगा हमें जब आपने दुनिया का दर्द देखा पर आप कश्मीरी पंडितों का दर्द ना महसूस कर पाए। ये शायद दुनिया में पहली बार हुआ है कि कोई जाति अपने ही देश में विस्थापित का कलंक ढोने को मजबूर है।

लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में रिफ़्यूजी कैम्प में रहते देखना आपको कभी अटपटा नही लगा। पर इस देश में रोहिंग्या समुदाय को भारत में बसाने के लिए ख़ूब आवाज़ें उठते देखी गई, उसी कश्मीर में जहाँ से कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया। वहाँ ताज़ा आँकड़ो के मुताबिक़ क़रीब 39000 रोहगनिया मुस्लिम भारत में बसाए जा चुके हैं( अकेले जम्मू-कश्मीर में 14000) और कश्मीरी पंडितों को आज भी बेघर रहना पड़ता हैं। आखिर कौन इस देश की संस्कृति का हिस्सा हैं ? कौन इस सनातन मिट्टी की पैदाइश हैं ? कश्मीरी पंडितों की भूमि पर रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाकर कट्टरपंथी सोच को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।

पर हमको बड़ा ठगा सा महसूस हुआ जब एक ट्रेन की बोगी में बंद कर कारसेवकों को ज़िंदा जला दिया गया और उनमें से कुछ तो दूध पीते बच्चे थे। पर आपकी तरफ़ से कभी उनका ज़िक्र भी नही सुनने में नही आया, उनके मानवाधिकारों के लिए तो आप क्या ही लड़ते।
भाईचारा और गंगा-जमुनी तहज़ीब जैसे शब्द निरर्थक और बेमानी लगने लगे जब हर बार आपको कभी अफ़ज़ल तो कभी याक़ूब के बहाने आतंकियों के समर्थन में खड़ा पाया।

इतने पर भी संतोष कर लेते कि चलिए आपका धार्मिक मामला है पर आपने तो हमारे लिए वो भी लिहाज़ नही किया। आप तो हम हिंदुओं के लिए एक जानवर (आपके शब्दों में) भी बख़्शने को तैयार नही। वो जानवर जो हम हिंदुओ के लिए पूजनीय है, श्रद्धा का विषय है, जिसे यहाँ के बहुसंख्यक समुदाय ने माँ का दर्जा दिया है। उस पर जिसे काटना क़ानून के भी विरुद्ध है, अपराध है। हर बार आपको दुहाई दी गयी। पर आपका हमेशा तुर्रा की आपके मज़हब में लिखा है। अगर आपकी धार्मिक स्वतंत्रता है, तो कुछ मानव और धार्मिक अधिकार तो हम हिंदुओं के भी हैं।

अगर मानव-अधिकारों की आड़ लेकर लिए आप जीभ का स्वाद नही छोड़ सकते तो हिंदुओं से किस मुँह से उम्मीद रखते हैं कि हम अपनी श्रद्धा का विषय छोड़ देंगे।

इस सब के बीच कल राजस्थान में भी फिर वही सब दोहराया गया। वही गाय की अवैध तस्करी,  गाय का कटान, भीड़ का आक्रोशित होना।

और चूँकि न्यूटन ने साबित भी किया था हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है अतः इन सब के परिणाम में फिर एक जीवन की हानि हुई। कुछ कहना है कि वो लोग गौ-तस्कर नही व्यापारी थे, और कुछ क्रय-विक्रय के काग़ज़ातों को भी दिखाया गया था लेकिन स्थानीय पुलिस प्रशासन उन काग़ज़ों की प्रामाणिकता को अस्वीकार कर चुका है।

लेकिन फिर भी जैसा मैंने ऊपर लिखा है हमारे लिए किसी भी धार्मिक या वैचारिक मूल्य से इंसानी जीवन का मूल्य अधिक है अतः किसी भी सूरत में हिंसा का समर्थन नही किया जाएगा। हर उस विचार, हर उस सोच के ख़िलाफ़ पूरा हिंदू समाज है जिससे किसी भी मनुष्य को लेशमात्र भी क्षति पहुँचती है। अतः एक ज़िम्मेदार हिंदू होने के नाते मैं कह सकता हूँ उस भीड़ को जिसने 55 वर्षीय पहलू खान की हत्या की है उन्हें हिंदू और हिंदुत्व के बारे में लेश-मात्र भी ज्ञान नही था। और ऐसे असामाजिक तत्वों की पूरा समाज भर्त्सना करता है, ऐसी हिंसक मानसिकता को धिक्कारता है।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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