हाल ही में सोनू निगम के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद मुझे बचपन की एक बात याद गयी। बचपन में जब कभी किसी मुल्ला-मौलवी द्वारा किसी के खिलाफ फतवा जरी किया जाता था तो सोचता था की शायद ये बहुत बड़ी बात होगी, समाज में उसका लोग बहिष्कार करते होगे, उन्हें लोग गलत नजर से देखते होगे क्योंकि मीडिया इन फतवा को इतनी बड़ी न्यूज़ बनाकर पेश करती थी। मीडिया का भी इन फतवा पॉलिटिक्स में हमेशा अहम रोल रहा है। फिर थोडा बड़ा हुआ तो मन में अनेक सवाल खड़े होने लगे फतवे जारी करनेवालों के बारे में कि आखिर कौन जारी करता है फतवे? क्यों निकाले जाते है? इन्हें किसने अधिकार दिया फतवे जारी करने का? क्या ये हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट या कानून के कोई प्रतिनिधि है, जो जब चाहे जिसे चाहे किसी के भी खिलाफ जारी कर देते और किस हद्द तक इन्हें सही मानें? भरोसा करें?
सबसे बड़ा सवाल की फतवा के बाद क्या? मतलब साफ है की आपने फतवा जारी कर दिया लेकिन आगे क्या? इससे क्या होगा आप ने भड़ास निकाल दी, आप खुश, आगे वाला तो कल भी अपनी जॉब पे जा रहा था आज भी जा रहा है माने बस भड़ास निकाल दो। कल को अगर किसी मौलवी को किसी के प्रति खुन्नस है, तो वो फतवा जारी कर देगा इसके कोई कानून कायदे नहीं है क्या? माने फतवा न हुआ खुन्नस निकलने का जरिया हो गया। लेकिन सबसे बड़ी बात कि इससे उस इंसान को कोई फर्क नही पड़ता जिसके खिलाफ फतवा जारी हुआ है, है न मजे की बात! अपने सल्लू भाई को ही ले लो, गणपति जी रखते है 5 दिन घर पर, फतवा भी निकलता है उनके खिलाफ लेकिन कभी सुनी है किसी की? सल्लू मियां ने तो डायरेक्टर/कोरियोग्राफर की भी कभी नही सुनी। माने ये फतवा हानिकारक नहीं है, आप अपना कम वैसे ही चालू रख सकते है जैसे पहले था और अगर आप को ये फतवे की बत्ती बनाने का दिल है, तो आप सोनू निगम से कुछ सिख सकते है की मौलवी के फतवा की बत्ती कैसे बनाएं।
आजकल फतवा जारी करने का ट्रेंड सा हो गया हैं, जानते है क्यों? क्योंकि आजकल मीडिया, सोशल मीडिया इतना तेज़, इतना एक्टिव हो गया इन्हें बस मसाला चाहिए बस यही फतवों की जड़ है। जिन मौलवी की फोटो कभी लोकल अखबार में भी नही छपी वो सीधा एक कस्बे से निकलकर नेशनल टीवी पर झलकने लगता है। नेशनल मीडिया आपके घर के बाहर खड़े रहता है आपका एक इंटरव्यू करने के लिए और मजे की बात ये की इस फतवा निकलने से न आप का कुछ हल्का हो रहा है न उसका जिसके खिलाफ फतवा निकला है। तो ये फतवा कतई हानिकारक नहीं है और दोनों के लिए win-win situation है यानि फेमस तो दोनों हुए।
बस इतना ध्यान रखना है की जब भी फतवा निकालो तो वो सोनू निगम जैसा बड़ा सेलिब्रिटी हो, ताकि मीडिया का भी कुछ खर्चा पानी निकल जायें वरना एक तो आप नॉन सेलिब्रिटी टाइप के मौलवी बगल के मोहल्ले में कोई न जाने आपको, ऊपर से जिसका फतवा निकाल दिया वो भी आम आदमी तो कैसे बात बनेगी? नोएडा से भला दो आम आदमियों के लिए मीडिया काहे अपना माथा फोड़े कुछ तो मसाला चाहिए की नहीं चाहिए मित्रों।
अब कल ही की ही बात ले लो, सोनू निगम माशा अल्लाह वैसे ही बड़े मशहूर किसम के सिंगर है। उन्हें तो लड़कियां देख लें तो 5 दिन पलकें न झपकें और कोई हाथ मिला लें तो 10 दिन नहाये ना, और हमारे मौलवी कादरी साहब ठहरे एक आम आदमी चलो आम आदमी भी आजकल 12 हजार की थाली खा लेता है लेकिन मौलवी साहब तो वैसे ही सब्सिडी से काम चलाते है, अब कादरी साहब तो मौके की तलाश में घात लगाये बैठे ही थे और इससे अच्छा मौका नहीं मिलनेवाला ये जानते थे कूद पड़े। उठाया लैटर पेड और लिख डाला फतवा। जानते तो थे की उनके इस फतवे से सोनू निगम जैसे लोगो का कुछ होने वाला नही है, लेकिन मेरी तो निकल पड़ेगी भाई अपने भी बिरादरी का सवाल है। आजकल वैसे हमारी खातून सहिबानें ‘ट्रिपल तलाक’ के चक्कर में आये दिन न्यूज़ स्टूडियो में मुल्ला-मौलवी को पेले जा रही है। वैसे ही कोई इज्जत नही करता और कमबख्त ये तारेक फतह अलग से कह के ले रहा है। आखिर मौलवियों की भी इज्जत है की नहीं? बेचारों के फतवे देने का अधिकार भी तारेक फ़तेह साहब ने छीन लिया “फतह का फतवा” ला कर, ये तो गलत बात है तारेक साहब! हम आपकी इज्जत करते है लेकिन आप इस तरह से हमारे मौलवी साहब के पेट पर लात न मारिये।
तो मौलवी साहब ने सोनू निगम के खिलाफ निकाल दिया फतवा, पहुँचा दिया मीडिया को खबर और चमक गए नेशनल टेलीविज़न, न्यूज़ चैनलों पर। अच्छा यहाँ गौर करनेवाली बात ये है की मौलवी साहब ने दिमाग जबरदस्त लगाया। बाकि मौलवीयों टाइप छोटी बात करते मानें निंदा कर के छोड़ देते तो पूरा दिन स्क्रीन पर नहीं चमक पातें। साहब ने एक लाइन और जोड़ दी जिससे हमारी मीडिया को बड़ा प्रेम है और आजकल ट्रेंड भी चल रहा है। वो है किसी का सर काट के मांग लो, किसी के बाल काट के मांग लो, किसी को जूते मारने की डिमांड कर दो। वैसे ये ट्रेंड राजनीती में ज्यादा चलन में है। किसी तहसील स्तर के पार्टी अध्यक्ष टाइप के लोग ऐसे बयान दे देते है की अगली नगर पंचायत की सीट का ही जुगाड़ हो जायें न भी हुआ तो टीवी पर टॉप 100 न्यूज़ में आये थे ३२ सेकंड के लिए ये क्या कम है? वैसे सिर्फ राजनीती में ही नही होते ये हथकंडे, हमारें मौलवी साहब भी राजनेता से कम है के? जोड़ दी वो चमत्कारिक लाइन की भाई 10 लाख दूंगा सोनू निगम ने भावनाएं आहत की है, सर मुंडवा दो उनका। अब ये कोई नहीं पूछेगा कि मौलवी जी 10 लाख लायेंगे कहा से? पिछले बरस उन्होंने हज तो सरकारी सब्सिडी से किया था और उनकी सोर्स ऑफ़ इनकम क्या है? कोई नहीं पूछेगा उनसे कि वो फतवे जारी करने के अलावा क्या काम धंधा करते है क्योंकि उन्हें खुद भी नही पता।
रही बात की 10 लाख देंगे सोनू निगम के सर मुंडवाने वाले को, ये सोच के की ऐसे बयान कितने लोग तो देते है, कौन सा कोई सर मुंडवाने चला ही जायेगा? यहाँ पर मौलवी साहब ने दिमाग तो चलाया लेकिन उनकी क्या गलती जितना था उतना दिमाग लगाया अब उन्हें कौन समझाए की भाई सर मुंडवाने में और सर कलम करने में जमीं आसमान का फरक है। अब हमारे सोनू निगम फूल मूड बनाये बैठे थे, यूँ कहे भरे बैठे थे की बस लेनी तो है और इधर मौलवी साहब जाल बिछाके बैठ गए, सोनू मियां ने उन्ही के बिछाए जाल में लपेट दिया। बुलवा लिया पूरी मीडिया को ऐलान करवा दिया। पुराने जमाने में कोई खबर का ऐलान करवाना हो तो राजा-महाराजा ढोल बजाने वाले को बुलवा के उससे ऐलान करवाते थे, बस हमारी मीडिया का भी यही रोल था। सोनू निगम बुलाये मीडिया को ऐलान करवा दिया देश में की अपने मौलवी से कह दो 2 बजे सिर मुंडवा रहे हम और 10 लाख तैयार रखे।
अब यहाँ मौलवी साब ये भूल गए की सोनू निगम मियां जितनी तरह तरह की आवाज़ निकालते है, उतने ही तरह की हेयर स्टाइल भी करते रहे है और जीतनी वो अपने बेमिसाल गायकी के लिए मशहूर थे उतने ही अपने अलग अलग हेयर स्टाइल के लिए फेमस भी थे। तो बस सोनू भाई को तो मौका मिल गया और एक नया गेटअप, नया लुक, नई हेयर स्टाइल बनाने का। दस लाख खैर कोई बात ही नही थी लेकिन एक तीर से दो निशाने नया गेट अप भी बन गया वैसे गर्मी भी बहोत हो रही थी बड़े बालों से और दूसरा मौलवी साब की फेमस होने की, सेलिब्रिटी बनने की खुजलाहट भी दूर करनी थी, तो बस मुंडवा लिया मीडिया के सामने सिर और लगा दी लंका मौलवी साहब की। आम के आम, गुठलियों के दाम इसे ही कहते है।
नाउ बॉल इज इन मौलवीज कोर्ट! तो अपने मौलवी साहब भी अल्लाह मियां की कसम अव्वल दर्जे के “आम आदमी टाइप” मटेरियल निकले, जो घुमाके यू-टर्न लिया कसम खुदा की 12 हजार रू की थाली खाने वाले केजरीवाल जैसे आम आदमी को पीछे छोड़ दिया। केजरीवाल जी के हजारों यू-टर्न एक तरफ और मौलवी साब का एक यू-टर्न एक तरफ। अब आप ही बताएं इससे अच्छा यू-टर्न मटेरियल सॉरी इससे अच्छा ‘आम आदमी टाइप मटेरियल’ वेस्ट बंगाल में चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट के लिए और दूसरा कोई मिलेगा भला? वैसे अगर सर जी ने मौलवी साब को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया तो 300 सीट आ रही है जी ‘आप” की, भले ही वहां 295 सीटें है विधानसभा में।
अब भला मौलवी जी की मीडिया के सामने और टीवी पर आने की हसरत पूरी नही हुई थी जी एक बार तो आये थे और एक बार आना था तो कूद के फिर आ गये बताने के लिए देखो हम भी यू-टर्न के बादशाह है। बस केजरीवाल जी एक बार देख ले टीवी पर हमें तो बस लाइफ बन जायें । हम कहते है मियां जरुरत क्या थी? अरे भाई शांत ही बैठे रहते अपने मनमोहन सिंह साब की तरह और एक शेर पढ़ देते उन्ही की तरह मीडिया के सामने “हजारों सवालों से अच्छी है मेरी ख़ामोशी” सब समझ जाते थे लेकिन नही आपको तो आम आदमी ही बनना था।
वैसे आपकी लंका तो पहले ही लग चुकी थी चाहे इधर से या उधर से। फिर क्या मामला ख़तम सोनू निगम मियां को नया लुक मिल गया गाने भले ही कम मिल रहे हो आजकल, मौलवी साब तो खुद की लंका लगवा के 2 दिन टीवी पर छाये रहे और हमारी प्यारी सबकी दुलारी इमानदारी की बहती गंगा, सिर्फ 12 हजार की थाली और 1 करोड़ के समोसे खानेवाली आम आदमी पार्टी को अपना चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट मिल गया वेस्ट बंगाल के लिए और ममता दीदी तो खैर उनको मन ही लेंगे नही तो मिलके लड़ लेगे जी। तो कहने का मतलब ये कि मौलवी जी का फतवा, फतवा न हुआ बाउंस चेक हो गया जो चेक तो दे दिया मौलवी साब ने लेकिन बैंक में लगवाने गए तो बाउंस निकला। मौलवी साब के अकाउंट में पैसे ही नहीं। भाई खुद साब सब्सिडी पर दिन काट रहे, क्या मियां एक आम आदमी अब मजाक भी नही कर सकता क्या? सारी खुदाई एक तरफ, मौलवी साहब का यु-टर्न एक तरफ।
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बढ़िया
Quite Sarcastic Nitish. But sadly That Nerd MOULVI will not be able to read it as they know only the language of SHOES.
Sahi re!!!!!!! Keep it up Nitesh