28 मार्च को मेरठ में जो घटना घटी है, उसने समस्त राष्ट्र के समक्ष विचलित करने वाली तस्वीरें अवश्य प्रस्तुत की हैं। आखिरकार कुछ दरिंदे हमारे समाज में धर्म के नाम पर विष घोलने के प्रयास में कुछ हद तक सफल हो गए। और मुझे दया आती हैं उन मंदबुद्धि धर्मांध मानसिकता वाले मुसलमानों पर जो इस राष्ट्र की अस्मिता और सम्मान पर बट्टा लगाने के पाप में सहभागी बन रहे हैं।
मेरठ नगर परिषद के सभा के दौरान कुछ मुस्लिम पार्षदों ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ गाने पर आपत्ति दर्ज कराई और भाजपा सभासदों पर जबरन वंदे मातरम गाने पर मजबूर करने का आरोप लगाया। इसके उपरान्त उन पार्षदों ने विरोध करते हुए सभा से ‘वॉक आउट’ कर लिया जिससे नगर परिषद के कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई है जिसमें से मेयर का चयन किया जाना भी एक प्रमुख कार्य था।
आरोप लगाने वाले मेरठ नगर परिषद के मुस्लिम पार्षदों का कहना है कि वो वंदे मातरम गाए जाने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि यह इस्लाम के विरुद्ध है तथा इसके गायन से उनका धर्म भ्रष्ट हो सकता है?
यह एक अत्यंत संवेदनशील तथा गंभीर मुद्दा है क्योंकि पूर्व में भी ऐसे कुछ प्रकरण संज्ञान में आते रहे हैं।
हमें इस बात पर विशेष चिंतन की आवश्यकता है कि हमारे समाज में इस तरह की विषैली विचारधारा का प्रसार कौन कर रहा है , तथा इसका उद्गम स्थल क्या है, क्योंकि अब इस राष्ट्रद्रोही विचारधारा का समूल नाश करना अत्यंत आवश्यक है।
‘वंदे मातरम’ एक संस्कृत रचना है परंतु अगर हम इसका हिंदी काव्यानुवाद करें तो वंदे मातरम का शाब्दिक अर्थ है :- शत् शत् नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत !
मैं उन सभी महानुभावों से यह प्रश्न करना चाहता हूँ कि भैया, वंदे मातरम कब से सांप्रदायिक हो गया ? बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित यह कोई सामान्य गीत नहीं है अपितु हिंदुस्तान का राष्ट्रगीत है। इसमें किसी धर्म, जाति या पंथ का उल्लेख तो है ही नहीं, फिर ये कैसे किसी धर्म के विरुद्ध हो सकता है।
हद होती है धर्मान्धता की भी, मतलब आपका अपना विवेक और तर्कशक्ति तो घास चरने गई है , जो कुछ भी अनाप शनाप बके जा रहे हो । वो बोलते हैं कि वंदे मातरम इस्लाम के विरूद्ध है, लेकिन जब उनसे इस धारणा की वजह पूछी जाए, तो फिर मौन व्रत धारण कर लेते हैं।
मतलब ये कि करना धरना कुछ नहीं लेकिन धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने का ठेका उठा रखा है कुछ लोगों ने।
जब संविधान के निर्माताओं ने वंदे मातरम को हिंदुस्तान के राष्ट्र गीत के रूप में स्वीकार किया है तो फिर कुछ लोग सदन की मीटिंग के दौरान वंदे मातरम गाने से इंकार कर दें , यह तो संविधान की मूल भावना का सरासर अपमान है।
और सबसे बड़ी बात की जब ऐसे तत्वों को हम आज करारा जवाब नहीं देंगे तो कल राष्ट्रगान , राष्ट्रीय ध्वज या अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों का भी अपमान किया जा सकता है। ये लोग तो यह भी बोल सकते हैं कि हिंदुस्तान नाम ही सांप्रदायिक है क्योंकि इसमें हिन्दू शब्द आता है।
हम यह नहीं बोल रहे कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी वक़्त जबर्दस्ती कोई गीत गाने या नारा लगाने के लिए विवश किया जाए, परंतु जब किसी भी संसदीय प्रक्रिया के दौरान इस तरह का अमर्यादित व्यवहार हो जिससे राष्ट्रीय अस्मिता का अपमान हो, इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।