विधायक जी प्रणाम, थोडा ज़मीन पर तो उतरिये

वीआईपी

अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश सहित 5 राज्यों में चुनाव संपन्न हुये हैं। जिसे सरकार बनाना था उसने बना लिया जिसे विपक्ष में बैठना था वो भी हो गया जिसे कुछ नहीं मिला वो कम से कम विधायक तो बन ही गया। अब वैसे भी मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री विधायक ही तो हैं बस अब सरकार उनकी है तो थोड़ा रौब तो आ ही जाता हैं। वैसे बात रौब की है तो मेरे वार्ड के पार्षद का पति भी खुद को मुख्यमंत्री से कम नहीं समझता। बस यही समस्या हैं हमारे देश की। सब खुद को वीआईपी ही समझते हैं, कोई खुद को आम आदमी नहीं समझना चाहता।

मेरे विधानसभा क्षेत्र के विधायक प्रदेश में एक कद्दावर मंत्री हैं। लगातार जीतते ही जा रहे हैं और मंत्री पद भी बरकार हैं। लेकिन हैं तो विधायक ही ना, हमारे जनप्रतिनिधि। लेकिन यदि जब हमें समस्या होती है तो उनसे मिलना तो दूर उन तक अपनी बात पहुँचाना ही मुश्किल हो जाता हैं। अब वीआईपी मंत्री हैं तो आखिर हम जैसों की बात ही क्यों सुनेंगे ? ये वीआईपी कल्चर सबके दिमाग में ऐसा घुसा हुआ हैं कि निकल ही नहीं रहा। विधायक मंत्री तो छोड़िये, पार्षद से भी मिलना मुश्किल हो जाता हैं।

अब जब 5 राज्यों में जिसकी भी सरकार बनी हो आखिर एक-एक विधयाक आपने क्षेत्र का जनप्रतिनिधि हैं। अब ये बताइये कि कितने विधायक ऐसे होंगे जिनसे मिलना आसान होगा ? कितने जनप्रतिनिधि होंगे जिनके सामने आप अपनी समस्या को बता सकते हैं या उसका निवारण करवा सकते हैं ? आम से वीआईपी बने इन जनप्रतिनिधियों को चुनाव के समय पेअर पड़ते देखे हो, अब कौन आपकी आवाज़ सुनेगा ?

ऐसा नहीं कि ये नेता अच्छे नहीं हैं। अच्छे या बुरे का फैसला उनके काम से होगा लेकिन जो जमीनी स्तर पर जुड़ाव की ज़रूरत हैं वो कैसे पूरा होगा ? आम और ख़ास के बीच जो एक खाई बनी हुई हैं वो कैसे पटेगा ? आज हर जगह वीआईपी कल्चर हावी हैं, पार्षद और विधायक के किसी स्थान पर जाने पर जो आवभगत की जाती हैं वो तो सीधा सीधा उनके ख़ास हो जाने का प्रमाण होता हैं। तो एक झोपड़पट्टी में रहने वाला महल में रहने वाले के बराबर कैसे होगा ?

इसकी ज़िम्मेदारी समाज की बनती हैं ना क़ि किसी राजनैतिक पार्टी की। राजनैतिक पार्टी राजनीति करती हैं लेकिन हैं तो वो भी समाज का ही हिस्सा। समाज को यदि वीआईपी विधायक, नेता के बजाय एक जनप्रतिनिधि के रूप में साथी या उनसे जुड़ा हुआ वयक्ति चाहिये तो सबसे पहले उन्हें खुद समाज में बैठे ठेकेदारों को हटाना होगा। ऐसे लोग जो जयकारों और हार माला के रूप में वीआईपी कल्चर को ज़िंदा रखे हुये हैं।

यदि आपको अच्छे और आपसे जुड़ा हुआ नेता चाहिये तो अपने बीच के बेहतर लोगों को राजनीति के लिए तैयार करना होगा। जो सामर्थ्य नहीं हैं उसके लिये समाज को आगे आना होगा। एकजुट होकर, चंदा कर, विचार-विमर्श कर अपने बीच के लोगों को चुनाव लड़वाकर सदन में भेजिये तभी लोकतंत्र मजबूत होगा और लोकतंत्र में सबका विश्वास बढ़ेगा, वरना गन और बुलेटप्रूफ गाड़ियों के बीच वाई-ज़ेड प्लस सुरक्षा के घेरे के आस-पास फटकना भी मुश्किल होगा।

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