उत्तर प्रदेश में वंशवाद और जातिवाद से इतर, विकास की राजनीति की शुरुआत करने का दावा करने वाली योगी सरकार, अपने कार्यकाल के दो महीने पूरे करने जा रही है। 19 मार्च को शपथ लेने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री मंडल ने जिस मुस्तैदी से साथ उत्तर प्रदेश में बदलाव लाने का दृढ संकल्प दिखाया है। वो काबिल-ए-तारीफ़ है। वैसे तो, किसी सरकार के दो महीने का रिपोर्ट मांगना अपने में हास्यास्पद है। पर जब किसी सरकार पर आशाओं का बोझ इतना ज्यादा हो, तब इसकी जरुरत और अहमियत दोनों ही बढ़ जाती है।
बीते कुछ दशकों में जिस प्रकार किसानों की स्थिति लगातार दयनीय होती आई है। देश के हित और विकास में ये समस्या सर्वोपरी बन गई है। अभी के सन्दर्भ में जंहा तमिलनाडु के किसान(तथाकथित) को जंतर-मंतर पर धरना देना पड़ता है। वही उत्तरप्रदेश में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करना, वो भी इस वादे के साथ की इस क़र्ज़ माफ़ी का अतिरिक्त बोझ, किसी भी तरह जनता को वहन नहीं करना पड़ेगा। अपने में बड़ा साहसिक फैसला था। ये फैसला विपक्ष उन सभी नेताओं को करारा जवाब था। जिन्होंने आज तक किसानों की समस्या का मज़ाक बनाया है। जिनके लिए किसान मात्र एक राजनितिक उल्लू सीधा करने का माध्यम भर है। इन सब के बीच हमे इस बात पर ध्यान देना होगा कि आखिर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 36,359 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करने की नौबत क्यों आ गई। कभी अपने गन्ने उत्पादन को मशहूर उत्तरप्रदेश कैसे दिन-ब-दिन चीनी मिलों के लिए तरसने लगा। आखिर कैसे एक-एक करके उत्तरप्रदेश में सारे चीनी मील बंद होते गए। किस प्रकार 2007 में मायावती सरकार ने अमरोहा, बिजनोर, बुलंदशहर जैसे जगहों पर चलते हुए चीनी मीलों को औने-पौने भाव बेच दिया। योगी आदित्यनाथ सरकार का इन मामलों में जाँच के आदेश के बाद से ही उत्तर प्रदेश के पूरे राजनितिक परिदृश्य में भूचाल सा आ गया हैं। तमाम राजनितिक पार्टीयों के अंदर दोषारोपण का माहौल स्वतः ही उत्पन्न नहीं हुआ है। योजनाओं के क्रियांवहन में तेज़ी का जो उदाहरण योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध बूचड़खानों को बंद करके पेश किया है। उससे तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले तमाम पार्टियां हतप्रभ हो गई है।
गुंडाराज का पर्याय बन चुके उत्तर प्रदेश ने वर्षो बाद प्रशासन की गरिमामय ताक़त को पहचाना। हालाकिं अपने नियत के अनुसार विपक्षियों ने इसे किसी खास धर्म से जोड़ने की पुरज़ोर कोशिश की। पर अवैध और वैध के बीच के अतंर को योगी सरकार लोगों तक पहुचाने में पूरी तरह कामयाब रही।
सरकारी तंत्र को मजबूत बनाने हेतु, मंत्रियों के संपत्ति का ब्यौरा मांगना हो या लाल बत्ती का बहिष्कार करना हो। सरकारी बाबु से लेकर पुलिस के आला अफसरों की पूरी खोजबीन को योगी सरकार ने प्राथमिकता के साथ लिया है। महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के सारे माध्यमिक विद्यालयों को को- ऐड करने का फैसला लिया है। हर थाने में एक पुरष और एक महिला को रिसेप्शन पर नियुक्त करना महिला सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम् फैसला है।
इसी सन्दर्भ में एंटी रोमियो स्क्वाड के गठन पर भी प्रकाश डालने की जरुरत है। इसमें कोई दो मत नहीं है योगी सरकार उत्तर प्रदेश में भयमुक्त माहौल देना चाहती है। पर उचित कार्यशैली के आभाव में इसके दुषपरिणाम भी देखने को मिले हैं। योगी सरकार को गौ रक्षक के नाम पर मारपीट करने वालों से उसी प्रकार कड़ाई से निपटना होगा, जिस प्रकार किसी एक अपराधी के साथ न्यायोचित व्यव्हार किया जाता है।
बीते 2 महीनों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजनीति के तौर तरीके में बदलाव के संकेत दिए और कहीं कहीं उसकी धरातली सच्चाई दिखने भी लगी है। पर कुछ संवेदनशील विषयों पर शांति और स्थिरता से काम करने की जरुरत है।
सहारनपुर जैसे मामलों में सरकार को थोड़ी और मुस्तैदी दिखानी होगी और बीते कुछ साल के सरकारों की गलतियों से बहुत कुछ सीखना होगा।