Secular कौन और सेक्युलर हिन्दू कौन?
एक सेक्युलर हिन्दू की पहचान – हिन्दू जो है, इस देश मे दो नसल के हैं, एक राष्ट्रवादी सनातनी, और दूसरे सेक्युलर। कब कोई सेक्युलर सनातन धर्म की महिमा की तरफ खींचा चला आए, और कब कोई सनातनी सेकुलरिज्म का तालाब बन जाये, पता ही नहीं चलता। पर….
‘ये सेक्युलर हिन्दू क्या है, ये सेक्युलर हिन्दू?’
परमवीर, अमर शिरोमणि, क्राइम मास्टर गोगो के शब्दों में, ये प्रश्न वर्तमान भारत के लिए कट्टप्पा द्वारा बाहुबली को मारने से भी ज़्यादा [हालांकि राज़ तो अब खुल गया] अबूझ पहेली लगती है। पर क्या करें, बेशर्मी से झूठ बोलने और अपने हाथों अपनी और देश दोनों की ढ़ोल ताश सहित बेइज्जती करने की कला तो बिरले ही मैंने अपने हिंदुस्तानी भाइयों और बहनों में कहीं देखी होगी। ऐसी कला है हमारे सेकुलर हिन्दू भाइयों और बहनों में।
पर प्रसन तो अब भी पुरजोर है भैया, ई सेकुलर हिन्दू कौन प्रजाति है? भीड़ में से वो एक चेहरा चुनिये, जो पश्चिमी सभ्यता को गले लगाता हो, पर नेक इरादों से कभी नहीं। वो व्यक्ति, जिसे शिव जी पे दूध चढ़ने में शर्म आती है, पर बड़ा दिन मनाने में और दरगाह में चादर चढ़ाने में दस सेकंड भी व्यर्थ नहीं जाने देगा। वो व्यक्ति, जिसे हर प्राचीन वस्तु भंगार और कबाड़ लगे, और हर नवीन वस्तु, चाहे वो खौफनाक ही क्यों न हो, प्यारी लगे। वो व्यक्ति, जिसे अपने देश का वासी होने में शर्म लगे, पर किसी दूसरे देश का ग़ुलाम बनने में कोई अतिशयोक्ति न हो, ऊ होत है सेकूलर हिन्दू। इन्हें देख अनायास ही गोपी फिल्म [दिलीप कुमार वाली] के एक सुप्रसिद्ध गीत के बोल निकल पड़ते है:-
“राम चन्द्र कह गए सिया से,
ऐसा कलयुग आएगा……..
हंस चुगेगा दाना दुनका,
कौवा मोती पाएगा…….”
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सेक्युलर किसे कहते है?
सेक्युलर हिन्दू एक विचित्र प्रजाति है, जिसकी जड़ें 1947 से मिलना शुरू हुयी थी, या यूँ कहें की जवाहर लाल नेहरू के उच्च आदर्शों से प्रेरित हो जिन महान विभूतियों ने उनके दर्शन को अपनाया, वो आज सेक्युलर हिन्दू के नाम से जाने जाते हैं। ऊपर ही कुछ विशेषताएँ बता दी थी, पर ये निम्नलिखित ग्यारह विशेषताएँ हर प्रकार के सेक्युलर हिन्दू में पायी जाती है:-
- सर्वप्रथम, सेक्युलर के लिए आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, पर हिन्दू या भगवा आतंकवाद अवश्य होता है।
- शिक्षा के लिए सेक्युलर का स्वर्ग जेएनयू और नर्क काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या कोई भी प्रतिष्ठित आईआईटी या आईआईएम होगा।
- इनका लिंग से कोई वास्ता नहीं। ये पुरुष और महिला में समान रूप से पायी जाएगी।
- इन्हें अपने धर्म से बेशर्मी से शर्म है, माने इन्हें अपने धर्म से ज़्यादा दूसरे धर्म में दिलचस्पी है।
- ये रोमिला थापर और इरफान हबीब के ऐतिहासिक उपन्यासों पर पल्लवित पोषित हुये हैं।
- सेक्युलर हिन्दू में शायद ही कोई ऐसा नमूना होगा, जो आईआईटी या दूसरे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की मिट्टी न पलीद कराई हो। अगर किस्मत के धनी हैं, तो विदेशी संस्थाओं की भी नाक धूम धड़के के साथ कटवाई है।
- इन्हें होली बिन जल, दिवाली बिन पटाखे, और रक्षा बंधन और करवा चौथ पर सम्पूर्ण प्रतिबंध चाहिए, चाहिए मुहर्रम के अवसर पर निकालने वाले ताजिये इनकी रातों की नींद उड़ा दे।
- इन्हे सिर्फ अपने धर्म से ही नहीं, अपने देश से भी उतनी ही घृणा है। तिरंगे को जलता हुये देखने में इन्हे जो मज़ा आता है, उतना तो हमें क्रिकेट मैच में पाकिस्तान को हारते हुये देखने में भी नहीं आता होगा।
- सेक्युलर के लिए बरखा दत्त, सुश्री राणा अय्युब जैसे पत्रकारों के बोल शाश्वत सत्य लगते हैं।
- हजारों वर्षों के शोषण के बाद भी इन्हें अपने आतताइयों को क्षमा करने में कोई शर्म नहीं लगती और दूसरे धर्म के आडंबरों की तरफ तो ये अपना मुंह भी नहीं ताकेंगे। बुरा लग गयो के कपिल भाई?
- सेक्युलर हिन्दू को तीर्थ यात्रा पाप लगेगी, पर महान विभूति शाह जहां की चौथी बीवी की कब्र के ऊपर बने मकबरे का दीदार करना अवश्यंभावी लगेगा।
सेक्युलर हिन्दू को सबसे ज़्यादा चिढ़ सच्चे भारतीय इतिहास के बाखँ से मचती है। हाथ में माला, गले में रुद्राक्ष के बीज, सिर पे त्रिपुंड धारी तिलक और बालों के साथ ब्राह्मणत्व के तेज को समर्पित चुटिया इनके लिए हंसी का पत्र है।
सेक्युलर लोगों की पसंदीदा फ़िल्में
सेक्युलर हिन्दू के लिए बाहुबली जैसी ओजस्वी चलचित्र [माने सिनेमा] कृति देखना भी पाप समान होगा, पर यही लोग बेशर्मी से हिन्दू धर्म का मखौल उड़ाने वाले अभिनेताओं, मसलन आमिर खान, शाह रुख खान, सुशांत सिंह राजपूत, यहाँ तक की संजय लीला भंसाली की कृतियाँ भी देखेंगे। सेक्युलर के लिए पेशवा बाजीराव बल्लाड एक कुशल शासक और मुग़लों को धूल में मिलाने वाले भारत माँ के सच्चे सपूत नहीं, बुंदेलखंड की राजकुमारी मस्तानी पे जान लूटने वाले एक अय्याश राजा होंगे। ऐसे ही सेक्युलर लोग भगवा आतंकवाद जैसे काल्पनिक लोक जड़ते हैं। रहने दीजिये कश्यप भाई, आपके टिन्नु से मस्तिष्क में ये बात आने भी नहीं वाली।
21वीं सदी के दो दशक बीते हैं, पर इस्लामिक साम्राज्यवाद का खतरा सम्पूर्ण विश्वमंडल पर छाया है। जहां सम्पूर्ण यूरोपियन महाद्वीप और अफ्रीका बिना लड़े ही हथियार डाल चुके हैं, वहीं इजराएल, जापान, रूस सरीखे कुछ देश अकेले ही दम इस आँधी से लड़ रहे हैं। भारत भी इस युद्ध में पीछे नहीं है, पर ऐसे सेक्युलर हिन्दू तो जयचंद सरीखे दुश्मन के तलवे चाटने को पुण्य समझते हैं। जब ऐसे नमूने अपने देश में हों, तो दुश्मनों की क्या ज़रूरत भाई? किसी शायर ने सत्य ही कहा है,
“हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था,
हमारी कश्ती तो वहाँ डूबी,
जहां पानी कम था।“
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