केरल में कांग्रेसियों द्वारा मोदी विरोध में गाएँ के बछड़े को काटे जाने के बाद से बड़ा हंगामा मचा है। लगभग सभी वर्गों से कांग्रेस को गालियाँ मिल रही हैं, कोई इस घटना को कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील बता रहा है, तो कोई कांग्रेस को हिन्दू विरोधी पार्टी बता रहा है। यह सभी बातें सही भी हैं। लेकिन हमें अपने विश्लेषण को यही विराम नहीं देना चाहिए। क्यों भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी जिसका की चुनाव निशान कभी गाएं व बछड़े की जोड़ी हुआ करता था ने सरे बाज़ार ऐसा कुकृत्य किया। जो काम कभी अंग्रेजों ने भी नहीं किया वो काम कांग्रेस ने मोदी राज में क्यों किया। गहरे में जाकर विश्लेषण करें तो हमें पता लगेगा का यह कोई हिन्दू विरोधी मानसिकता नहीं है अपितु व्यक्ति विशेष की पूजा द्वारा अपना स्वार्थ साधने की अंधी दौड़ है।
यहाँ हिन्दू ही अपने स्वार्थ के कारण किसी विशेष व्यक्ति की गुलामी को अपने भविष्य का आश्रय मान लेता है और धर्म विरोधी, न्याय विरोधी, हिन्दू विरोधी हो जाता है। चलिए इस बात तो और अच्छी तरह समझने के लिए कुछ उदाहरणों को देखते हैं।
राजस्थान, मध्य प्रदेश व हरियाणा में एक पर्यावरण प्रेमी जाति है जो अपने संस्थापक गुरु जम्भेश्वर जी के बताए 29 नियमों पर चलने के कारण बिश्नोई (बीस + नो) कहलाते हैं। गुरु जम्भेश्वर जी ने 27 वर्ष की आयु तक गाएँ चराई। अपने दिए इन 29 नियमों में से 8 नियम जैविक (पेड़ पोधों) व जानवरों के रक्षा के लिए हैं और 7 नियम धर्मानुसार समाज की रक्षा के लिए हैं। लेकिन आज हरियाणा में बसने वाला बिश्नोई समाज कांग्रेस के खेमे में खड़ा दिखाई देता है क्योंकि अभी कुछ दिन पहले कुलदीप बिश्नोई (भजनलाल के बेटे) ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। आज बिश्नोई समाज जो अपने नियमों के मुताबिक एक गौरक्षक समाज है गौहत्यारी कांग्रेस का समर्थन कर रहा है। अंधभक्ति इतनी है कि पूछिए मत। कहा जाता है कि एक बार किसी पार्टी में भजन लाल ने वेटर को कहा कि ”मैं वही खाऊंगा जो राजीव गाँधी जी खा रहे हैं” उस समय राजीव जी की प्लेट में बीफ (गौ मांस) था। पर चाटुकारिता की सभी हदें पार करके भजनलाल जी ने गोमांस खा लिया। इस खबर के बाहर आने के बाद भी बिश्नोई समाज का समर्थन उन्हें मिलता रहा। आज उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई भी उसी अंध समर्थन के उतराधिकारी बन बैठे है। अब देखा जाए तो आज बिश्नोई समाज कांग्रेस का साथ देकर गोहत्या का मूक समर्थन कर रहा है पर इसका मतलब यह नहीं कि वे हिन्दू विरोधी हो गए हैं। बस व्यक्ति विशेष की भक्ति में ही लीन हैं।
यही बात आज के जाट समाज पर भी लागू होती है। जो आज बीजेपी विरोध में इतने अंधे हो गए हैं कि कुछ राष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष के साथ खड़े दिखाई देते हैं। बीजेपी से उनकी नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि आज जाट बाहुल्य हरियाणा का मुख्यमंत्री एक नॉन-जाट है। इसी जाट कुल ने बारहवीं शताब्दी में एक गौरक्षक वीर को जन्म दिया था। जो वर्तमान में एक लोकदेवता माने जाते हैं। उनका नाम था ‘वीर तेजाजी’। उन्होंने गौ रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। जाट समाज व निम्न वर्ग उनकी बहुत इज्ज़त करता है। उनकी पूजा की जाती है। लेकिन आज यही जाट समाज गौरक्षक तेजाजी को भूल कर गौहत्यारी कांग्रेस पार्टी के उस ‘भूपेन्द्र सिंह हुड्डा’ को अपना नेता मानता है जो केरल गौहत्या काण्ड पर मौन हैं। यहाँ भी अर्थ यह नहीं है कि हर हुड्डा या चौटाला समर्थक जाट भाई हिन्दू विरोधी हो गया है। बस देशप्रेम से कहीं अधिक व्यक्ति विशेष या कहें कि जाति विशेष का मोह हो गया है।
अब गौपालक ‘यदुकुल’ यानि यादवों के बात की जाए। जो अपने आप को भगवान कृष्ण की संतान मानते हैं। गोपालकों में सबसे अग्रणी हैं। वे यादव आज लालू प्रसाद यादव में एक देवता को देखते हैं। वो लालू प्रसाद यादव जिन्होंने बीफ मुद्दे पर सवाल के जवाब में कहा था कि “हिन्दू भी तो बीफ खाता है।” लालू प्रसाद यादव हर मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई देते हैं। असल में लालू व कांग्रेस के विचारों में इतनी समानता है कि कांग्रेस ने कभी लालू को अलग माना ही नहीं। अब यहाँ अर्थ यह नहीं लगाना चाहिए की हर लालू समर्थक यादव हिन्दू विरोधी है। नहीं!! यहाँ भी बस वही स्वार्थवश जाति समीकरण धर्म से बड़ा हो जाता है।
कांग्रेसियों ने भी जो काम केरल में किया है वो सिर्फ हाई कमान को खुश करने के लिए किया है। उन्हें पता है कि इस बात से सोनिया जी खुश होंगी भले ही मीडिया में वो इस काण्ड कि भर्त्सना करें लेकिन वे एक दिन उन्हें इसका इनाम अवश्य देंगी। यहाँ कोई हिन्दू विरोध नहीं है बस कोरा निजी स्वार्थ है। आपको क्या लगता है जगदीश टाईटलर या सज्जन कुमार को कोई निजी रंजिश थी सिक्खों से? नहीं, उन्होंने तो यह सब केवल हाई कमान को खुश करने के लिए किया था। जिसका इनाम भी बाद में उन्हें दिया गया।
हिन्दुओं में ऐसे अनेको उदाहरण और भी गिनाए जा सकते हैं। आज भारत देश के एक कोने में सरे आम चुनौती देकर कोई गौ माता की हत्या केवल इसलिए कर पाता है क्योंकि हर हिन्दू अपनी जाति की पहचान को सबसे आगे रखता है। वो अपने आप को राजपूत, ब्राह्मण, जाट, बनिया, यादव पहले मानता है फिर बाद में अपने आप को हिन्दू मानता है। अपने स्वार्थ को पहले सिद्ध करता है। इस स्वार्थ सिद्धि के रास्ते में यदि धर्म की दीवार आती है तो उसे भी बिना संकोच लांघ जाता है।
उम्र भर ग़ालिब यहि भूल करता रहा,
धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा।