छत्तीसगढ़ में 2 बड़े नक्सली हमले के बाद शासन और प्रशासन लगातार नक्सल समस्या को ख़त्म करने के लिए अपनी गतिविधियों को और तेज कर चुका है। लेकिन समस्या यहाँ जंगली नक्सलियों से ज्यादा शहरों में बैठे बौद्धिक नक्सलियों से है। ऐसे वामपंथी जो इन उग्र वामपंथियों का समर्थन करते हैं, इनकी हिंसा को बढ़ावा देते हैं और तो और सरकार का विरोध कर नक्सली गतिविधियों को रोकने वाले अफसरों का मानवाधिकार के नाम पर तबादला करवाते हैं। ये शहरी नक्सली किसी आतंकवादी से कम खतरनाक नहीं हैं। भारत को तोड़ने के नारों का समर्थन करते हैं, कश्मीर की आज़ादी की मांग करते हैं, बस्तर को आज़ाद कराना चाहते हैं, दरअसल यह लोग वैचारिक दलाली के निम्नता पर हैं। अभी बस्तर क्षेत्र में नक्सली लीडर ‘पोडियम पांडा’ की गिरफ्तारी हुई है। इस नक्सली नेता ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया और विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में बैठी नंदिनी सुंदर जैसे शहरी नक्सलियों की पूरी पोल खोली है।
सुकमा में हुए नक्सली हमले और 2010 में ताड़मेटला हत्यकांड में शामिल नक्सली पोडियम पांडा ने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रफेसर नंदिनी सुंदर और मनवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया उसके जरिए बड़े नक्सल नेताओं के संपर्क में थीं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांडा ने पत्रकारों से कहा कि रामन्ना, हिडमा, पापराव, आयुतु जैसे बड़े नक्सली नेताओं और इन शहरी वामपंथियों के बीच में वह एक ब्रिज की तरह काम कर रहा था, और वह दिल्ली और बाहर से आए अलग अलग कार्यकर्ताओं और विश्वविद्यालयों के शिक्षको को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाकर जंगलों के बीच बड़े नक्सली नेताओं से विशेष मुलाक़ात के लिए खुद लेकर जाता था।
उसने यह भी कहा कि दिल्ली विवि के प्रोफ़ेसर नंदिनी सुंदर और कार्यकर्ता बेला भाटिया को भी उसने नक्सली नेताओं से मुलाक़ात कराने अपने साथ ले जा चुका है।
कुल मिलाकर पोडियम पांडा के अनुसार वह शहरी और जंगली नक्सलियों के बीच के लिंक की तरह काम करता था। पांडा बुरकापाल घटना में शामिल था और सीआरपीएफ के जवानों पर हमला किया था। वह 2010 के ताड़मेटला हत्याकांड में भी शामिल था जिसमें 76 जवानों की मौत हो गई थी।
पोडियम पांडा ने सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेमन का अपहरण भी कर लिया था। बस्तर संभाग के अंदर आने वाले चिन्तगुफा क्षेत्र का वह सरपंच भी था, अभी उसकी पत्नी सरपंच हैं। अभी चिन्तगुफा में हुए नक्सली हमले के ब्लूप्रिंट को नक्सली कमांडर आयुतु ने बनाकर पांडा को ही सौंपा था, और मौका मिलते ही नक्सलियों ने घात लगाकर जवानों पर हमला कर दिया था।
1 लाख रुपये का इनामी नक्सली पोडियम पांडा गत 2 वर्षों से समर्पण करना चाहता था, लेकिन बड़े नक्सलियों को इसकी भनक लगने के कारण वह 2 वर्षों से अंडरग्राउंड था। नक्सली पांडा की भारत के बड़े शहरों में बैठे शहरी नक्सलियों और जंगल में बैठे माओवादियों में अच्छी पैठ थी। इसने नक्सलियों की बहुत सी लड़ाइयों में हिस्सा लिया था। लेकिन पांडा के अभी हाल ही के बयान से यह स्पष्ट है कि भारत सीमा के बाहर ही नहीं बल्कि अंदर भी शत्रुओं से घिरा हुआ है जो पैसे के लालच और वैचारिक दलाली के लिए देश को तोड़ने में ही आतुर हैं।
दिल्ली में बैठे नंदिनी सुंदर जैसे वामपंथियों की टोली से कई बार बस्तर की आज़ादी की मांग भी उठ चुकी है। जेएनयू में तो 76 जवानों के मारे जाने पर बाकायदा पार्टी भी हुई थी। सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कहा था कि जेएनयू नक्सलियों का अड्डा बन चूका है। आखिर दिल्ली में बैठे इन शहरी नक्सलियों पर कब लगाम लगाई जायेगी? नंदिनी सुंदर और बेला भाटिया जैसे लोग जो मानवाधिकार की आड़ में खुले तौर पे नक्सलियों का समर्थन करते हैं उनको सजा मिलनी आवश्यक है। ऐसे शहरी नक्सली जो सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बस्तर जैसे क्षेत्रों में बैठे हैं वो वहाँ पर रहने वाले आदिवासियों का बुरी तरह ब्रेन वाश कर उनका इस्तेमाल करते हैं।
सुरक्षा बलों ने अभी बस्तर में 16 लाख के इनामी नक्सली को मार गिराया था और झारखंड में 10 लाख के इनामी नक्सली को धर दबोचा था जिसके तुरंत बाद सुकमा क्षेत्र में ही 20 अन्य नक्सलियों को जवाबी कार्यवाही में मौत की घाट उतारा था, इन सब से डरकर 22 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। प्रशासन अब सीधे लड़ाई के मूड में नज़र आ रही है, लेकिन इन माओवादियों से निपटने की क्रिया में शहरी नक्सलियों से निपटना भी अतिआवश्यक है।