वामपंथियों और जिहादियों द्वारा अलगाववादियों और नक्सलियों के समर्थन से कश्मीर से लेकर बस्तर तक भारत में लगातार अस्थिरता का माहौल पैदा किया जा रहा है। कुछ समय पूर्व ही कश्मीरी पत्थरबाजो द्वारा कैमरे के सामने रुपये लेकर पत्थरबाजी करने की बात कबूली गयी थी, अभी फिर एक स्टिंग ऑपरेशन चर्चा में है। इंडिया टुडे द्वारा किये गए स्टिंग ऑपरेशन में अलगाववादी नेताओं की पूरी पोल खुली है कि किस तरह से वो पाकिस्तान से आयतित पैसों से कश्मीर को बर्बाद कर रहें हैं। पहले भी यह चर्चा में रहा है कि कश्मीर में होने वाली अशांति के पीछे पाकिस्तान का हाथ हैं लेकिन इस स्टिंग वीडियो ने इसे और पुख्ता कर दिया है कि कश्मीर घाटी में होने वाली हिंसा और अराजकता के पीछे सीधे सीधे पाकिस्तान का हाथ है।
स्टिंग विडियो:
हुर्रियत के नेता गिलानी के प्रांतीय अध्यक्ष नईम खान ने वीडियो में कबूल किया है कि पाकिस्तान और आतंकी संगठनों से उसे पैसे आते हैं। नईम खान ने कहा कि ‘पाकिस्तान पिछले 6 साल से कश्मीर में बड़ा प्रदर्शन खड़ा करने के लिए हाथ-पैर मार रहा है, पाकिस्तान से आने वाला पैसा सैकड़ों करोड़ से ज्यादा है, लेकिन हम और ज्यादा की उम्मीद करते हैं।’ नईम खान ने बताया कि पैसे सऊदी के रस्ते दिल्ली होते हुए कश्मीर तक आते हैं, और पैसे सबसे पहले गिलानी के पास ही पहुँचते हैं, उसके बाद इसे यासीन मालिक और अन्य अलगाववादी नेताओं तक पहुँचाया जाता है, पिछले कुछ समय में ही 400 करोड़ रुपये पाकिस्तान से भिजवाया गया है।
नईम खान ने बड़े गर्व के साथ कश्मीर में सर्दियों के चार महीनों में 31 स्कूलों को आग लगाने और लगभग 110 सरकारी इमारतों को भी नुकसान पहुँचाने की घटना का ज़िक्र किया। उसके अनुसार स्कूल, पुलिस स्टेशन, बस, रेलवे सभी जगह अफरातफरी मचाकर अव्यवस्था लाया गया जिससे घाटी में परेशानी बानी रहे।
नईम खान ने सैयद अली शाह गिलानी का संपर्क सीधे पाकिस्तान से जोड़ा है। खान ने कहा, ‘गिलानी का पूरा संपर्क पाकिस्तान में है। हमारे लोग वहां हैं। अब वो चाहे नवाज शरीफ के साथ हों या दूसरों के साथ। गिलानी साहब हफीज सईद के साथ भी किसी तरह संपर्क में हैं, सईद की ओर से गिलानी को कश्मीर में फंड दिया जाता है। मैं हर चीज के बारे में नहीं पूछता लेकिन जहां तक मेरी जानकारी में है, ये रकम 10-20 करोड़ रुपए से ज्यादा है।’ नईम खान ने यह भी कहा कि 400 करोड़ अभी और मिलते हैं तो घाटी में 3-4 महीने हिंसा बढ़ाई जा सकती है।
अब जब अलगाववादियों की पोल खुलकर सामने आ गयी है तो सरकार को जनता के सामने इनका असली चेहरा लाना चाहिए। जब इन पत्थरबाजो से लेकर अलगाववादियों तक पैसों की फंडिंग की जाती है तो यह भी सोचने वाली बात है कि मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में बैठे इनके हमदर्दों को भी कहीं कुछ मिलता तो नहीं ? जिस तरह के लोग इन अलगाववादियों का समर्थन करते हैं, कश्मीर में जाकर उनके साथ समय बिताते हैं, उनके लिए जनता में सकारत्मक छवि बनाने की कोशिश करते हैं, उनपर भी शक किया जाना चाहिए कि उनके यह सब करने के पीछे की मंशा क्या है और इससे उनका क्या फायदा होता है ?
पत्थरबाजों पर पैलेट गन चलाने के निर्णय के बाद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता और मीडिया समूह सेना और सरकार के विरोध में खड़े हो गए थे लेकिन सेना पर हमले के समय चुप्पी साध कर बैठ जाते हैं। पैलेट गन चलाने का विरोध आज पत्थरबाजों के मन में आत्मविश्वास जगाता है जिससे वो फिर से सेना पर हमला करने से नहीं चुकते। घाटी के विधायक इंजीनियर रशीद तो खुलेआम कहते है कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, वहीं वामपंथ की सिपहसलार अरुंधति राय कहती है क़ि 70 लाख सैनिक भी कश्मीरी अलगाववादियों का सामना नहीं कर सकते। आखिर यह सब कहने की हिम्मत और सोच आती कहाँ से हैं ? सरकार को इनके बने एनजीओ की भी जाँच करनी चाहिए कि कहीं पाकिस्तान द्वारा इनको भी फंडिंग तो नहीं की जाती। कुछ बड़े पत्रकारों द्वारा आतंकी की मौत पर उसे शिक्षक के बेटे के रूप में पेश किया जाता है, सेना के खिलाफ माहौल बनाया जाता है, उनको भी जाँच के दायरे में लाना चाहिए।
कश्मीरी अलगाववादियों की हक़ीक़त सामने आने के बाद भी वामपंथी मीडिया समूह इस मुद्दें पर अनजान बना हुआ है। भारत विरोधी नारे और कश्मीर को आज़ाद कराने वाले लाल क्रांतिकारियों के संगठन के भी इसमें संलिप्त होने की जाँच होनी चाहिए। आखिर कब तक पैसे के लिए देश को बर्बाद होते देखा जायेगा ? जन्नत को इन जिहादियों ने जहन्नुम बना जे रख दिया है।