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वैसे अगर सही सही कहूं तो गलती अपने राईट विंगर बंधुओं की ही हैं

Amol A Siddhamshettiwar द्वारा Amol A Siddhamshettiwar
24 May 2017
in व्यंग
लिबरल
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बचपन से सिखाया जाता है गाली देना बुरी बात है, गाली नहीं देनी चाहिए। पर पता है लिबरल भारत की सोच कुछ अलग है। इस भारत में एक ही गाली को विविध परिस्थितियों में अलग-अलग तरह से देखने और उसका मूल्यांकन करने की शिक्षा दी जाती है। कुछ विशिष्ट लोगों के मुह से हमारे बुद्धिजीवियों को जो गालियाँ काफी कूल लगती है, हिन्दू विचारधारा वाले लोगों से उनसे कतई सौम्य भाषा वाली टिप्पणियां भी काफी वीभत्स लग सकती है?

ऐसी ही कुछ गलती कर दी अभिजीत भट्टाचार्य नें जो की एक दक्षिणपंथी व्यक्ति हैं और गायक भी। अब कौन अभिजीत ये न पूछिये, क्योंकि अगर आपको ऐसे पूछने की जरूरत पड़ती है इसका मतलब या तो आपको अच्छा संगीत पसन्द नहीं है या फिर आप लिबरल हैं पर इससे क्या फर्क पड़ता है गाली तो गाली होती है, मतलब जब तक वो किसी दक्षिणपंथी के मुह से निकलती रहे, हाँ अगर किसी लिबरल या बुद्धिजीवी के मुह से निकले तो वही शब्द कूल बन सकता है पर सिर्फ वो जब तक लिबरलों के मुह से निकलता रहे। अगर फिर से वही शब्द दक्षिणपंथियो के मुह से निकला तो वो गाली बन जायेगा। समझे ? नहीं समझे ! अरे वो होता है न कोई भी विज्ञापन के नीचे लिखा हुआ *Conditions Apply वैसा ही है ये सब। मतलब देखिये ना, वो JNU वाली शैला रशीद को ले लीजिये या फिर Huffpost वाली संजुक्ता को, दोनों की ट्विटर गालियों से ओह माफ़ कीजियेगा कूल शब्दों से भरी पड़ी है पर इससे किसी को आपत्ति नहीं। और हो भी क्यों, आखिर दोनों लिबरल है, दोनों बुद्धिजीवी है। कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है के इनकी भाषा से किसी को आपत्ति हो ? अरे भाई ये उनकी अभिव्यक्ति की आजादी है। तो फिर अभिजीत की ? यार अब तुम मुद्दे से भटक रहे हो। बात अभिव्यक्ति की आजादी की चल रही है जो की सिर्फ और सिर्फ लिबरल्स की होती है। समझे ?

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अब हमारे परेश भाई को ही ले लो। इन्हें पता नहीं क्या जरूरत थी ये कहने की के आर्मी जीप से अरुंधति रॉय को बांधना चाहिए था। ऐसा कोई कहता है भला। तो क्या हुआ अगर अरुंधति रॉय नक्सलियों से लेकर आतंकियो की तक पैरवी करती है, तो क्या हुआ वो पाकिस्तान में जा कर भारत विरोधी बात करती है, तो क्या हुआ वो हमारे जवानों के खिलाफ बोलती और लिखती है, तो क्या हुआ अगर वो ये कहती है के “सात हजार क्या सत्तर लाख भी फौज आ जाये तो कश्मीर को आजाद होने से नहीं रोक सकती”। आखिरकार वो लिबरल है यार, समझा करो। उपर से महिला है वो अलग। मतलब सोचो कितना दुर्लभ मिश्रण है, लिबरल ऊपर से महिला। समझना चाहिए था बाबू भैय्या को, आखिरकार अरुंधति ने जो कहा वो उनका संविधानिक अधिकार है। अब अरुंधति के बयानों से कुछ लोग प्रवृत्त हो कर दो चार जवानों को मार भी डाले तो क्या, मतलब वो तो लिबरल है ना, गलती तो जवानों की रहेगी।

क्या इतना काफी नहीं था के सोनू निगम जैसे भी लोग आ गए, लिबरल्स की भाषा में कहा जाये तो फेल्ड सिंगर। अब इन्हें क्या जरूरत थी सबेरे होने वाली प्रार्थनाओं के बारे में बोलने की, मतलब बोलना ही था तो बस मन्दिर और गुरूद्वारे में होने वाली प्रार्थनाओं के बारे में बोलते, अजान को उसमे डालने की क्या जरूरत थी।

क्या उन्हें पता नहीं की विरोधी टिप्पणियॉ भी इस देश में एक धर्म विशेष पे नहीं की जाती और जो करता है वो अपने आप ही रिग्रेसिव घोषित हो जाता है। अब ये भी कोई कहने की बात है। एक तो बॉलीवुड से हो और इतना भी नहीं पता। और अब इन्होंने क्या किया तो अभिजीत भट्टाचार्य के समर्थन में ट्विट्टर छोड़ दिया। ऐसा कोई करता है भला ? मतलब आपको तो ये करना था के अभिजीत के खिलाफ एक दो ट्वीट कर देते, पर नहीं आपको तो अचानक प्रोग्रेसिव से रेग्रेसिव बनना था ना। अरे भाई सोनू निगम लिबरल बनो क्या रखा है ये देशभक्त वगैरह बनने में। क्यों पड़ रहे हो ये समाज वगैरह सुधरने के चक्कर में। और समाज सुधारक वगैरह बनना ही है तो बस एक्टिंग करो बनने की, हमारे फर्जी बुद्धिजीवियों की तरह, असल में न बनो।

वैसे आजकल ना ये राष्ट्रीयता और देशभक्ति का वायरस कुछ ज्यादा ही फ़ैल रहा है, कभी कोई फेल्ड क्रिकेटर गौतम गंभीर जिसने हमें 2011 वर्ल्डकप का फाइनल जिताया था उठ खड़ा होता है मेजर गोगोई के समर्थन में, तो कोई नॉट सो फेमस एक्टर जिसके नाम बेबी, एयरलिफ्ट और जॉली LLB जैसी बहेतरीन अदाकारी वाली फिल्म है वो देश के जवानों के लिए खड़ा हो जाता है, तो कभी एक अनपढ़ क्रिकेटर जिसके नाम 2 तिहरे शतक और अनगिनत रिकॉर्ड है देश की बात करता है, तो कभी राष्ट्रीयकुल स्पर्धा में पदक दिलाने वाली पहलवान फोगाट बहने और ओलिंपिक में मेडल दिलवाने वाले पहलवान योगेश्वर दत्त देश हित में बोलते है। मतलब हद है यार लिबेरलिस्म भी कोई चीज है के नहीं। ऐसे ही चलता रहा तो JNU और जाधवपुर जैसे लेफ्टिस्ट शिक्षा देने वाली संस्थाये तो बन्द करवानी पड़ेगी। और फिर देशद्रोहियों, नक्सलियों और आतंकियो की पैरवी कोण करेगा ? अरे भाई बात को समझो जरा।

Tags: अक्षय कुमारअभिजित भट्टाचार्यपरेश रावललिबरलसोनू निगमहिलाओ
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