गोवा विधानसभ चुनाव में सबसे ज्यादा सीट लाने के बाद भी सरकार बनाने में नाकाम रहने वाली कांग्रेस ने अब पार्टी में उलट फेर शुरू कर दिया है | कांग्रेस ने पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह को गोवा और कर्नाटक के प्रभारी पद से हटा दिया है | दिग्विजय सिंह से न केवल गोवा बल्कि कर्नाटक के प्रभारी महासचिव की जिम्मेदारी भी वापस ले ली गयी है |जबकि संगठन में कुछ अन्य बदलाव भी किये गये हैं | पार्टी में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद संगठन स्तर पर बदलाव की प्रक्रिया को लेकर कई दिन से अटकलों का बाजार गर्म था | पार्टी के भीतर फेरबदल की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एआईसीसी सचिव ए चेला कुमार को गोवा का प्रभार सौंपा | पार्टी ने के सी वेणुगोपाल को कर्नाटक का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया है | कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तथा पार्टी राज्य में फिर से सत्ता हासिल करने की तैयारियों में जुटी है |
कुछ वक्त पहले गोवा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष लुइजिन्हो फालेरियो ने गोवा में सरकार न बना पाने को लेकर दिग्विजय और गोवा स्क्रीनिंग कमिटी के इन्चार्ज केसी वेणुगोपाल पर हमला किया था। फालेरियो ने आरोप लगाया था कि 21 विधायकों का समर्थन होने के बावजूद दिग्विजय ने राज्यपाल के पास जाने से रोक दिया था। दिग्विजय का सुझाव था कि सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के निमंत्रण का इंतजार करना चाहिए। हम सरकार बनाने का दावा करना चाहते थे , लेकिन दिग्विजय सिंह ने कहा कि नियमानुसार राज्यपाल हमें बुलाएंगी। दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने भी गोवा में सरकार बनाने के बाद दिग्विजय सिंह पर चुटकी ली थी | गोवा के मुख्यमंत्री बने मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि दिग्विजय सिंह गोवा में छुट्टी मना रहे थे | ऐसे में जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं तो कांग्रेस गोवा की तरह यहां किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती, शायद इसलिए दिग्विजय सिंह से दोनों राज्यों का प्रभार छीन लिया गया है |
दूसरी तरफ कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पर तमाम चुनाव हारने के बाद पार्टी के अन्दर से आवाजें उठने लगी है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान दोहरा नजरिया अख्तियार कर रहा है |
जब एक चुनाव में अच्छी सीटें लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस के प्रभारी रहे दिग्विजय सिंह को हटा दिया जाता है तो क्यों न २००९ के बाद से एक के बाद एक चुनाव हारते हुए आगे बढ़ रहे राहुल गाँधी को पद से हटाये जाने के बजाये उन्हें प्रमोशन दे दिया जाता है ?
ये दिखाता है कांग्रेस में कोई लोकतंत्र नहीं है बल्कि एक ही परिवार यहाँ फैसला लेता है | जब राहुल गाँधी के नेतृत्व में २०१२ में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बावजूद कांग्रेस ने उन्ही के नेतृत्व में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात फिर २०१४ का आम चुनाव लड़ा और बुरी तरह हारी | इसके बावजूद महाराष्ट्र, हरियाणा और अन्य चुनाव फिर राहुल गाँधी के नेतृत्व में लडें गए और इन सबमे राहुल गाँधी को मुंह की खानी पड़ी | इन सब चुनाव में राहुल गाँधी ने कांग्रेस को न सिर्फ हराया बल्कि कांग्रेस ने अपना सबसे न्यूनतम प्रदर्शन किया है | बावजूद राहुल गाँधी को हटाया नहीं गया न ही किसी ने ऐसा करने के लिए पार्टी के अन्दर से आवाज उठाई है | जिसने आवाज उठाई उन्हें पार्टी से बहार का रास्ता दिखा दिया गया |
भले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनकी हार का बचाव करने में लग जाते है लेकिन जनता सब समझ रही है। पहले उत्तर प्रदेश के कुछ इलाको से और फिर अमेठी से भी आवाज़ उठने लगी थी । अब तो कई बड़े नेता भी उनके खिलाफ अपना मुंह खोलने से डरते नहीं है। कई जगह देखा गया है कि चुनावी उम्मीदवार अपने क्षेत्र में राहुल गांधी के प्रचार करने से परहेज करते दिखाई दिए। हाल ही में दिल्ली कांग्रेस की पूर्व महिला अध्यक्ष बरखा सिंह ने राहुल गांधी कार्यशैली पर ही नहीं सीधे उनके मानसिक संतुलन पर ही सवाल खड़े कर दिए उन्होंने सीधे कह दिया कि राहुल गांधी मानसिक रूप से बीमार है और कांग्रेस को अब राहुल गाँधी की जगह विकल्प तलाश कर कांग्रेस को राहुल गांधी मुक्त कैंपेन चलाना होगा। इसके बाद बरखा सिंह को पार्टी से निकल दिया गया था | बरखा सिंह के बयान से ये साफ होता दिख रहा है कि भले ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो लेकिन कांग्रेस में अब भी राजशाही ही चलती है। अगर दिग्विजय सिंह बागी स्वर उठाये तो कांग्रेस उनकी भी छुट्टी कर देगी|
कुछ समय पहले बरखा सिंह की तरह ही अरविंदर सिंह लवली ने भी राहुल गांधी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और उन्हें भी पार्टी छोड़नी पड़ी थी। अब बरखा सिंह का आवाज़ उठाना और सच्चाई बयां करना और उन्हें पार्टी से निकाला जाना दिखाता है की कांग्रेस पार्टी नही एक राजशाही घराना है। विरोधी राहुल को अपने पार्टी का स्टार प्रचारक तक कहते नजर आते है | सोशल मीडिया पर राहुल को बीजेपी का स्टार प्रचारक और कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करने में मोदी के साथ मुख्य भूमिका में बताया जाता है। माने कांग्रेस को जितना खतरा बीजेपी से है उससे भी ज्यादा खतरा खुद राहुल से है |
आपने उत्तर प्रदेश के चुनावो में भी देखा होगा कि राहुल की नाकामयाबी के चलते प्रियंका की रैलियां करवाने के लिये प्रत्याशियो ने बहुत ज़ोर दिया था, पर कांग्रेस नेतृत्व उन्हें कोई भी जिम्मेदारी देने से अभी परहेज किया था । सवाल ये उठता है की ऐसी कौनसी मज़बूरी है कांग्रेस की राहुल गाँधी एक के बाद एक न्यूनतम और निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद उन्हें पार्टी में तवज्जो दी जाती है और उन्हें पद से हटाने की बजाये उन्हें बड़ा पद दिया जाता है? ज्ञात हो इसके पहले भी राहुल के नेतृत्व में अनेक चुनाव हार चुकी कांग्रेस ने राहुल गाँधी को महासचिव से उपाध्यक्ष बना दिया था, लेकिन तमाम उठते सवालों के बावजूद राहुल गांधी का न तो पार्टी में पद कम हुआ है न उनका कद कम हुआ है बल्कि उन्हें आनेवाले समय में और बड़ा पद याने पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है | पार्टी के शीर्ष नेता का एक चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन के उभरने के बावजूद पद से हटाया जाना और राहुल गाँधी के नेतृत्व में दर्जनों चुनाव हारने के बावजूद अध्यक्ष पद के लिए प्रोजेक्ट करना कांग्रेस में लोकतंत्र की कमी हो दर्शाता है | यही हाल रहा तो कांग्रेस को लोकसभा में ४४ से ४ होने में वक्त नही लगेगा |