दिल्ली के तीनों निगमों के 270 सीटों के लिए हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी को महज 48 सीटें ही मिल पाईं थी। हार के बाद आम आदमी पार्टी के कई नेताओं ने इस्तीफा दिया है। इनमें संजय सिंह, दुर्गेश पाठक, दिलीप पांडेय, अलका लांबा आदि शामिल गौरतलब है कि एमसीडी चुनाव में हार के बाद ‘आप’ में कोहराम मचा है। एक तरफ कुमार विश्वास के उठाए सवालों पर केजरीवाल सरकार में मंत्री कपिल मिश्रा समर्थन करते नजर आए, वहीं दूसरी तरफ जामिया नगर से विधायक अमंतुल्लाह खान ने विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। विधायक की मानें तो कुमार विश्वास पार्टी भाजपा के इशारे में आम आदमी पार्टी में फूट डालने की साजिश में जुटे हैं। आम आदमी पार्टी में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। अमानतुल्ला खान के बयान के बाद आप के बड़े नेता कुमार विश्वास नाराज़ हैं। जिन्हें मनाने में पूरी पार्टी जुटी हुई है।
अगर कुमार विश्वास के अतीत में झांककर देखे तो तो उनक कविताएँ, उनकी देशभक्ति भरी बातें, उनके सेना के प्रति अटूट प्रेम और बात बात पर देश और सेना पर नाज दर्शाता है की देशभक्ति से ओतप्रोत ये व्यक्ति किसी वामपंथी विचारधारा का नहीं हो सकता, भले ही पार्टी की विचारधारा से मेल करने के लिए उन्हें कभी कभी अपनी विचारधारा से अलग बयान देने पड़ते है वो एक अलग विषय है, लेकिन उनकी अपने व्यक्तिगत जीवन से ये लगता नहीं। जबकि आप आम आदमी पार्टी को देखे तो शायद ही पार्टी का कोई सदस्य या नेता देश, सेना और देश को आगे ले जाने के बारे में या देश के बारे में बतियाता हुआ मिलेगा। कुमार विश्वास अपने कवि युग से लेकर अबतक कुछ पार्टी के बयानों को छोड़ दे तो इस विचारधारा में पार्टी से अलग ही दिखायी देते है। शायद इसीलिए उन्हें राईट विंग समूह से जोड़कर देखा जाता है। आये दिन उनके और भाजपा में सम्बन्ध होने की बात को हवा दी जाती है।
जब केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दुबारा चुनाव हुए थे तब भी विश्वास पार्टी से नाराज चल रहे थे और वो पार्टी चुनाव में दिखाई नही दिए थे। भाजपा में जाने की अटकले तब भी चली थी। दरअसल कुमार विश्वास उस समय भी न तो पार्टी की किसी खास गतिविधि में शामिल होते दिखाई देते थे और न वह कोई प्रचार करते दिखे थे और वह भी उस समय के दौरान, जब पार्टी अपने काल की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ रही थी।
रह-रहकर अटकलें लगती रहती हैं कि क्या कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी के साथ बने रहेंगे या भाजपा में चले जाएंगे, क्योंकि वह अपनी विचारधारा से भाजपा के भी बेहद करीब माने जाते रहे हैं और भाजपा नेताओं से उनकी नज़दीकियां भी समय-समय पर सामने आती रही हैं। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कुमार विश्वास ने सैकड़ों जनसभाएं कर पार्टी के लिए खूब प्रचार किया था।
आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा था कि MCD चुनाव में ईवीएम ने नहीं, बल्कि जनता ने पार्टी को हराया।
विश्वास ने साथ ही कहा कि केजरीवाल को सर्जिकल स्ट्राइक पर पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला नहीं बोलना चाहिए था। जबकि मोदी सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के फैसले पर उनका यह स्टैंड पार्टी के विपरीत है क्योंकि आम आदमी पार्टी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना से प्रूफ मांगकर खुद की खूब किरकिरी करवाई थी। उनके ये बयान उन्हें भाजपा के राष्ट्रवादी विचारों से जोड़ती दिखाई देती है।
कुमार विश्वास ने कहा, ‘आम आदमी पार्टी में व्यापक बदलाव की कोशिश होनी चाहिए। हम ईवीएम के कारण नहीं हारे हैं। हमें जनता का समर्थन नहीं मिला है। हम अपने कार्यकर्ताओं के साथ ठीक से संवाद नहीं कर पाए। हमें यह तय करना होगा कि जंतर-मंतर पर प्रदर्शन हम ईवीएम के लिए करें या फिर भ्रष्टाचार, मोदी या कांग्रेस से लड़ने के लिए करें।’ कुमार विश्वास ने कहा कि कई फैसले बंद कमरों में भी लिये गये। उन्होंने कहा कि हार के बाद ईवीएम को निशाना बनाना गलत था, यह एक मुद्दा हो सकता है लेकिन हार का मुख्य कारण यह था कि हम लोगों और अपने कार्यकर्ताओं से कट गये।
उन्होंने टिकटों के बंटवारे में भी धांधली को लेकर अपनी नाराजगह जाहिर की और कहा कि पंजाब में तो आम आदमी पार्टी टिकटों का बंटवारा कांग्रेस की तर्ज पर हुआ। कहा कि सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोलना बिल्कुल गलत था। जहाँ एक और अपने मोदी विरोधी उटपटांग बयान और कभी सस्ती लोकप्रियता के चलते आम आदमी पार्टी के संयोजक और नेता देशविरोधी बयान देने हिचकिचाते नहीं वहीं दूसरी तरफ कुमार विश्वास पार्टी से हटकर शालीनता से हार को स्वीकार कर किसी राष्ट्रवादी नेता की तरह पार्टी से अलग विचारधरा में नजर आते है।
आम आदमी पार्टी की पूरी टीम में एक से एक नगीने है, सभी की वामपंथी मानसिकता दर्शाती है की पार्टी अल्ट्रा वामपंथी विचारधारा से ओतप्रोत है। देश और सेना के खिलाफ आवाज उठाना, ‘भारत तेरे तुकडे होंगे’ गैंग से सहमत होना, सेना से हर बात का प्रूफ मांगना ये सब उन्हें अल्ट्रा वामपंथी बनाता है। इसे भूलना नहीं चाहिए कि जेएनयू का छात्र कन्हैया और उमर खालिद ही वो शख्स थे जो तमाम राष्ट्रीयता से जुड़े विवाद के केंद्र में रहे है और उन्होंने पिछले साल कैंपस में देशद्रोही नारे लगाए थे। इसी के बाद इस पूरे मामले ने बड़े विवाद का रूप ले लिया था। उस वक्त केजरीवाल और राहुल गाँधी ने कन्हैया का समर्थन किया था लेकिन तब भी कुमार विश्वास ने पार्टी से सहमति नही दिखाई थी न ही केजरीवाल का और पार्टी के बाकि नेताओं का समर्थन किया था यही सब बातें उन्हें एक वामपंथी पार्टी से अलग दक्षिण पंथी राष्ट्रवादी विचारधारा का दिखाता है। ये सब देखकर तो फिलहाल यही लगता है कुमार विश्वास एक वामपंथी विचारधारा वाली पार्टी में न फिट होने वाला राष्ट्रवादी चेहरा है।