ये मामला पचास करोड़ का नहीं, नसीमुद्दीन के बसपा छोड़ने की वजह कुछ और ही है

मायावती नसीमुद्दीन

नसीमुद्दीन मायावती का खुलासा करते है कि बहन जी ने उनसे 50 करोड़ मांगे थे लेकिन वो बेचारे इतने गरीब और ईमानदार थे कि वो 50 करोड़ दे नही पाये और उनको बसपा से निकाल दिया गया।

जैसे ही सतीश मिश्रा ने मायावती के इस फैसले को सुनाया की नसीमुद्दीन को भृष्ट होने के कारण बेटे के साथ, पार्टी से निकाल दिया गया है, वैसे ही, जैसे हीरो हीरोइन को फिल्मों में पुनर्जन्म की याद आजाती है वैसे ही नसीमुद्दीन को वह सब याद आ गया, जो निकाले जाने से पहले मायावती ने किया और कहा था।

एक तटस्थ की हैसियत से देखा जाय तो नसीमुद्दीन ने ऐसा कुछ भी नही कहा है जो लोगो को मालूम नही था। मायावती के सभी समर्थकों और विरोधियों को बहुत पहले से यह मालूम था कि मायावती महाभृष्टतम राजनैतिज्ञ है।

उनका आज तक बाल बांका भी इसलिए नही हुआ है क्योंकि वह दलित वर्ग, जो उनका कट्टर वोटबैंक भी था, की शीर्षतम नेता रही है। इसमें खास बात यह थी उनका यह दलित वोटबैंक, उनके भृष्ट आचरण से न केवल सम्मोहित था बल्कि वह उस पर अभिमान भी करता था।

अब आज जब कुछ आबो हवा कुछ बदल गयी है और 2014 और फिर 2017 के चुनाव से यह सिद्ध हो गया है कि बहिन जी जिस दलित वोटबैंक की गारंटी पर सत्ता में या तो आती थी या राजनीति में प्रसांगिक रहती है, वह दरक गया है तब मायावती के चरण भाट भी मायावती पर चरण पादुका फेंकने की औकात में आगये है।

यदि सही परिपेक्ष में देखा जाय तो यही कहा जायेगा कि बहिन जी ने जो बोया था वही काट रही है और जिनसे बुआई कराई थी वही उनको अब काट रहे है। मेरा अपना मानना है कि न यह 50 करोड़ मांगने का मामला है और न ही यह दाढ़ी वालो का कुत्ता होने का मामला है। यह सीधा सा, भर भराते सम्राज्य के खजाने का लूट खसोट का मामला है।

मैंने नसीमुद्दीन द्वारा जारी ऑडियो रिकार्डिंग सुनी है लेकिन इस रिकार्डिंग में यह कही भी नही लगता है कि मायावती, नसीमुद्दीन से कोई हफ्ता वसूल रही है। मायावती वही मांग रही थी, जो नसीमुद्दीन ने उनके नाम पर कमाया था और उनके लिए संभाला था। आज नसीमुद्दीन को, उस रकम की याद नही है बल्कि उन्हें यह याद आया है की उनकी बेटी की बीमारी और मौत पर, बहिनजी ने उन्हें घर नही जाने दिया, उन्हें यह याद आया कि मुसलमानों को गाली देती थी और दाढ़ी वाले मौलानो को कुत्ता बोलती थी!

किसी को यह फर्क नही पड़ता है कि आज नासिमुद्दीन को क्या क्या याद आया क्योंकि जो आदमी अपने बच्चे की बीमारी और सुपर्दे खाक से ऊपर राजनीति को रखता है वह आदमी ही नही है। जो आदमी मायावती द्वारा मुस्लिमो को दी गयी गाली को अब याद कर रहा है वह आदमी सच्चा मुसलमान भी कैसे हो सकता है?

मामला बड़ा सीधा सा है। बहिन जी की राजनीति खत्म है और नसीमुद्दीन को मायावती या बसपा की दौलत जो उनको सहेजने के लिए दी गयी थी उसको वापस करने का कोई इरादा नही है। सत्ता से बढ़ती दूरी और विमुद्रिकरण की मार से बेहाल मायावती को दबे खजानों का ध्यान आया है और नसीमुद्दीन की यादाश्त उस खजाने को लेकर गायब हो गयी है।

इस पूरे मामले मे जहाँ मायावती की नाव डूब रही है वही सतीश मिश्रा की नाव भर रही है। नसीमुद्दीन को अच्छी तरह मालूम है कि उनकी पार्टी से निकलवाने में सतीश मिश्रा का महती योगदान है। नसीमुद्दीन के अलावा सतीश मिश्रा ही एक ऐसे शख्स है जो बसपा और मायावती के खजाने के राजदार है या उस खजाने तक उनकी पहुंच है।

यह पूरा मामला, मायावती द्वारा भृष्ट तरीको से कमाई गये और देश विदेश में छूपायी गयी माया का मामला है। इसमें न मायावती दलित है, न नसीमुद्दीन मुसलमान है और न सतीश मिश्रा ब्राह्मण है। ये सब भारतीय समाज द्वारा पैदा किये गये कोढ़ है।

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