बहुत से आरंभिक टेलेंट स्कूल अवस्था में ही मार दिए जाते हैं। अभिभावक यदि स्कूल में जाकर कहते हैं कि हमारी बेटी बहुत अच्छा गाती है, या डांस करती है, या दौड़ती है, या खेलती है, इसे स्कूल की और से बढ़ावा मिलना चाहिए। तो पता है स्कूल वालों का क्या रिएक्शन होता है? वो मन ही मन सोचते हैं कि “हाँ, हाँ क्यों नहीं आपकी बेटी जो है, यही तो है ‘स्टूडेंट ऑफ़ दी ईयर’, आपको तो ऐसा लगेगा ही। आप जैसे सत्तर आते हैं दिन में।”
लेकिन वो आपको मुहँ पर ऐसा न कह कर आपको “कुछ करते हैं” का झूठा आश्वासन देकर घर भेज देते हैं। फिर बात ठन्डे बस्ते में चली जाती है। क्योंकि बचपन से ही कोई मंझा हुआ नहीं होता, पॉलिश्ड नहीं होता, ऐसा धुरंदर नहीं होता कि दूर से ही चमक जाए। और ऊपर से क्योंकि आप अपने खून की तारीफ कर रहे हैं इसलिए कोई आपकी बात को सच नहीं मानता। और धीरे-धीरे वो जो हलकी सी हीरे की चमक कोयले में नजर आई थी वो गायब हो जाती है। अभिभावकों पर ‘आप तो ऐसा बोलेंगे ही’ का टैग लगा दिया जाता है ।
यदि केवल दलित ही अम्बेडकर को महान बताते तो क्या आज उनका इतना बड़ा नाम होता? क्या महाराणा प्रताप का भी प्रताप कम नहीं हो जाएगा यदि केवल राजपूत ही उनकी स्तुति करेंगे? क्योंकि तर्क तो यही दिया जाएगा न कि ‘आप तो ऐसा कहेंगे ही’, उनकी जाति के जो हैं।
यह एक मनोवैज्ञानिक युक्ति है। आम जनता उस व्यक्ति को इग्नोर ही करेगी जिसकी महानता बस उसके घरवाले ही बताते हों। यह बात हमारे देश के लेफ्ट लिब्रल्स अच्छी तरह से जानते हैं। सच को दबाने के बहुत तरीके होते हैं लेकिन सच को मारने का सबसे सफल व खतरनाक तरीका है उसे इग्नोर करना। उस पर “आप तो ऐसा कहेंगे ही” का टैग लगा देना।
वर्तमान में यह तरकीब रिपब्लिक टीवी पर अपनाई जा रही है। रिपब्लिक टीवी ने देश में हंगामा मचाया हुआ है। चंद दिनों में ही रिपब्लिक टीवी ने दिखा दिया है कि ‘इन्वेस्टिगेटिव जनरलीज़्म’ (खोजी पत्रकारिता) आखिर किस चिड़ियां का नाम है। लालू व डॉन शहाबुद्दीन कि वार्ता का टेप, सुनंदा हत्याकांड में थरूर का हाथ, गांधियों का इनकम टैक्स घोटाला, जाकिर नायक का धर्मांतरण का धंधा आदि बहुत सी ओरिजिनल स्टोरीज़ रिपब्लिक टीवी ने सबूतों व दस्तावेजों के साथ ब्रेक की हैं।
लेकिन शेष भारतीय मीडिया रिपब्लिक टीवी की हर स्टोरी को ऐसे इग्नोर कर रहा है जैसे के यह सब हुआ ही नहीं, सब मनघडंत है। एक पत्रकार जो निरंतर मिलने वाली धमकियों को भूल कर, अपना नाम व शोहरत दाव पर लगा कर खोजी पत्रकारिता में नए आयाम स्थापित कर रहा है पर उसी के हमपेशा लोग उसे इसलिए इग्नोर कर रहें है ताकि वो भुला दिया जाए।
यहाँ तक कि रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों के साथ अरविन्द केजरीवाल के अंगरक्षकों और शशि थरूर के समर्थकों ने धक्का मुक्की तक भी कर दी लेकिन फिर भी किसी अन्य मीडिया हाउस ने इस खबर को नहीं चलाया। जबकि हर पत्रकार पेशे से तो एक ही परिवार के सदस्य माने जाते हैं।
ऐसा वो इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि विदेशों से फंडेड लेफ्ट लिब्रल मीडिया घरानों ने सुनियोजित व संस्थागत तरीके से यह बात स्थापित कर दी है कि अर्णब गोस्वमी अर्थात रिपब्लिक टीवी ‘बीजेपी का माउथ पीस’ है। (जो कि सच नहीं है क्योंकि दुनिया ने अर्णब को बीजेपी के वक्ताओं पर आग बरसाते हुए भी देखा है) यहाँ तक कि कुछ स्वघोषित राष्ट्रवादी चैनल्स भी रिपब्लिक की स्टोरीज़ को इग्नोर कर रहे हैं।
बड़े ही सूक्ष्म रूप से रिपब्लिक टीवी को ‘आप तो ऐसा कहेंगे ही’ का टैग पहना दिया गया है।
झूठ, प्रोपेगेंडा, और TRP के लिए कुछ भी परोस देने वाले मीडिया के दौर में एक ऐसा चैनल आया है जो गंभीरता से देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए घोटालों व खतरों से जनता को अवगत करवा रहा है। बहुत दिनों बाद इस कोयले की खान में हीरे जैसा कुछ चमका है। कहीं इस चमक पर भी इग्नोरेंस की धुल भारी न पड़ जाए।
यदि सच को इसी तरह इग्नोर किया जाता रहा तो आने वाले समय में यह लेफ्ट लिब्रल लॉबी रिपब्लिक टीवी का वही हश्र करेगी जो इन्होंने सुदर्शन न्यूज़ का किया था। स्मरण रहे कि “अनभिज्ञता ही सत्य का एक मात्र अकाट्य उपाय है।”