जबसे निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव की तारीखें घोषित की है, जो प्रणब मुखर्जी के जाने के बाद नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी, तबसे दोनों दलों, पक्ष और विपक्ष में ज़बरदस्त गहमा गहमी चल रही है। इस बार बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार का मुकाबला संगठित विपक्ष से हैं [अगर कुछ पार्टी जैसे AIADMK और YSR काँग्रेस को छोड़ दें तो और बाकी पार्टियों ने एनडीए को समर्थन दिया है]
संगठित विपक्ष इस बार तो एक तगड़े मुक़ाबले के लिए कमर कसके बैठी है, और अगर सूत्रों की माने, तो हर किस्म के समझौते के लिए लालू प्रसाद यादव और वामपंथी नेता सीताराम येचूरी जैसे विपक्षी नेता भी तैयार बैठे हैं। हालांकि सरकार भी विपक्ष के साथ एक निष्कर्ष पे आने पर तुली है, और इसी मसले में विपक्ष दल के सूत्रधार, ग़ुलाम नबी आज़ाद से मुलाकात भी की थी, जिसमें सरकारी नामांकन होने तक प्रतीक्षा करने को कहा गया है।
हालांकि दोनों गुटों से कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, पर कई नाम उछल कर सामने आए हैं, जिसमें खबरों में सुर्खियां बटोरने में सबसे आगे रहें हैं गोपाल कृष्ण गांधी, जो विपक्ष के निर्विवाद उम्मीदवार के तौर पर सामने आए हैं।
गोपाल कृष्ण गांधी का वंश काफी प्रसिद्ध है। इनके पैत्रक दादा खुद महात्मा गांधी थे, और इनके नाना राजाजी [चक्रवर्ती राजगोपालाचारी] थे, इनके पास बंगाल के राज्यपाल होने का सौभाग्य भी है और एक कूटनीतिज्ञ के तौर पर इनहोने कई शानदार कीर्तिमान भी हासिल किए हैं, जैसे दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देशों के लिए भारत का हाइ कमिश्नर इत्यादि। आजकल वे अशोका विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं।
एनडीए और बीजेपी ने राष्ट्रपति के मुद्दे पर अपना उम्मीदवार काफी देर तक घोषित न कर शायद एक सुनहरा मौका गंवा दिया है। ये तो शुक्र है की अभी विपक्ष ने इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की है, क्योंकि अगर ऐसा हो जाये, तो फिर बीजेपी क्या कर पाएगी?
चूंकि स्वच्छ भारत अभियान में खुद प्रधानमंत्री ने गोपाल कृष्ण गांधी के वंश का इस्तेमाल किया है, तो क्या बीजेपी महात्मा के पोते को अस्वीकार कर पाएंगे?
पर उनके उम्मीदवारी को स्वीकार करना भी इनके लिए किसी दुस्वप्न से कम न होगा, क्योंकि गोपाल कृष्ण गांधी, परंपरानुसार हमेशा से राष्ट्रवादी ताकतों के धुर विरोधी रहे हैं। असहिष्णुता शब्द की संज्ञा इनहोने ही स्क्रोल को दिये अपने साक्षात्कार में दी थी। यहाँ तक की, इन्होने औरंगजेब रोड के नाम बदलने का भी विरोध किया था, जिसे इनहोने युद्धनीति और सांस्कृतिक राजनीति से तुलना की।
इन्ही के शब्दों में, “औरंगजेब रोड का नाम बादल एपीजे अब्दुल कलाम रोड रखना औरंगजेब से कम, और भारत के हिन्दू मुस्लिम एकता पर छूरी चलाने से ज़्यादा तात्पर्य रखता है। इसे इतिहास से कम, राजनीति से ज़्यादा मतलब है।“ तो ऐसे विषैली सोच रखने वाले गोपाल गांधी का समर्थन कर बीजेपी अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगी।
हो सकता है की गोपाल गांधी एक अच्छे राष्ट्रपति बन जाये, पर एनडीए के लिए वो ऐसा नहीं हो सकते। इस मसले में ये सोचने वाली बात है की बीजेपी नाम बताने में इतना क्यूँ शर्मा रहा है, क्योंकि जितनी जल्दी नाम बता दें, उतना ही अच्छा।
हालांकि मुकाबला भले ही हो, पर सिक्का तो अभी भी बीजेपी का चलेगा। यूपी में प्रचंड विजय राष्ट्रपति के चुनाव प्रणाली को ध्यान में रखते हुये एक वरदान समान है, क्यूंकी जिस राज्य की ज़्यादा सीटें, उसका ज़्यादा प्रभुत्व।
यूपी की विजय का सार समझने के लिए, इस बात का ध्यान ज़रूर रखें, की एक यूपी विधायक 208 वैल्यू वोट की कीमत संभालता है, और वहीं सिक्किम जैसे राज्य का स्कोर इस मामले में महज 7 ही होगा, जिसका महत्व सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट प्रणाली से समझ में आता है। यूपी में जीत के स्टार ने एनडीए को एक ऊंची उड़ान दी है, जो ऐसे किसी प्रतियोगिता में उसकी नैया पार लगाने के लिए काफी है।
अगर संसद में दलबल से जाएँ, तो बीजेपी का वोट शेयर 48.64% है, और विपक्ष का सिर्फ 35.47%। बाकी पार्टी, जैसे AIADMK, बीजेडी, YSR काँग्रेस, आप, और आईएनएलडी का वोट प्रतिशत 13.06%। बाकी 3% किसी के लिए कोई माने नहीं रखता। और जब AIADMK और YSR काँग्रेस ने अपनी प्रतिबद्धता दिखला दी है, तो फिर बीजेपी क्यूँ हिचक रहा है?
अभी अभी खबर आई है की बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद होंगे बीजेपी के राष्ट्रपति उम्मीदवार, मुकाबला दिलचस्प होगा!