कश्मीर में अतंकावाद को हवा देने और इस्लामिक आतंकवादियों को वैचारिक समर्थन देने के लिये भारतीय मीडिया ने सोशल मीडिया को हथियार बनाते हुये कुछ पोस्टर बॉयज बनाये थे। यह सिलसिला बुरहान वानी से शुरू हुआ था।
इन पोस्टर बॉयज बनाय जाने की पृष्ठभूमि यह है की कश्मीर में आतंकवाद पाकिस्तान के समर्थन से वहां से आये जिहादी करते है, जिन्हें कश्मीर की जनता से ज्यादा हुर्रियत व वहां के राजनीतिज्ञों का प्रश्रय मिला हुआ है। इसी के साथ यह भी सत्य है इन आतंकवादियों की पैठ कश्मीर की घाटी के दसवें भाग से भी कम जगह पर है। लेकिन सेक्युलर पार्टियां और उनकी समर्थित मीडिया इस सत्य को शेष भारत की जनता से हमेशा छुपाते रहे है।
जब से कश्मीर में बीजेपी पीडीपी के साथ सरकार में आई है तब से मिडिया द्वारा बनाये गये परसेप्शन और वहां के दलों कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का हुर्रियत के साथ कश्मीर पर अब तक लिखी पठकथा पर पर्दा हटने लगा है। जैसे जैसे इनके झूठ सामने आने लगे वैसे वैसे यह बात भी खुद कश्मीरियों के लिये भी साफ होती गयी कि यह पूरा खेल, कश्मीर की कश्मीरियत का नही है बल्कि यह सीधे सीधे पाकिस्तान का इस्लामिक एजेंडा है, जिसमे कश्मीर की टोपी पहने पाकिस्तान के आतंकवादी है।
यह एक ऐसा सत्य है जिसका पता या उसको स्वीकार करना जहां शेष भारत के लिये मुश्किल था वही पाकिस्तान और इस्लामिक आतंकवाद के समर्थक सेक्युलर मीडिया को भी यह स्वीकार नही था। ऐसी स्थिति में भारत की मीडिया और सेक्युलर बुद्धजीवियों के लिये यह बहुत जरूरी था कि पाकिस्तान से हो रहे आतंकवाद और भेजे जारहे जेहादियों को छुपा कर कश्मीर के ही लौंडो को आतंकवादी हीरो बनाया जाय ताकि इस पाकिस्तानी इस्लामिक जेहाद के ऊपर कश्मीर का स्थानीय रंग देते हुये आतंकवाद को छुपा दिया जाय।
ऐसे में मीडिया ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और उनको हीरो बनाने की कवायत शुरू की। उन्होंने फिल्मी हीरो के तर्ज पर फोटो वीडियो और उनके डायलॉग्स को प्रचारित किया ताकि वह शाहरुख सलमान आमिर के तर्ज पर युवाओं और युवतियों के दिलो और दिमाग मे जगह बना ले। बुरहान वानी पहला सो-कॉल्ड हीरो था जिसके माध्यम से मीडिया ने आतंकवाद की पृष्ठभूमि को रुमानियत दी थी। जैसा अक्सर होता है कि फिल्मी हीरो, स्टारडम में यह भूल जाता है कि वह, वो नही है जो पर्दे पर 10 10 लोगो को एक साथ मारता है, वह दरअसल निजी जिंदगी में एक कायर है, जो उगलती बंदूक के सामने पैंट खराब कर देता है।
कश्मीर में तो एक वर्ग उन्हें हथियारों से लैस वीडियो पर जाबांजी हांकने को ही सच मान बैठा है। उसी के सहारे नये नये चिल्गोजो को अपनी तरफ आकर्षित करने की उम्मीद भी कर बैठा है। लेकिन भारतीय सेना इन कुछ दर्जन भर पोस्टर बॉयज को अच्छी तरह समझ गयी है। वह अब इन हीरोज़ को घेर घेर कर तोड़ नही ठोंक रही है। बुरहान तो 10 घण्टे घर मे ही छिपा रहा और लड़ते हुये जब भागा तो सारी गोलियां उसके पिछवाड़े में ही ठुकी थी। उसके बाद जो दूसरा आया, सब्जार भट नाम था, वह घिरने के बाद, बच कर निकल भागने के लिये, मोबाइल पर केवल पत्थर मारने वाली भीड़ ही इकट्ठा करता रहा। उसके पास तमाम हथियार और गोली थी लेकिन वह एक भी गोली नही चला पाया। जब वह मारा गया तब उसका पेंट गीला मिला था।