पहले मुझे योगी आदित्यनाथ के आलोचकों पर क्रोध आता था, फिर थोड़ी जांच की.. अब पता चला…ऐसा क्यों

तवलीन सिंह की सबसे उत्र्कृष्ट विशेषताओं में से एक ये है की वो न सिर्फ सत्ता की, बल्कि प्रधानमंत्रियों और उनके मंत्रियों के अंदरूनी सर्कल के चापलूस सदस्यों की कड़वी आलोचक रही है। मसलन राजीव गांधी के उपलक्ष्य में उनका जमघट उनके दून स्कूल के मित्रों से भरा रहता था, इन्दिरा गांधी के मसले में ये संजय गांधी और उनके विश्वासपात्र चाटुकारों से और सोनिया गांधी के मसले में अहमद पटेल जैसे लोग और एनएसी [राष्ट्रीय सलाहकार परिषद] के सदस्यों से भरा था। दिल्ली के रईस और शक्तिशाली इन्ही प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों और पार्टी अध्यक्षों से ठसी पड़ी रहती थी। योगी तवलीन सिंह इन चाटुकारों के मिलन स्थल के लिए तवलीन सिंह जी के पास एक काफी दिलचस्प नाम था – लुटयेंस का ड्राइंग रूम [एलडीआर]। चापलूसी के सबसे वाहियाद तरीकों का मुख्यालय है यह एलडीआर, जहां डिज़ाइनर सारियों में लिपटी औरतें [इन्हे महिलाएं न बोलना ही उचित रहेगा] फ़ैशन के रुझान, कटलेरी के ब्राण्ड और आकर्षक विदेशी लोकेशन पे, और आदमी अपनी सेवाओं के लिए और रोकड़ा ऐंठने के उपायों और चुनावों को और एकतरफ़ा बनाने पर गहन मंथन करते थे। मतलब, इतनी बकैती का सार सिर्फ यह की एलडीआर अंग्रेज़ी बाँचने वाले कोंग्रेसी और वामपंथी चाटुकारों की मंडली है जो कभी नौकरशाही, मीडिया और बड़े बड़े एनजीओ पर कब्जा जमाये बैठे रहते थे।

उनका उच्च शिक्षा, पहनावे और प्रीमियम स्कॉच के लिए अंध प्रेम

तवलीन सिंह के अनुसार, एलडीआर के सदस्य प्रीमियम स्कॉच के लिए जान छिड़कते हैं, अगर वो काँच की कीमती गिलासों में उनके प्रिय मुग़लई कबाबों के साथ परोसा जाये। इतना ही नहीं, उच्च शिक्षा [इनके एजेंडा का गुणगान करने वाला] के लिए वो सर के बल चलने को भी तैयार हो जाएँ। इनके लिए नेहरू सद्भावना की प्रतिमूर्ति, इन्दिरा गांधी नारिवाद की जीती जागती मिसाल, राजीव गांधी शिष्टता की जीवित मूर्ति, सोनिया गांधी यूरोपीय खूबसूरती की मिसाल, और राहुल गांधी पिछले जमाने के मंझे हुये युवराज, जो आज के युग में अपना मुकाम बनाने के लिए तत्पर हैं। अरे हाँ, जनता दल को हारी हुयी लड़ाई लड़ने वाले गंवार भी यही लोग कहते थे।

कैसे मोदी इनके लिए पूर्ण अनुपयुक्त थे

अपने पुस्तक ‘इंडिया – द ब्रोकेन ट्रीस्ट’ में तवलीन जी ने बताया है की कैसे मोदी लुटयेंस वाले कुलीन वर्ग के लिए लगभग एक दुस्वप्न समान हैं। उनका ग्रामीण आकर्षण, अंग्रेज़ी से मोहभंग, उनका हाथों से भोजन करना, और दिल्ली के उच्च वर्ग के लिए ज़रा भी समय न निकालना इस देश के प्रशासन के लिए एक अहम मोड़ के समान था। नरेंद्र मोदी कोई ऑक्सफोर्ड से स्नातक नहीं थे, और न ही वो अंग्रेजी में अभ्यस्त थे, और न ही पाश्चात्य संस्कृति का चोला ओढ़े कोई महान विभूति थे। शाकाहारी, योग साधक, नवरात्रि में व्रत रखने वाले, और तो और उनके आकांक्षाओं के विपरीत मोदी जी एक अत्यंत उत्कृष्ट प्रशासक भी थे। पूर्व भाजपाई पीएम वाजपयी हिन्दी प्रेमी ज़रूर थे, पर उन्हे व्हिस्की और हाइ सोसाइटी का चस्का भी था, जो मोदी जी में नदारद है। कुलीन वर्ग को भाव देना तो छोड़िए, उनके लिए उनके पास समय तक न था, जो सत्ता के गलियारों में चलने के आदि थे, उनके लिए ऐसी अनदेखी असह्य थी। बस, फिर इन्होने मोदी के खिलाफ लांछन अभियान चलाना शुरू कर दिया। पर मोदी की लोकप्रियता इनके हर चाल पर हाथी समान भारी पड़ गयी।
इन बुद्धिजीवियों को चुपचाप अपने हथियार डालने पड़े।

मोदी का पहनावा

हालांकि मोदी बुद्धिजीवियों के लिए बिलकुल भी समय नहीं निकलते थे, परंतु एक चीज़ उनमे थी, जो उन्हे बाकी नेताओं से अलग रखती थी। उनका पहनावा। मोदी का पहनावा गजब है, उनके अंदर अधबाहों वाले कुरतों को बिना बांह की जाकेट के साथ पहनने का करिश्मा खूब है। उनके कपड़ों पर उनके बिन किनारे के चश्मे, लेदर स्ट्रैप वाली घड़ी और बड़े करीने से कतरी गयी दाढ़ी उनके व्यक्तित्व में अलग ही निखार लाती है, जो बड़े कम ही भारतीय नेता दिखा पाये हैं।

योगी का बढ़ता कद

तब आए योगी आदित्यनाथ, बेबाक, सादे कपड़ों और सादे जीवन व्यतीत करने में यकीन रखने वाले नेता। वे भगवाधारी साधु हैं। वे ऐसे तेजतर्रार नेता हैं जो अपने जादुई भाषणों से अपने श्रोताओं में नयी ऊर्जा का संचार कर दे। और जब मोदी जी ने उन्हे उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी, तो उन्होने बड़े ही कम समय में एक कुशल प्रशासक की भूमिका सफलता से निभाई। नेहरू से योगी आदित्यनाथ, दिल्ली के अंग्रेजीभाषी विद्वानों के लिए ये गैप थोडा ज्यादा ही हो गया। योगी आदित्यनाथ बिन केश के भगवाधारी मोदी हैं, जो हिन्दू गौरव के आक्रामक नीति में यकीन रखते हैं, जिसे बोलने का बल बड़े कम भारतीय नेताओं में है। एक कुलीन भारतीय बुद्धिजीवी को जिन चीजों से चिढ़ मचती है, वो सब गुण योगी आदित्यनाथ में विराजमान है।

बीजेपी के बुद्धिजीवी समर्थकों में निराशा

वर्तमान काल में योगी आदित्यनाथ मोदी के पश्चात दूसरे सबसे विरोधाभासी व्यक्ति लगते हैं। जहां मोदी ने बाहर दरारें डाली, योगी आदित्यनाथ ने भाजपा को ही दो फाड़ कर दिया। बीजेपी समर्थकों में उच्च वर्ग, खासकर जो बड़े परिवारों या संस्थानों से सम्बन्ध रखते हैं वो योगी के विरोध में खड़े दिखे, वहीं मामूली घरों से आने वाले समर्थक योगी आदित्यनाथ के पीछे मजबूती से खड़े रहे।

कई कथित बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के चेहरे पर से दिखावे का मुखौटा अब उतर गया है, जो पहले बीजेपी के साथ होते थे। इनमे से प्रमुख तुफ़ैल अहमद और तवलीन सिंह है।

प्रखर हिन्दू राष्ट्र का डर

योगी आदित्यनाथ का उत्थान एक तरह से हिन्दू राष्ट्र के उत्थान है, जिसकी कल्पना कभी स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहब ने की थी, जो धर्मनिरपेक्ष पत्रकारों के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं हो सकता। योगी आदित्यनाथ की बोली खरी और कड़वी है, जब मीडिया और राजनीति में व्याप्त इस्लामी कट्टरता के समर्थकों को खरी खोटी सुनाने की बात आती है। योगी आदित्यनाथ को अखबारों में छपने वाले लंबे लेखों की बिलकुल परवाह नहीं। हिन्दुत्व और देश के लिए उनका सम्मान और प्रतिबद्धता, और गायों के लिए उनका प्रेम किसी से नहीं छुपा है।

तवलीन सिंह और उनकी बिरादरी, जो “कम से कम सभ्य” दिखने वाले मोदी की लहर झेल गए, योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद के सामने एकदम असहाय लग रहे हैं।

छटपटाहट

हाल ही में तवलीन सिंह को योगी आदित्यनाथ के कथित गौमूत्र का सेवन करते दिखाई गयी नकली तसवीरों का प्रचार करते पकड़ा गया। कई ट्विट्टर यूजर्स की आलोचना के बावजूद उन्होने उन तसवीरों को हटाने से मना किया। ये अलग बात है की बाद में उन्हे उचित कारवाई भी इसके लिए झेलनी पड़ी। तवलीन सिंह बीजेपी समर्थकों के दूसरे घड़े का प्रतिनिधित्व करती है, जो मेरे छोटे से मत में ज़्यादा खतरनाक और घातक हैं। उन्हे सदैव सतर्क आँखों से देखना चाहिए। उन्हे आदमी से नहीं, भगवा से नफरत है। ये बात की एक हिन्दू साधू भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक का मुख्यमंत्री है, ऐसे लोगों के लिए तौहीन हैं।

तवलीन सिंह एक सटीक उदाहरण की कैसे किसी बुराई से लड़ते लड़ते वही मनुष्य वो बुराई खुद बन जाती है। उन्होने दिल्ली के कुलीन वर्ग के विरुद्ध अनगिनत किताबें और लेख लिखीं, और खुद ही उनमें से एक बनती हुई अब दिखाई दे रही हैं। हे ईश्वर, अजब तेरी लीला है….

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