राष्ट्रपति चुनाव में इन कारणों से बढ़ सकती हैं भाजपा की मुश्किलें

राष्ट्रपति भाजपा

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की माथापच्ची के बाद अब सत्ताधारी बीजेपी ने भी चुनाव की औपचारिक तैयारी शुरू कर दी है | राष्ट्रपति उमीदवार को लेकर तमाम अटकलें और अपवाहों पर जल्द ही विराम लग सकता है क्यूंकि बीजेपी की तरफ से अब किसी भी समय राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम तय करने की प्रक्रिया शुरू करने की संभावना है इसीलिए राजधानी में अमित शाह की उपस्थिति आवश्यक है | राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 17 जुलाई को होना है | जबकि नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 28 जून है | मतगणना 20 जुलाई को होगी | ऐसे में एनडीए अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम जल्द फाइनल करना चाहता है | एनडीए के लिए विपक्ष को अपने उमीदवार पर राजी करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है क्यूंकि जिस तरीके से विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर आपस में मेलजोल बढ़ा रहा है और आये दिन शिष्टाचार वाली मुलाकातें बढ़ रही है लगता नहीं विपक्ष इतने आसानी से ये चुनाव होने देगा |

राष्ट्रपति चुनाव की लड़ाई अपने निर्णायक मुकाम पर पहुंच चुकी है। रायसीना हिल पहुंचने के रास्ते में वही विजेता बनेगा, जिसे देश के सबसे अधिक विधायक और सांसदों का समर्थन हासिल होगा । अमित शाह सोमवार अरुणांचल जाने वाले थे, लेकिन राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के मद्देनजर बीजेपी अध्यक्ष ने अरूणाचल प्रदेश का अपना दौरा टाल दिया है और राष्ट्रपति पद के चुनाव के मद्देनजर पार्टी 15 और 16 जुलाई को होने जा रही अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी टाल सकती है |

बीजेपी वरिष्ठ पार्टी नेताओं की एक बैठक जल्द ही दिल्ली में सकती है | अब तक कांग्रेस, वाम और जदयू सहित अन्य दलों के शीर्ष नेताओं की बातचीत को देखकर लगता है कि विपक्ष अपना उम्मीदवार उतारेगा | अगर ऐसा होता है तो चुनाव अवश्यंभावी हो जाएंगे | बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है | ये कमेटी एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम तय करने का काम करेगी |कमेटी के सदस्यों में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली और केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू प्रमुखता से शामिल है और ये कमिटी तय करेगी की बीजेपी वाली एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति उमीदवार कौन होगा |

केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा की सत्तारूढ़ साझेदार शिवसेना ने गुरुवार को कहा कि वह राष्ट्रपति चुनाव में अपना अलग रुख अपना सकती है | बीजेपी को हर मुद्दे पर घेरनेवाली उनकी अपनी सत्तारूढ़ साझेदार शिवसेना ने पिछले दिन कहा था कि वह राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उम्मीदवारी पर जोर देती रहेगी | जिससे बीजेपी की मुश्किलें और बढ़ सकती है | एक और लालकृष्ण अडवानी राष्ट्रपति की आस लगाये बैठे लगते थे और जोशी, अडवानी पर अटकलों का बाजार गर्म था लेकिन अयोध्या मामले में कोर्ट के फैसले के बाद अडवानी, जोशी का नाम हटने की संभावना बढ़ गयी है | जिससे बीजेपी के लिए मुश्किलें और बढ़ गयी | लेकिन मोदी शाह की जोड़ी अपने अलग फैसले के लिए भी जाने जाते है | अगर आनेवाले दिनों में बीजेपी की तरफ से किसी नए चेहरे को राष्ट्रपति पद का उमीदवार घोषित किया गया तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्यूंकि मोदी –शाह की जोड़ी इस तरह के फैसले लेने के लिए जानी जाती है |

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है की ‘हम आगामी राष्ट्रपति चुनाव में अपने वोट को लेकर अलग रुख अपना सकते हैं | हमने बार-बार कहा है कि हम हिंदू राष्ट्र के सपने को पूरा करने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत से अधिक सक्षम किसी और को नहीं देखते’| राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना-बीजेपी का इतिहास उठाकर देखें तो दोनों ही पार्टी कभी एकमत नहीं रही है | सबसे पुराने सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में संप्रग के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करके भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी | भाजपा ने इस पद के लिए पी ए संगमा का समर्थन किया था |

उधर शिवसेना ने 2007 में राजग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भैंरो सिंह शेखावत के बजाय संप्रग की उम्मीदवार और कांग्रेस नेता प्रतिभा पाटिल के लिए वोट दिया था | जहाँ एक और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर बीजेपी को ‘बड़ा भाई’ कहते है तो लगने लगता है दोनों भगवा दलों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों में नरमी लाने का काम हो रहा है लेकिन दूसरी और शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत संघ प्रमुख के नाम पर अड़ जाते है तो कहीं न कहीं लगता है बीजेपी के लिए शिवसेना पर भरोसा करना इतना आसान नहीं है |

दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं और भाजपा को उम्मीद है कि उसे शिवसेना के 18 सांसदों और 63 विधायकों का समर्थन मिलेगा | राष्ट्रपति पद के चुनाव में सर्वसम्मति से उम्मीदवार तय करने के विपक्ष के प्रयासों के बीच जदयू के नेता शरद यादव ने कल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की |

हालांकि ‘आप’ पार्टी ने इसे दो नेताओं के बीच ‘सामान्य’मुलाकात बताया लेकिन सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुनने की दिशा में विपक्षी दलों के प्रयासों के चलते यह मुलाकात मायने रखती है |

हालांकि पिछले महीने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों की जो बैठक बुलाई थी उसमें ‘आप’ को आमंत्रित नहीं किया गया था | मतलब साफ़ है की ये चुनाव जितना सीधा दिख रहा है इतना है नहीं | तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पिछले महीने केजरीवाल से मुलाकात की थी लेकिन दोनों पक्षों ने कहा था कि राष्ट्रपति पद के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुनने के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई |

हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन इस बारे में विपक्षी दलों के रुख से अप्रभावित दिख रहा है क्योंकि राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में संख्या बल उनके पक्ष में है | अमित शाह ने हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए राजग के उम्मीदवार के संभावित नामों पर कुछ भी बोलने से इनकार करते हुए कहा कि इस बारे में अभी कोई निर्णय नहीं किया गया है | राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्‍टोरल कॉलेज में कुल 11,04,546 वोट होते हैं और भाजपा नीत राजग दलों के मतों की संख्या करीब 5.38 लाख वोट हैं |

राजग को वाईएसआरसीपी का समर्थन मिलने से उसने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है | वाईएसआरसीपी आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी है | टीआरएस ने भी समर्थन देने का संकेत दिया है | भाजपा को तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के दोनों गुटों के समर्थन की उम्मीद है |

कुल मिलाकर देखें तो इस वर्ष 17 जुलाई को होनेवाला राष्ट्रपति चुनाव हर मायनों में महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन रोमांचक भी होनेवाला है | विपक्ष अपना अलग ही राग अलाप रहा है की बीजेपी शिवसेना अगर अपना कोई उमीदवार उतारते है जो उन्हें मान्य नहीं है तो विपक्ष सेकुलरिज्म के चूले पर अपनी खिचड़ी पकाने के लिए तैयार बैठा है | ऐसे में देखना होगा आखिर मोदी-शाह की जोड़ी उत्तर प्रदेश में योगी के बाद क्या नया कमाल करती है और विपक्ष को कहाँ तक रास आयेगा मोदी का फैसला |

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