भाई, हमें भी पता है कितने सैकड़ों लेख छापे जा चुके हैं भारत की आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी फ़ाइनल में पाकिस्तान के हाथों 180 रन की शर्मनाक हार पर। कई मुद्दो पर बहस हुई है, जैसे बचकानी कप्तानी, घटिया गेंदबाजी और उससे भी वाहियाद बल्लेबाज़ी, क्या गेंदबाजी और बल्लेबाज़ी होनी चाहिए थी, फील्डिंग में क्या बदलाव होने चाहिए, क्यों वर्तमान कप्तान कप्तानी के लायक नहीं, या कैसे ये मैच फ़िक्स्ड हो सकता है, इत्यादि इत्यादि। अगर सच पूछो, तो ऐसे किसी भी खेल का पोस्ट्मॉर्टेम समय की बरबादी करती है। क्योंकि नतीजा तो बदलेगा नहीं, रहेगा सिर्फ अफसोस और बहानों की एक लंबी फेहरिस्त।
इसके बारे में मैं कुछ भी नहीं लिख रहा हूँ। ये अहंकारी भारतीय टीम को किसी भी बेकार आईसीसी इवैंट के पहले ही राउंड में अब तबीयत से धोकर बाहर किया जा सकता है। होने दीजिये सचिन तेंदुलकर या विवियन रिचर्ड्स और विराट कोहली में हास्यास्पद तुलना, करने दीजिये गुणगान धवन, जडेजा और शर्मा के छिछोरेपन का, मानो इनसे पहले क्रिकेट में कुछ करिश्माई कभी हुआ ही नहीं। जब तक विदेश में कोई बड़ी हार फिर से नहीं मिलती, तब तक मचाओ हुड़दंग, करो नौटंकी।
मैं तो इस बारे में भी नहीं बात करने वाला हूँ की अपनी हॉकी टीम कितना बढ़िया खेल रही है, क्योंकि यह विडम्बना नहीं है की भारत में जब तक कोई करारी हार हमें क्रिकेट में नसीब न हो, तब तक हम हॉकी टीम की तरफ मुंह भी नहीं ताकते, चाहे वे विश्व या ओलिम्पिक चैम्पियन ही क्यों न बन जाये।
अगर मैं लिख रहा हूँ, तो इसलिए, क्योंकि इस जीत से एक आतंकवादी मुल्क, जो एक विध्वंसक और खतरनाक विचारधारा का गढ़ है, को हमारे चेहरे पर ये जीत फड़फड़ाने का सुनहरा अवसर मिला है। जिसे दुनिया के हर मंच से उसकी जहरीली सोच के लिए निष्कासित करना चाहिए, उस पाखंडी मुल्क को आज आडंबर फैलाने का मौका मिला है, अपने नारकीय देश में दूसरे मुल्कों को क्रिकेट खेलने का न्योता देने का अवसर मिला है, और सबसे पीड़ादायी बात यह है की इस मुल्क को अपने देश की अत्याचारी सत्ता और उसके अत्याचारों को वैध ठहराने का सुनहरा मौका मिला है [और ये राज़ अब रहा नहीं की हर चीज़ की तरह पाकिस्तान में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड कैसे चलेगी, इसका भी फैसला वहाँ की सेना करेगी] ये कोई रोने की बात नहीं है की भारत पाकिस्तान से हारा, अब भाई बुरा तो लगेगा उनसे हारने पे, और अपने खिलाड़ियो की बेइज्जती होते देखने पर [ये अलग बात है की कई खिलाड़ियों को इस हार का कोई अफसोस ही नहीं था] बात तो यह है की क्यों एक आतंकवादी मुल्क को ऐसे टूर्नामेंट में जगह मात्र देना ही एक घातक कदम था।
यूरोप पर जिहादी हिंसा का बोलबाला चल रहा है, खासकर यूके में। फ़ाइनल से ठीक दो हफ्ते पहले, लंदन में एक आत्मघाती हमला हुआ था, जिसमें 22 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। पर क्या करें, आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता न! तो भुगतो……..
आईसीसी इस दुनिया की सबसे घटिया खेल संस्था, और इसके पीछे दो प्रमुख कारण भी है:-
सर्वप्रथम, जिस खेल के लिए इन्हे बनाया गया है, उसी का गला घोंटने पर आमादा है ये महान संस्था। अस्सोसिएट सदस्य देशों मे इस खेल के मायने और दायरे बढ़ाने के लिए कोई ठोस कदम तक नहीं उठाए गए हैं। भाई कहने को क्रिकेट क्लब स्तर पर 50 से ज़्यादा देशों में खेला जाता है, पर वर्तमान दायरों में इस खेल को बढ़ावा देने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है, जिससे कई देश, जैसे आयरलैंड, नीदरलैंड्स, अफ़ग़ानिस्तान, हाँग काँग इत्यादि, जो थोड़ी उम्मीद की किरण दिखाते हैं, उन्हे बढ्ने से पहले ही इस खेल से बाहर धकेलने की कवायद लगाई जा रही है।
आगामी आईसीसी टूर्नामेंटों में टीमों की संख्या और कम कर सिर्फ 10 टीम कराने पर विचार किया जा रहा है। अजीब बात है, फीफा विश्व कप हो या एफ़आईएच हॉकी विश्व कप, सभी खेल संस्था जहां और देशों को अपने खेल की दुनिया में लाना चाहते हैं, वहीं आईसीसी धारा के विपरीत ही जाने पर तुला हुआ है।
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है, की एक आतंकवादी मुल्क को 50 सालों से भी ज़्यादा मौके दिये गए हैं खेल गरिमा के नाम पर। एक आतंकवादी मुल्क, जिसकी विषैली सोच का जन्म ही 10 लाख से ज़्यादा हिन्दू और सिक्खों की हत्या और बलात्कार से हुआ था, जिसका संचालन एक दुष्ट सेना कर रही है। एक ऐसा आतंकवादी मुल्क, जिसे कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए और भारत की बरबादी के लिए भाड़े पर लेते हैं, एक ऐसा आतंकवादी मुल्क, जो वैश्विक जिहाद उद्योग का केंद्र भी है, और जिसे हर वक़्त सेना और मुल्लाह का खतरनाक गठजोड़ और घातक बनाने के लिए जुगत भिड़ाता रहता है। यही है पाकिस्तान की सच्चाई, जिसे जानबूझकर अनदेखा करने की कोशिश में लगे रहते हैं हमारे अमन की आशा वाले ढोंगी।
सीमांत आतंकवाद की तरह क्रिकेट भी अब सेना और मुल्लाह के गठजोड़ के लिए काफिरों पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए एक संभावित् ब्रह्मास्त्र के तौर पर परख रही है, जिनपर हर किस्म की जीत इनके श्रेष्ठता का प्रतीक है।
पाकिस्तान के ड्रेस्सिंग रूम में तबलीघी जमात की सेंध बहुत पहले पड़ चुकी है, जिसमें इस्लामी प्रतीक दिखाना अनिवार्य है, जैसे खिलाड़ियों द्वारा नमाज़, हर जवाब की शुरुआत ‘अल्लाह का शुक्र है’ से शुरू करना, इत्यादि। इसकी अवहेलना करने वाले क्रिकेटरों का क्या हश्र होता है, ज़रा यूनिस खान और शोएब अख्तर से पूछिएगा, जिनमें यूनिस भाई को कप्तानी के पद से उन्ही के साथियों ने ज़बरदस्ती हटाया था। शोएब अख्तर को भी 203 के बाद मुफ़लिसी के दिन देखने पड़े थे।
दूसरे धर्मों से ताल्लुक रखने वाले या तो परिवर्तित करा लिए जाते हैं, या फिर एकदम ही किनारे कर दिये जाते हैं। ईसाई क्रिकेटर युसुफ योहाना को इंजमाम और सईद अनवर के निरंतर दबाव के बाद धर्म परिवर्तन करना पड़ा था , और बन गए वो मोहम्मद युसुफ। टेस्ट में पाकिस्तान के लिए सर्वाधिक विकेट चटकाने वाले हिन्दू क्रिकेटर दानिश कनेरिया को न सिर्फ टीम से, बल्कि क्रिकेट से भी बदकिस्मती से निष्कासित किया, और स्पॉट फिक्सिंग के मकड़जाल में उन्ही को बली का बकरा बना दिया गया।
हद तो तब हो गयी, जब 2007 के प्रथम टी20 विश्व कप के लिए अनुभावी यूनिस के ऊपर शोएब मलिक को तरजीह दी गयी, और वो इसलिए पाकिस्तान को ठीक लगा, क्योंकि फ़ाइनल के बाद शोएब मलिक ने दुनिया भर के मुसलमानों से इस हार के लिए माफी मांगी। ये अलग ही बात है की इस मैच का मैन ऑफ दी मैच भारत के प्रख्यात गेंदबाज इरफान पठान थे। समझे बाबू?
https://youtu.be/KhaUX_KwRv0
अब तुलना कीजिये इस 1997 के क्लिप से, जब सईद अनवर ने भारत के खिलाफ अपने ताबड़तोड़ 194 रन की पारी के बाद रवि शास्त्री को धाराप्रवाह अँग्रेजी में इंटरव्यू देते दिखे, जो अब तो लगभग उपदेश समान लगता है :-
और इनको अब देखिये:-
https://youtu.be/DpAxPKAZeqE
पाकिस्तान के खिलाड़ी तो कोई मौका नहीं छोडते दूसरे खिलाड़ियों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिए:-
https://youtu.be/kqytKbwcfio
और इसे कौन भूल सकता है:-
https://youtu.be/ZuaHZKrMQAw
तो भाई जब आप कहते हो की भारत और पाकिस्तान में गहरी दोस्ती होनी चाहिए, और रिश्ते और मजबूत होने चाहिए, तो आखिर लाना क्या चाहते है आप इस देश में?
बीसीसीआई साफ साफ ऐसे प्रतियोगिताओं का बहिष्कार क्यूँ नहीं करती, जहां पर पाकिस्तान की टीम शामिल हो?
दुनिया भर से क्रिकेट को मिलने वाले राजस्व में 70% प्रतिशत हिस्सा भारत का ही है, तो आईसीसी द्वारा अनुशासित कारवाई का दर कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि अगर हमें आईसीसी ने क्रिकेट से हटाया, तो समझो क्रिकेट के विनाश का समय तय हो गया। यही सच है।
अगर आईसीसी में थोड़ी भी गैरत बाकी है, तो उन्हे पाकिस्तान के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं को अपने धार्मिक आडंबरों का प्रचार करने के अपराध में कड़ी कारवाई करनी चाहिए। ये सारे धार्मिक कथन और धार्मिक प्रतीक जो मैच के बाद पुरुस्कार समारोह में दिखाती है पाकिस्तान, इस पर डंडा चलवाना अवश्यंभावी है। खेल के प्रतियोगिताओं में ऐसी विषैली सोच के प्रचार और प्रसार के लिए कोई जगह नहीं है।
वैसे भी, अगर दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद के लिए सभी खेल प्रतियोगिताओं से 21 सालों के लिए निष्कासित किया जा सकता है, तो पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए क्यूँ नहीं प्रतिबंधित किया जा सकता?
ऐसा इसलिए है की भारत के दूसरे संस्थानों की तरह बीसीसीआई के पास भी जिगरा नहीं है ऐसे कड़े फैसले लेने का। इनके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और गौरव से ज़्यादा महत्वपूर्ण है मुनाफा कमाना। जब तक सरकार इनकी बाहें न मरोड़े, तब तक इनसे कुछ कड़े फैसले की उम्मीद भी मत करिएगा!
जब तक पाकिस्तान इसका हिस्सा है, तब तक हर आईसीसी इवैंट का बहिष्कार करना चाहिए। वैसे भी आईसीसी एवेंट्स का कोई महत्व नहीं रह गया है, क्योंकि हर साल एकदिवसीय मैचों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, टी20 क्रिकेट और जोड़ लीजिये, तो क्रिकेट अब फीकी पकवान समान हो रही है।
और इन्हे अलग करने से मतलब सिर्फ कूटनीतिक पहल तक सीमित नहीं होनी चाहिए भाई। इसे हर मोर्चे पर जाना चाहिए, चाहे वो राजनीति हो, या विदेशी दौरे, यहाँ तक की लोगों को भी इस नीति को पूरा समर्थन देना चाहिए। जब पाकिस्तान के खिलाफ आप मैच खेलते हो न, तो आप ये सबूत दुनिया को देते हो की ये एक आम देश ही है। हमें इनसे कोई दिक्कत नहीं। इसने भारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। जब इनके अभिनेताओं को हम अपनी फिल्मों में जगह देते हैं, तो हम अपने देश की इज्ज़त की मिट्टी पलीद करते हैं।
ऐसा करने से आप हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों और कूटनीतिज्ञों की मेहनत ज़ाया कर रहे हैं, हमारे जवानों के बहाये खून पर आप थूकते हैं, और जिन गांवों को पाकिस्तान की गोलाबारी उजाड़ देती है, उनकी दशा पर हंसी उड़ातें हैं आप। आप साबित करते हैं की आप उस मुल्क के वासी हैं, जिसमें कोई स्वाभिमान नहीं है, और जो मनोरंजन और मुनाफे को इज्ज़त और आत्मरक्षा के ऊपर रखता है।
और आप चाहते हो की सारा विश्व आपका सम्मान करे, और आप एक महाशक्ति बनें? दिल बहलाने को ग़ालिब, ये खयाल अच्छा है!