ख़बर पक्की है, दिसम्बर 2017 में ख़त्म होगा कश्मीर से आतंकवाद

लोक सभा चुनाव हों या जम्मू कश्मीर राज्य के विधानसभा चुनाव, जब नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर कुछ ज़्यादा बोलने से मना किया था, तब हमारी बुद्धिजीवी वर्ग ने इन्हे इनके गुरु और पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपयी के कश्मीरियत नीति का उचित उपासक समझने की बहुत भारी भूल थी।

आज उसी क्लब का कोई भी सदस्य अगर उन बातों को ज़रा सा भी याद रखता हो, तो उसे अपनी किस्मत पर रोना आ रहा होगा। ऐसे लोगों को पछतावा हो रहा होगा उस आदमी को कमतर समझने की, जो आज के नए कश्मीर नीति को चला रहा है: स्पष्ट, गैरकूटनीतिक और प्रचंड नीति।

जबसे पाकिस्तान के बार्डर एक्शन टीम के आतंकवादियों ने कृष्ण घाटी में हमारे एक जेसीओ और एक हवलदार का सिर कलम कर दिया था, शायद उसी दिन से न सिर्फ भारतीय आर्मी, बल्कि भारत को चला रही वर्तमान केंद्र सरकार ने भी अपने गीयर सही वक़्त पे बदल दिये। कुशल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोवाल के सहायता सहित सरकार ने कश्मीर घाटी में लगे हमारे जवानों को एक कड़ा निर्देश भेजा, जो कड़ी निंदा की तरह बिलकुल भी खोखला नहीं है। उनका निर्देश स्पष्ट है : ये सर्दियाँ कश्मीर घाटी में पनप रहे आतंकियों, जिन्हें  यहाँ के 5 जिलों की कथित जनता का समर्थन प्राप्त है, की आखिरी सर्दियाँ होनी चाहिए। जैसे गेम ऑफ थ्रोन्स में कहा जाता है, इस बार इस्लामिक आतंकवाद के लिए सर्दियाँ आ रही है।

अगर आपको यह कड़ी निंदा की तरह मज़ाक लगता है, तो एक बार फिर देख लें, अभी 4000 सैनिकों को कश्मीर घाटी रवाना किया गया है , विशेषकर अमरनाथ यात्रा के लिए निकले यात्रियों की सुरक्षा के लिए। उन्हे सीधा और स्पष्ट निर्देश दिया गया है : आतंकियों को रोको या सफाया करो। न कम, न ज़्यादा। अगर सूत्रों की बात सही है, तो लगभग कश्मीर में तैनात सारे सशस्त्र बलों ने कसम खाई है की दिसम्बर से पहले सारे आतंकियों का कश्मीर घाटी से नामोनिशान मिटा देंगे। अगर सब कुछ सही जाये, तो काँग्रेस मुक्त भारत का तो नहीं कह सकता, पर जिस तरह अपनी सेना काम कर रही है अभी, एक आतंकी मुक्त कशमीर घाटी ज़रूर सच्चाई बन जाएगी।

इस यज्ञ का आरंभ हो चुका है, और सफलतापूर्वक आरंभ हुआ है। अभी सिर्फ 4 दिनों में तकरीबन 13 से भी ज़्यादा नरपिशाचों को नर्क भेजा जा चुका है, जिसमें मुख्य रूप से भारतीय आर्मी या थलसेना की प्रमुख भूमिका रही है। संबल से लेकर उरी तक, कृष्ण घाटी से लेकर नौशेरा तक, ऐसी कोई जगह नहीं, जहां आतंकियों ने घुसपैठ न की हो और हमारे जवानों ने उन्हे मुबारक सहित ठोंका न हों।

आपके मन से संदेह के बादल हटाने के लिए निम्नलिखित कुछ कड़े तथ्य प्रस्तुत है:-

एक फोटो जो कभी सोश्ल मीडिया पर वाइरल हुई थी, जिसमें खूंखार आतंकी गिरोह हिजबुल मुजाहिदीन के कथित ‘भटके’ हुये नौजवान बेशर्मी से मुसकी मार रहे थे, अब लगभग साफ हो चुकी है। फोटो में 11 में से आठ आतंकी दोज़ख में सज़ा भुगत रहे हैं, 1 ने आत्मसमर्पण कर दिया, और 2 अभी फरार है, पर जल्द ही अपने 8 भाईजानों के पास प्रेम सहित भारतीय सेनाओं द्वारा पहुंचाए जाएंगे! इसका प्रत्यक्ष प्रमाण दिखा दुर्दांत आतंकी सबजार अहमद भट्ट के वध में, जो 28 मई को भारतीय सेनाओं ने सूद समेत पूरा किया।

Army releases hit list of 12 most wanted terrorists in Kashmir Valley.
Image Courtesy: ANI

अब तक सिर कलमी के लिए कुख्यात पाकिस्तान के बार्डर एक्शन टीम के 13 जवानों को भी मौत की नींद सुला दिया गया। उसमें 50 आतंकियों को और मिलाये, जिन्हें  रेकॉर्ड्स के मुताबिक सेना, सीआरपीएफ़, बीएसएफ़ और स्थानीय की संयुक्त शक्ति ने मिलकर संहार किया है। यही नहीं, 20 आतंकियों को इस संयुक्त सेना ने ज़िंदा पकड़ने का साहस भी किया है।

पहली बार, उरी के कैंप  हमले के मुक़ाबले इन आतंकियों को सेना कैम्प की सीमाओं पर ही मार दिया जाता है, जैसे संबल में सीआरपीएफ़ कैम्प के बहादुर संतरियों ने कर दिखाया। उनके गोलियों की बौछारों से हमला करने वाले चारों आतंकी शहीद हो गए।

जबसे हमारी सेनाओं को खुली छूट दी गयी है, तबसे पत्थरबाजी में भी काफी कमी आई है। ऐसा नहीं है की पत्थरबाजी होती ही नहीं, बस पहले की तरह नियमित नहीं होती। स्वर्ग में नायाब सूबेदार परमजीत सिंह राहत की मुस्कान मुस्का रहे होंगे, और शायद हवलदार प्रेम सागर के साथ नाच भी रहे होंगे। उनकी आत्माओं को आज शांति जो मिली है।

यह तो कुछ भी नहीं है। अब तो सशस्त्र सेनाएँ अपने जवानों को उचित सम्मान भी दे रही है ऐसे कार्यों के लिए, जिससे शायद 90 के दशक में सेना को मिले जख्म भी कुछ हद तक भरे होंगे। जिन्हें  कभी सही काम करने के लिए बेइज़्ज़त किया जाता था, आज उन्ही  बावलों को सम्मानित किया जा रहा है। मेजर नितिन लीतुल गोगोई को सेनाध्यक्ष प्रशस्ति पत्र एवं पदक से सम्मानित करना हो, या फिर सेना को उचित कारवाई के लिए पूरी स्वतन्त्रता, हमारे उन कथित बुद्धिजीवियों को अपने निर्णयों से दिन में तारे दिखा रहे है हमारे वर्तमान सेनाध्यक्ष, जनरल बिपिन रावत जी, जिनके लिए भारतीय सेना का आतंकवादियों का वध करना पाप समान है। अब चाहे जितना रोएँ या चिल्लाएँ, इनका विधवा विलाप अब कोई नहीं सुनेगा। हमने पहले ही बहुत झेला है।

साथ ही साथ, हमारे मोदी जी इन जैसे विभूतियों के लिए चुप्पेचाप एक जाल बिछा रहे है, जैसे प्रणय रॉय [एनडीटीवी के मुखिया] के कथित भ्रष्टाचार पर सीबीआई का डंडा चला कर किया। यह उन गद्दारों के लिए सही सज़ा है, जो आतंकवादियों को मानवाधिकार के नाम पर महिमामंडित करते हैं, और उन्हे ‘गरीब हैडमास्टर का बेटा’, ‘दिलजला आशिक’ और ‘भटके युवा’ की उपाधियों से सुशोभित करते हैं। मतलब गलती भी हम पीड़ितों की और हम ही जवाब भी न दें। ये क्या दोगलापन है, और ये कब तक चलेगा?

अब चाहे जो कह लो, पर इस बार बात हिंदुस्तानियों की सुनी जाएगी।

जब मोदीजी जैसा प्रधानमन्त्री हो, अजित डोवाल जैसा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हो, और भारतीय सेना एक्शन में हों, तो मुझे शक होता है अगर आतंकी दिसम्बर तक टिक भी गए तो…..खेल तो अभी शुरू हुआ है!

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