विगत तीन चार वर्षों से और विशेष कर केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने और श्री मोदी के प्रधानमन्त्री होने के समय से ही इस देश में एक विलक्षण राजनैतिक वातावरण निर्मित हुआ है। या यों कहिये कि निर्मित किया गया है । सबसे अधिक शोर गुल उस राजनैतिक दल ने मचाया जिसे विगत चुनावों में जनता ने सिरे से ख़ारिज कर दिया था। अन्य विरोधियों के साथ मिलकर इतना हो हल्ला जैसे चुनाव जीतने और सत्ता में आने का भाजपा को कोई नैतिक और वैध अधिकार ही न हो। इतना हास्यास्पद विरोध तो कांग्रेस ने विदेशी शासकों का भी कभी नहीं किया।
स्वच्छता अभियान का विरोध, योग दिवस का विरोध, शौचालय बनवाने और लोगों को उसकी प्रेरणा देने का विरोध, नोटबंदी का विरोध, गौहत्या पर लगाई गई रोक का विरोध, सर्जिकल स्ट्राइक का, आतंकवादियों व अलगाववादियों तथा पत्थरबाज़ों के विरुद्ध की गई कार्यवाहियों का विरोध और न जाने क्या क्या, हर रोज़ हर बात का विरोध। प्रधानमन्त्री मोदी देश में रहें तो भी विरोध और विदेश यात्रा पर हों तो उसका भी विरोध। केवल और केवल विरोध। सत्ता में न रहने का दंश और महत्वाकांक्षा से राजनितिकों और उनके दल का चरित्र इतना दारुण, इतना वीभत्स, घृणामय और मलिन हो सकता है? साठ सत्तर वर्षों के प्रदीर्घ काल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस के अंतिम ‘मुगल’ वर्तमान में एक विदूषक की अविस्मरणीय भूमिका में हैं तथा एक अभूतपूर्व राजनैतिक दुर्बलता लिए विपक्ष में बैठने को विवश हैं। प्राय: एक सूबे तक सीमित रहने वाले कुछ दूसरे दल भी हैं। विपक्ष में बैठने की विवशता और सत्ता लोलुपता ने और इन सभी दलों के नेताओं की अतिशय अव्यावहारिक और असभ्य वाचालता ने सभ्यता और संस्कृति के सभी प्रतिमान ध्वस्त किये हैं। हमारे यहाँ लोकतन्त्र है, बोलने की स्वतन्त्रता भी है, सदियों से इस देश के लोग सहिष्णुता के अन्तिम सिरे तक परखे गये हैं तो क्या यहाँ कुछ भी होगा? अन्तर राष्ट्रीय षडयन्त्रों में शामिल होकर बहुसंख्य हिन्दुओं के विरुद्ध, उनके धर्म, संस्कृति, आस्था और देश के विरूद्ध कोई कुछ भी बोलेगा और षड्यंत्र करेगा? लोगों को यह समझना होगा कि लोकतन्त्र इस देश का विशेषण है, लोक कल्याण का सबसे सार्थक साधन है,साध्य नहीं। इसीलिए साधनों की शुचिता असंदिग्ध और अनिवार्य है।
इस बात से तो प्राय: सभी सहमत होंगे कि सत्ता पाने और भोगने की बड़ी दुर्निवार महत्वाकांक्षा और विकलता के साथ इस देश में परिवारवाद की एक कालिमामयी और निर्लज्ज रूढी स्थापित की गयी। एक ही परिवार से जुड़े योग्य-अयोग्यऔर देशी विदेशी सभी को लगने लगा वे प्राकृतिक रूप से हिन्दुस्तान के शासक हैं और भारत में शासन करने का उन्हें ही मूलभूत और दैवीय अधिकार है। स्वातन्त्र्योत्तर काल में होने वाले भारतीय इतिहास के चिरप्रतिक्षित नवप्रभात का तीन चौथाई से अधिक का समय तो इसी परिवारवाद की भेंट चढ़ गया। अब जाकर भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में इस परिवार का मायावी आकर्षण समाप्त होता दिखाई दे रहाहै।
विगत लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस की हुई अभूतपूर्व पराजयों ने तथा सत्ता के हस्तांतरण से हुई हताशा ने कांग्रेस जनों को अतिशय अधीर, विवेकशून्यऔर अनुशासनहीन बना दिया। व्यावहारिक राजनीति की सारी वर्जनाएँ कांग्रेस अब तक तोड़ चुकी है। कांग्रेस का कोई भी कार्य और व्यवहार अब नितान्त सन्देहास्पद और अविश्वसनीय हो गया है ।
मणिशंकर अय्यर का भारत के स्वाभाविक और परम शत्रु पाकिस्तान को अपना सबसे पसंदीदा देश मानकर, प्रबल बहुमत से चुने गये भारत के प्रधानमन्त्री श्री मोदी को अपदस्थ करने कीबात पाकिस्तान के TV इण्टरव्यू में कहना, कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों से बिना किसी वैध अधिकार के जाकर मिलना और सावरकर जी जैसे महान हुतात्माओं के बलिदान पर अभद्र टीका करना, ऐसी बातें हैं जो मणिशंकर के दुश्चरित्र का निदर्शन कराती हैं।
दिग्विजय सिंह ने तो हिन्दु होकर गौमांस को मुसलमानों का भोजन बनाने की निर्लज्ज और लांछनीय हिमायत की है। हिन्दुओं की परम आस्था की प्रतीक गाय कभी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हुआ करती थी, तब स्व. इन्दिरा जी को गाय की उपमा दी जाती थी उसी गाय और उसके निरीह बछड़े की सरे आम सड़क पर हत्या कर कांग्रेसियोंने उनका माँस-भक्षण किया। वस्तुत: ये भाजपा या मोदीजी का विरोध नहीं है अपितु समग्र और बृहत हिन्दू समाज का अविस्मरणीय अपमान है। आज इसकी प्रतिक्रिया शायद दिखाई न दे लेकिन बृहत हिन्दू समाज इस अपमान को भुला नहीं पायेगा।
अपने ६०-७० वर्षोंके लम्बे कार्यकाल में कांग्रेस ने कभी नक्सली और माओवादियों का प्रभावकारी दमन नहीं किया। अब तक हज़ारों सैनिक नक्सली समस्या की भेंट चढ़ चुके हैं। असंख्य निरपराध नागरिक भी मारे जा चुके हैं। अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेसियों की पूरी टीम को ही साफ़ कर दिया था, वरिष्ठ कांग्रेसी और केन्द्रीय मन्त्री रह चुके विद्या चरण शुक्ल भी इस हत्याकाण्ड में मारे गये थे। आज वही कांग्रेस मोदी के विरोध के लिए नक्सलियों से मदद माँगने का घोर दुष्कर्म भी कर रही है । यह कांग्रेस का अभूतपूर्व पतन है|
प्रधानमन्त्री श्री मोदीजी का यह प्रयास है कि मुस्लिम समाज से तीन तलाक़ और हलाला जैसी बुराइयाँ दूर हों, मुस्लिम महिलाएं भी इस देश की नागरिक हैं और पूरे आत्मविश्वास व सामाजिक सुरक्षा के साथ अपना और अपत्यों का विकास करना उनका नैसर्गिक अधिकार है। किन्तु कांग्रेस ने सामाजिक सुधार के इस उदार दृष्टिकोण का भी विरोध किया। केवल विरोध के लिये विरोध। जब देश परतन्त्र था तब भी अंग्रेज़ों ने इस देश में व्याप्त अनेक रूढ़ियों को समाप्त कर दिया। लेकिन आज देशआजाद है। आज कपिल सिब्बल स्वच्छन्द है तो शासन के उदार और कल्याणकारी प्रयास का भी सिब्बल ने अपनी फूहड़, अतार्किक और भौंथरी वाचन से विरोध किया। क्योंकि विरोध के लिये विरोध करना यही एकमात्र ध्येयहै। विगत तीन चार वर्षों से और विशेष कर केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने और श्री मोदी के प्रधानमन्त्री होने के समय से ही इस देश में एक विलक्षण राजनैतिक वातावरण निर्मित हुआ है। या यों कहिये कि निर्मित किया गया है । सबसे अधिक शोर गुल उस राजनैतिक दल ने मचाया जिसे विगत चुनावों में जनता ने सिरे से ख़ारिज कर दिया था। अन्य विरोधियों के साथ मिलकर इतना हो हल्ला जैसे चुनाव जीतने और सत्ता में आने का भाजपा को कोई नैतिक और वैध अधिकार ही न हो। इतना हास्यास्पद विरोध तो कांग्रेस ने विदेशी शासकों का भी कभी नहीं किया।
लेखक:
आर.डी. मुसळगांवकर
रजिस्ट्रार (से. नि.), देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर