स्वतंत्र सिनेमा बॉलीवुड के लिए कोई नई बात नहीं है। उस समय से लेकर, जब कभी वामपंथ से प्रेरित चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर’ ने कांस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरुस्कार जीता था, वर्तमान काल में, जहां आतंकवादियों और गैंगस्टरों का बेहिसाब गुणगान किया जाता हो, मसलन अब्दुल लतीफ़ का ‘रईस’ में, दाऊद इब्राहिम का लगभग हर बम्बईया क्राइम ड्रामा में, और तो और अरुण गवली का ‘डैडी’ में।
मतलब साफ है, बॉलीवुड को असल में वामपंथी पोषित सिनेमा से गहरा इश्क़ है, और इनके सिद्धांतों के विरुद्ध चलने वाले कहीं नहीं ठहरते बॉक्स ऑफिस पर, चाहे अभिनय कितना ही दमदार और स्क्रिप्ट कितनी ही नुकीली, तीखी और शानदार क्यूँ न हो। हालांकि अपवाद भी कम नहीं है, और वो अपवाद बॉलीवुड के इतिहास में अमर भी हुये हैं, जैसे ‘बार्डर’, ‘द ग़ाज़ी अटैक’, ‘वीर सावरकर’, ‘द लेजेंड ऑफ भगत सिंह’, ‘किस्सा कुर्सी का’, इत्यादि।
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के आगमन से मानो राष्ट्रवादी सिनेमा को पंख लग गए हैं। जिन्हें राष्ट्रवादी, सेंटर राइट सिनेमा का ज्ञान और दिलचस्पी है, वो धीरे धीरे ही सही, पर हिन्दी सिनेमा में अपनी छाप छोडने पर तुले हुए हैं। जैसे विवेक अग्निहोत्री ने बड़ी बहादुरी से नक्सलियों के जहरीली मानसिकता का पर्दाफाश अपने फिल्म, ‘बुद्धा इन अ ट्रेफिक जैम’, में किया है, उससे इनहोने राष्ट्रवादी सिनेमा, जो अमूमन कई फ़िल्मकार खोलने की सोचते भी नहीं है, में नई ऊर्जा का संचार किया है। ऐसे ही मैदान में सेंध लगाई है मशहूर फ़िल्मकार एवं कई राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार और फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाले मधुर भंडारकर।
अगर आप इन्हे नहीं जानते, तो क्या खाक जानते हैं बॉलीवुड के बारे में आप? महज अपनी दूसरी फिल्म ‘चाँदनी बार’ से छाप छोडने वाले, मधुर भंडारकर ऐसी फिल्में बनाते हैं जो कथित हाइ फ़ाई सोसाइटी के चेहरे पर आईने समान तमाचा जड़े। चाँदनी बार के बाद इनहोने ऐसी कई फिल्में बनाई, जिनमें प्रमुख हैं ‘कॉर्पोरेट’, ‘सत्ता’, ‘फ़ैशन’, ‘ट्रेफिक सिगनल’, ‘पेज 3’ इत्यादि, जो कई राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार और फिल्मफेयर अवार्ड घर ले आई। एक समय तो मधुर भंडारकर को हिन्दी सिनेमा के फिल्मांकन का उभरता सितारा बताया जाने लगा, जो थोड़े उतार चढ़ाव सहित ‘दिल तो बच्चा है जी’ के रेलीज़ होने तक बरकरार रहा।
उनकी अगली मूवी, ‘हीरोइन’, जिसमें मुख्य भूमिका पहले ऐश्वर्या राय, फिर उनके बाद करीना कपूर ने संभाली, का बॉक्स ऑफिस पर मिला जुला हश्र रहा। उनकी आखरी मूवी, ‘कलेंडर गर्ल्स’, जो सुपरमोडल्स के ज़िंदगियों पर आधारित थी, खराब स्क्रिप्ट और घटिया एक्टिंग के चक्कर में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गयी।।
बॉलीवुड के उन स्वघोषित आलोचकों ने मधुर भंडारकर को ‘चुका हुआ’ बताया, जो दाऊद इब्राहिम के नाम पर मुंह में शक्कर सहित दही जमा लेंगे, पर बिना देखे राष्ट्रवादी फिल्मों की जमकर भर्त्सना करेंगे।
फिर मधुर भंडारकर आए ‘ इन्दु सरकार ’ का ट्रेलर लेकर, जो भारत के अंधकार से भरे 1975 के आपातकाल पर एक तीखा कटाक्ष है, जो इन्दिरा गांधी को पीएम की कुर्सी से हटाने के उपलक्ष्य में लागू हुआ था।
ट्रेलर के अनुसार जाएँ, तो एक प्रश्न मन में आता है, क्या ‘ इन्दु सरकार ’ मधुर भंडारकर की उचित वापसी और प्रायश्चित का सुनहरा मौका हो सकता है? अगर ट्रेलर के हिसाब से जाएँ, और उसके धमाकेदार सामग्री पर एक नज़र डालें, तो निस्संदेह ये संभव है।
ट्रेलर की शुरुआत ही आपातकाल के काले निर्देश से होती है, जिसमें बीच में आने वाले शॉट आपातकाल की भयावहता को दर्शाने में अत्यंत सफल रहे हैं। यही शॉट बड़े इतमीनान से दिखते हैं की कैसे सत्ता की भूखी माँ बेटे की जोड़ी सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए इतना नीचे गिर सकते हैं। ऐसा बहुत बिरले ही होता है, की एक निर्देशक, जिसकी पिछली फिल्म बहुत बुरी तरह पिटी हो, वो ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इतना साहसिक कदम उठाए, यह प्रशंसनीय है। जिस तरह इनहोने इस मुद्दे को ट्रेलर में दिखाया है, अगर फिल्म भी ऐसी ही निकली, तो आप उस दौर की खुशबू मात्र से ही तिलमिला उठेंगे, की ऐसा बुरा वक़्त भी कभी भारत ने झेला था।
ट्रेलर फिर मुख्य किरदार इन्दु सरकार पर प्रकाश डालती है, जो एक हकलाती हुई कवियत्री है। अपनी कविता के साथ साथ, वो सिर्फ अपने छोटे से परिवार को खुश रखना चाहती थी, की अचानक आपातकाल का शैतान उनकी हँसती खेलती ज़िंदगी पर मानों ग्रहण की तरह आ जाता है। उसकी आशाओं के विपरीत, उसका पति, जिसका बंगाली स्टार तोता रॉय चौधुरी ने बखूबी रोल निभाया है, न सिर्फ डर में दुबकता है, बल्कि उसे और उसके बच्चों को उनके हाल पर ही छोड़ देता है। मध्यवर्ग की निष्क्रियता से तंग आ कर इन्दु सरकार उसी दमनकारी सिस्टम के खिलाफ आवाज़ उठाती है, जिसकी कमान, खतरनाक तानाशाह संजय गांधी के हाथों में है, जिसे बड़ी सुंदरता से नील नितिन मुकेश ने पर्दे पर उकेरा है।
https://youtu.be/qh-_gR6a5JE
इन्दु सरकार एक भूमिगत क्रांतिकारी संगठन के साथ हाथ मिलाती है, जिसका नेतृत्व हमेशा की तरह अपने कौशल से श्रोताओं का मन मोहने वाले अनुपम खेर करते है, जिनकी भूमिका कुछ हद तक आपातकाल के खिलाफ सबसे मुखर आवाज़, लोकनायक जय प्रकाश नारायण से प्रेरित है। कैसे एक हकलाती इन्दु आपातकाल के उत्पीड़न को समाप्त करने में एक अहम भूमिका निभाती है, ये देखने के लिए आपको 28 जुलाई तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जब सिनेमा हाल में ये फिल्म प्रसारित होगी।
यहां ट्रेलर से 8 दिलचस्प तस्वीरें हैं, जो कांग्रेस की रातों की नींदें उड़ा रहीं होंगी
1). संजय गांधी के किरदार में नील नितिन मुकेश – यह बड़ा अजीब है, वह बिलकुल संजय गांधी की तरह दिख रहें है, इससे पहले सिनेमा में संजय गांधी का किरदार कभी भी नहीं निभाया गया है
2). पुलिस राज – आपातकाल में लाठी प्रभार और अवैध नजरबंदियों के लिए कुख्यात था। ऐसा लगता है कि मधुर भंडारकर ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि 1 9 75 के पुलिस भयावहता को हर किसी को देखना चाहिए
3). क्या कोई यहां एक युवा जगदीश टाइटलर को देख सकता है?
4). जय प्रकाश नारायण – ऐसा लगता है कि पुराने समाजवादी, जिन्होंने इंदिरा की कुर्सी गिराई थी, उनको उनकी पूर्ण महिमा में दिखाया जाएगा
5). अनुपम खेर – आप सोच रहे होंगे की अनुपम खेर फिल्म में किसका किरदार निभाएंगे ? मुझे ऐसा लगता है की वह फिल्म में पत्रकार रामनाथ गोयनका का किरदार निभा सकते हैं
6). जिस फिल्म का नाम इन्दु सरकार हो, उसमे इंदिरा गांधी को आश्चर्यजनक रूप से कम एयरटाइम मिलता प्रतीत हो रहा है, ऐसी अफवाह थी की आपातकाल के दौरान सिर्फ संजय गाँधी और उनके दोस्तों का सिक्का चलता था। ऐसा लगता है कि मधुर भंडारकर इस हिस्से को भी तबियत से बताएँगे और दिखायेंगे
7). आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बुरी तरह डराया और खदेड़ा गया था, इस परिदृश्य में उनके संघर्ष को खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है
8). कीर्ति कुल्हारी को अधिकतम एयरटाइम मिला है, और सबसे शक्तिशाली संवाद उन्ही के हैं । ऐसा लगता है कि यह फिल्म वास्तव में उसके लिए ही है
सच बोलूँ, तो ये वो फिल्म है, जो अपने निष्ठा के अलावा दूध का दूध और पानी का पानी करने में सक्षम है, बिना किसी नमक मिर्च के। छोटे दृश्यों में ही सही, पर भारतीय लोकतन्त्र के कथित पहरेदारों के चहरे से मुखौटा उखाड़ने को तत्पर है ये फिल्म, जिनहोने क्रूर गांधी खानदान के साथ मिलकर मलाई काटने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कृति कुलहरी के उत्कृष्ट अभिनय और नील नितिन मुकेश और अनुपम खेर की दमदार वापसी की संभावना सहित ‘ इन्दु सरकार ’, मधुर भंडारकर के लिए एक स्वर्णिम अवसर के अलावा यातना देने वाले आपातकाल के घावों पर मरहम लगा सकती है।
आशा करते हैं की श्री भंडारकर इस विषय को भरपूर न्याय दे, जैसा उन्होने अपने ट्रेलर के माध्यम से देने का वादा किया है।