जिहादी भीड़ अब आपके और नजदीक पहुँच गयी है, जितना आप सोच रहे हैं न, उससे भी ज़्यादा। महागुण मोडेर्ने सोसाइटी के निवासियों को इस सच्चाई से हाल ही में अवगत होना पड़ा।
रेपोर्टों के अनुसार, एक नौकरानी ने इस सोसाइटी के एक फ्लैट से कई रुपये उड़ाए, और इसके मालिक के पास इसका विडियो प्रूफ भी था। पीड़ित के अनुसार, ‘जब मैंने इसके बारे में पूछताछ की, तो जोरा बीबी [नौकरानी का नाम] ने इसे उसकी तंख्वाह से काटने को कहा, और अपार्टमेंट प्रबन्धकों से शिकायत न करने की मिन्नत की। हमारे पास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी है।’ हम में से कोई भी होता, तो यही करता, की संबन्धित अधिकारियों से इस कृत्य की शिकायत करते। तब उक्त महिला भाग निकली, जिसे निवासियों ने सोसाइटी में स्थापित सीसीटीवी कैमरों से प्रमाणित भी करवाया।
अब आते हैं मुख्य घटना पर, जिसके बारे में जितना कहा जाये, उतना कम पड़ेगा। इस घटना की प्रतिक्रिया में नौकरानी के पति अब्दुल सत्तार सिपाहियों के साथ पीड़ित के घर आ धमके और उसे धमकाने में जुट गए। वहाँ खड़े सिपाहियों ने ही उससे पहले अपनी पत्नी को ढूँढने की हिदायत दी और पीड़ित को धमकाने से भी मना किया, क्योंकि उसकी पत्नी वहाँ नहीं उपस्थित थी।
अब्दुल फिर अन्य गुंडों सहित सोसाइटी में आ धमका और उसके बाद जो हुड़दंग मचा, उसमें वे पीड़ित के घर में घुसे भी और तोडफोड भी मचाई। बेचारे पीड़ित को एक गहरा धक्का लगा, क्योंकि न सिर्फ उसे लूटा गया, बल्कि अपने मेहनत की कमाई से बनाए मंदिर को भी इन गुंडों ने तोडताड़कर अलग कर दिया। एक सुरक्षा से लैस सोसाइटी की चहरद्वारी में अपने परिवार को सुरक्षित रखने की इनकी मंशा भी धारशायी हो गयी।
पुलिस के अनुसार ‘कई प्रदर्शंकारी घरेलू नौकर थे, और जोरा बीबी के पहचान वाले भी थे। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है की पुलिस की मौजूदगी में भी भीड़ को काबू में करने के लिए 3 घण्टे लग गए। इस भीड़ ने बच्चों को न सिर्फ स्कूल जाने से रोका, बल्कि काम पर जाने वाले आदमियों को भी रोका। भगवान न करे अगर कोई स्वस्थ्य संबन्धित समस्या होती, तो क्या होता?
अब्दुल दावा करता है की उनपर सेक्युरिटी ने लाठीयों से हमला किया जिसके जवाब में इनहोने कारवाई की। अच्छा भैया? मैं ये जान सकता हूँ की कौन से शान्तिप्रिय लोग अपने जेबों में पत्थर रख के घूमते हैं? और किस मुहाने पर आत्मरक्षा की लड़ाई अपना वर्चस्व दिखाने की लड़ाई में तब्दील हो जाता है? सफ़ेद झूठ बोलना तो कोई इनसे सीखे।
सोश्ल मीडिया पे प्रसारित इस घटना के कई विडियो में दिखाया गया है की गुंडों की इस भीड़ के हाथों में लोहे की रोड थी। इनहोने पत्थरबाजी का वो तरीका अपनाया, जो पश्चिम बंगाल और कश्मीर में दंगे मचाने में इस्तेमाल होने वाला आम हथियार है। मारे डर के कोई निवासी बाहर ही नहीं निकला। इस तरह की निवासी सोसाइटी पर तो जानवर ही हमला कर सकते हैं। पर आपको याद दिला दूँ, जब कश्मीरी पंडितों ने भागने से इनकार किया, तो उन्हे उनके घर में ही घुसकर मारा गया, पर यहाँ तो निवासी एक धर्मसंकट में फंसे हुये थे, क्योंकि बाहर एक ऐसी भीड़ खड़ी थी, जो इन्हे किसी तरह बचने नहीं देती।
महागुण सोसाइटी पर इस सुनियोजित पत्थरबाजी वाले हमले ने कई निवासियों को इस सच्चाई से अवगत कराया, की उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आएगा, क्योंकि सिर्फ वहाँ मौजूद सुरक्षा गार्ड ही उनसे भिड़ने की हिम्मत जुटा पा रहे थे। ज़रा सोचिए की 300 बांग्लादेशियों की सशस्त्र भीड़ ने क्या किया होता।
एक आम लड़ाई में बांग्लादेशियों ने एक डॉक्टर, पंकज नारंग की नृशंस हत्या कर दी थी, और अगर वो बहादुर गार्ड न होते, तो शायद इस घटना को एक बार फिर दोहराया जाता। पीड़ितों को पत्थर से मार मार कर हत्या की जाती, जो इन कथित शांतिदूतों में आम बात है, क्योंकि बसीरहट के दंगे भड़काते वक़्त उन्होने पकड़े गए उस लड़के के लिए इसी सज़ा की मांग की थी। जब भीड़ पीड़ित को ढूंढ रही थी, तो आसपास के निवासियों ने उन्हे छिपाकर उनकी जान बचाई थी।
यही सही मौका है जब खतरे की घंटी बजा देनी चाहिए। इस खेल के खिलाड़ी अब आपके बगल में रहते हैं, और उन्हे एके 47 की आवश्यकता भी नहीं। इन्हे मौका मिले तो पूरा क्षेत्र ही इनके इशारों पर नाचेगा। इस क्षेत्र के लोगों को अपना घर छोडना पड़ेगा।
इस आव्रजन का कारण है रोजगार। आपको लगता है की आपके पास सस्ता श्रम है, पर असल बात तो ये है की आप उनके लिए एक आसान निशाना हैं!