जिस दिन एक सैनिक को वर्दी से सुशोभित किया जाता है, चाहे वो ऑलिव ग्रीन हो या स्काइ ब्लू हो, या फिर नेवी व्हाइट या खाकी वर्दी ही क्यों न हो, संबन्धित व्यक्ति को ये प्रमाणपत्र मिलता है की संकट की घड़ी में वह अपना सर्वस्व त्याग अपने देश की दुश्मनों से देश की रक्षा कर अपने प्राणों की आहूति भी दे सकता है । पर हाल ही में मैंने यह समझा की खाकी बाकी क्षेत्रों से थोड़ा अलग है।
खाकी को जो अलग रखता है बाकी सैन्य क्षेत्रों से, वो बीएसएफ़ के 113वीं बटैलियन के असिस्टेंट कमांडेंट श्री अनुभव अत्रे से साफ ज़ाहिर होता है, जिनकी कहानी नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर प्रसारित एक डॉक्युमेंट्री ‘बीएसएफ़ – इंडिया’ज़ फ़र्स्ट लाइन ऑफ डिफ़ेन्स’ में बताई गयी है, और जिनपर एक नागरिक की हत्या हेतु कोर्ट मार्शल का मुकदमा चलाया जा रहा है।
जिस दिन आप एक सैनिक बनते हैं, उस दिन आप कसम खाते हैं की आप अपने मातृभूमि के लिए अपनी जान भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकेंगे। पर अगर आप खाकी पहनकर बीएसएफ़ में घुसते हैं , तो आपको एक अतिरिक्त नियम का पालन करना पड़ता है:- ‘अति अनुशासित रहने का नियम’
ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ है उस घटना को, जब कश्मीर घाटी में उपचुनाव के दौरान सीआरपीएफ़ के जवानों को कश्मीरी आतंकी लतिया रहे थे, गरिया रहे थे और चिढ़ा भी रहे थे। फिर जब मेजर नितिन लीतुल गोगोई ने एक पत्थरबाज़ को अपने जीप पर बांधकर निर्वाचन कर्मचारियों को बचाने के लिए आगे आए, तो न सिर्फ अफसरों और मातहतों ने इनका समर्थन, बल्कि खुद सेनाध्यक्ष ने इन्हे प्रशस्ति पत्र से सम्मानित कर इनके जैसे वीरों की हौस्लाफ़्जाई की।
इन दोनों घटनाओं में अंतर है उक्त अफसरों के कृत्यों का वरिष्ठ अफसरों द्वारा समर्थन। ये सही है की राष्ट्रीय राइफल्स भी पैरामिलिट्री का हिस्सा है, पर आदमी भी तो भारतीय सेना से है।
तो आखिर उस दिन हुआ क्या था?
13 मई 2016 की रात को बीएसएफ़ की इंटेलिजेंस ब्रांच ने ये सूचना अपने अफसरों को भिजवाई की भारत बांग्लादेश सीमा पर सोने की तस्करी धड़ल्ले से जारी है। 7 लोगों की टीम बनाकर और एक पम्प एक्शन गन, एक गैर घातक अस्त्र और एक इंसास राइफल से लैस होकर शत्रु की प्रतीक्षा में ये जुट गए। तकरीबन 12-15 सोने के तस्कर थे, जो सोने की वस्तुओं से भरे 2 पैकेट भारतीय खेमे में फेंकने जा रहे थे, और उनकी रक्षा के लिए उनमें से दस लोग बड़े बड़े चाकू, या डा से लैस थे। पर करीब 10 बजे, जब यह तस्कर सेंध लगाने की तैयारी में थे, तब एक बीएसएफ़ सिपाही निहत्था इन तस्करों को पकड़ने दौड़ पड़ा। तभी उस अफसर ने एक आवाज़ सुनी, जिसमें एक तस्कर ने दूसरे से बंगाली में बोला, ‘निए जाई’ [इस सिपाही को बंगलादेशी क्षेत्र में खींचो]। दूसरे ने कहा, ‘मार’, जिससे अफसर को समझ में आ गया की इसके मातहत की जान पर अब बन आई है। अनुभव अत्रे ने बताया की पहले उसने गैर घातक अस्त्र का इस्तेमाल कर हवा में फायर किया।
जब तस्कर टस से मस नहीं हुये, तब एसओपी [स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर] के अनुसार इनहोने 40-50 मीटर की दूरी से तस्करों पर वार किया। गोली एक युवा तस्कर को लगी, जो बाद में बांग्लादेशी प्रांत में जाकर मरा। बीएसएफ़ और बीजीबी [बांग्लादेश में बीएसएफ़ का समकालीन] में हुये समझौते के तहत पैट्रोल करने वाली पार्टियों को घातक और गैर घातक अस्त्रों को रखने की अनुमति प्राप्त है।
इसके बाद तस्कर कूदकर अपने जान बचाते हुये भाग खड़े हुये। मिनटों के अंदर, मुख्य कमांडेंट ने अफसर को सूचित किया की बांग्लादेशी सेना ने उन्हे एक नागरिक की हत्या के बारे में खबर दी है।
दोनों सेनाओं ने फ़्लैग मीटिंग रखी, जहां अफसर की सफाई से आंशिक रूप से बीजीबी संतुष्ट दिख रहा था। पर बांग्लादेशी मीडिया के दबाव में, सूत्रों के अनुसार, अनुभव अत्रे बलि का बकरा बना दिया गया। जांच के लिए बैठायी गयी कोर्ट ने बीएसएफ़ की दोषपूर्ण योजना के लिए उसे जमके लताड़ा, पर किसी एक्शन के लिए वकालत नहीं की। तो फिर ये कोर्ट मार्शल क्यों?
कहने को हर वर्दिधारी युवक खास होता है, पर अनुभव अत्रे तो श्रेष्ठों में श्रेष्ठ हैं, परमवीर है, और इनकी उपलब्धियों इनकी वीरता को बताने के लिए काफी है:-
केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल परीक्षा 2010 में ऑल इंडिया रैंक 4 पाने वाले, अनुभव अत्रे ने सीआईएसएफ़ की नौकरी छोडकर बीएसएफ़ जॉइन की। 2015 तक इनहोने कई खिताब और सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का स्वर्ण पदक भी जीता, राष्ट्रीय स्तर के एक प्रतियोगिता में 23 समकालीन जवानों को शिकस्त देते हुये।
अनुभव अत्रे को डीजी [डाइरेक्टर जनरल] से प्रशस्ति पत्र भी मिला हुआ है
बीएसएफ़ के पूर्व एडीजी संजीव सूद कहते हैं, “मेजर गोगोई को अनुचित समर्थन मिला है, क्योंकि उन्होने कानून का उल्लंघन किया है, पर यहाँ कानून के हर प्रावधान का पालन करते हुये अनुभव अत्रे ने अपने मातहतों की रक्षा की। इस जांच समिति ने हमें शर्मिंदा किया है। उसे अब कोर्ट मार्शल के दुखदायी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, और जवानों और अफसरों को एक गलत संदेश गया है’ मैं आंशिक रूप से संजीव साब से सहमत हूँ पर आदर सहित मेजर गोगोई वाले मुद्दे पर असहमत हूँ, क्योंकि मेजर गोगोई ने जो भी किया, सही किया, और उनका समर्थन भी उचित था। समय है बीएसएफ़ को भी इस केस से कुछ सीखकर ऐसे ही अनुभव अत्रे की मदद करने का!