ये सब 2015 में शुरू हुआ। पीएलए नौसेना ने 2 शांग श्रेणी और 2 हान श्रेणी के पनडुब्बी को 56 पारंपरिक डीजल इलैक्ट्रिक पण्डुब्बियों के साथ चलवाया। सभी का निशाना था 10 सक्रिय और 2 निर्माण में व्याप्त यूएस नौसेना के विशालकाय विमान वाहकों पर।
ये बड़ी किफ़ायती योजना थी चीनी नौसेना की किफ़ायती और पारंपरिक पण्डुब्बियों की एक टुकड़ी को विशालकाय परमाणु चालित युद्धपोतों के खिलाफ खड़ा करने की। पर हनीमून अब खत्म हो चुका है LEOMA के आने से [माने लॉजिस्टिक्स एक्स्चेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमंट] और पी8आई नेपच्यून के आगमन से। सोने पर सुहागा हुआ ‘गार्जियन निशस्त्र सर्वेलेन्स ड्रोन्स’ के आने से, या दूसरे शब्दों में कहे तो चीनी पण्डुब्बियों के लिए हिन्द महासागर के द्वार बंद हो चुके हैं, जो चीन के लिए चिंता का विषय है। गुंडे को गुंडई न करने को मिले तो छटपटाएगा नहीं क्या?
वैसे भी मलक्का के स्ट्रेट्स दुनिया के सबसे अहम नौवहन मार्गों में से एक है।
हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है यह जल्स्त्रोत। हर साल यहाँ से 94000 से ज़्यादा जहाज़ गुजरते हैं, और 2008 में ये तो सबसे व्यस्त जल्स्त्रोत भी बना था, जो उस वक़्त चीन का लगभग 80% तेल और चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ का संचालन करती थी, माने उसके निर्मित उत्पादों का। साथ ही साथ ये दुनिया के सबसे संकीर्ण जहाज़ी मार्गों में से एक था, जो एक वक़्त पर सिर्फ 2.8 किलोमीटर तक ही चौड़ी हो पाती थी।
मलक्का के स्ट्रेट से अंडमान और निकोबार द्वीपों की निकटता इसे इस क्षेत्र के निरीक्षण के लिए काफी अहम साबित करती है, और इसे आधुनिक पी8आई नेपच्यून और 22 गार्जियन ड्रोन्स से निरीक्षण में रखने की वजह से ही चीन तिलमिला रहा है।
इस तिलमिलाहट का एक और कारण हो सकता है, क्योंकि चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडॉर में अब बलोचिस्तान स्वतन्त्रता सेना ने उंगली करना जो शुरू कर दिया है। इसके कारण सैन्य रूप से मजबूत होने पर भी चीन भारत को पीछे नहीं हटा पा रहा है। अरुणाचल में और अब भूटान सिक्किम सीमा पर इनके चोंचले सिर्फ यही साबित कर रहे हैं की भारत को झुकाने की चीनी कोशिशें नाकाम हो रही है, और शायद ये भी भूल रहे हैं की इसी क्षेत्र में 50 साल पहले हमने इन्ही चीनियों की तबीयत से धुलाई की थी। नथु ला की विजय याद दिलाऊँ क्या?
26 मई 2014 को जबसे नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता संभाली है, तभी से उन्होने चीन के चोंचलों को काबू में रखने की मानो कसम उठाई है। और अब LEOMA , जापान-यूएस-भारत त्रिपक्षीय नौसेना युद्ध अभ्यास , वियतनाम को हथियार बेचना और पहाड़ी हमलों के लिए टुकड़ियाँ बनाना, अरुणाचल में रेल और रोड का मायाजाल बिछना, खासकर तवांग के पास, इन सबसे मोदी की इस क्षेत्र में प्रतिबद्धता ही ज़ाहिर होती है।
अब इन सभी बिन्दुओं को आप जोड़ें, तो समझ में आता है की चीन अब काफी बेचैन और तिलमिलाया हुआ है। चीनियों की हमेशा आक्रामक नीति रही थी भारत के खिलाफ।
केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार और चीन के साथ बदलते समीकरणों, जहां भारत ने नए दोस्त बनाए, और चीनियों ने दुश्मन, यहाँ से मित्रों ये देखना दिलचस्प होगा की चीन आगे क्या करेगा, क्योंकि अब भारत उसकी गुंडई नहीं सहने वाला, और अब विकल्प भी खत्म हो रहे हैं!
शं नो वरुणः
Sir me bhi ispar post likhnaa chahtaa hu…agar aap ko page to me international relation or kutniti par achi post likh kar bhej skta hu