ममता बनर्जी की मदद से भाजपा जल्दी ही पश्चिम बंगाल भी जीतेगी, जी हाँ सही पढ़ा आपने

ममता

‘हमें एक महागठबंधन की आवश्यकता है भाजपा को देश से भगाने के लिए’
‘मोदी जी को हमारी ज़रूरत नहीं है राष्ट्रपति चुनाव के लिए’
‘अंग्रेजों की भांति, हमें एक और भारत छोड़ो आंदोलन की आवश्यकता है। भाजपा को भारत छोडना पड़ेगा!’

अगर आपको ऐसा लगता है की सुप्त ज्वालामुखी, जिसका नाम केजरीवाल है, वो फिर से सक्रिय हो उठा हो, तो इतनी उम्मीद मत लगाओ। ये केजरीवाल नहीं, बल्कि बंगाल में महिला सशक्तिकरण की कथित आवाज़, और अनौपचारिक रूप से इस्लामिक कट्टरपंथी की संरक्षक, ममता बनर्जी हैं, जो नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए इतना आतुर है, इस बात को दरकिनार करते हुये की बंगाल में उनकी सत्ता को अभी कोई खतरा नहीं है।

ये बेचैनी इनके चेहरे पर क्यों? क्या परेशान कर रहा है इन्हे? इनका चेहरा डर से सफ़ेद क्यों हुआ जा रहा है ? जवाब बहुत सरल है :- बंगाल राजनीति में भारतीय जनता पार्टी की चुपचाप बढ़ती धमक, जिनहोने इनकी मनोदशा इश्क़ के इस गाने की तरह कर दी है:- “नींद चुराई मेरी। किसने ओ सनम? तूने!”

जिस राज्य को कुएं या खाई में चुनना पड़ा हो, यानि छद्म धर्मनिरपेक्षता और लाल सलाम में, भाजपा, जो इस वक़्त राष्ट्रवाद की भारत में एकमात्र राजनैतिक प्रतिनिधित्व है, धीरे धीरे पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ बनाए जा रहा है, जहां पाँच साल पहले सिर्फ सीट जीतने की बात ही करने पर इनका खूब मज़ाक उड़ाया जाता था। ठीक है, ये विधानसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है, , पर अभी बंगाली राजनीति में भाजपा ममता बनर्जी की नींद हराम किए हुये हैं। इनकी धमक का बंगाली राजनीति में कोई सानी नहीं।

वामपंथी और काँग्रेस, अपनी सीटें जीतने के बावजूद, खुद ही का विध्वंस करने में लगे हुये हैं। ऐसे में भाजपा इकलौती पार्टी दिखती है, जो तृणमूल काँग्रेस के शासन को खुली चुनौती दे सकती है, जो अपने आप को एक तानाशाही सत्ता के तौर पर स्थापित करने में जुटी है और इस्लामिक साम्राज्यवाद के प्रहरियों की गुंडई पर आँखें मूँदी बैठी है। मालदा से लेकर ढुलगढ़ से बसीरहाट तक, इन इस्लामिक अतिवादियों ने हजारों निरीह और निर्दोष बंगाली हिंदुओं पर जो दंगा मचाया हुआ है, वो भी ममता बैनर्जी के सक्रिय संरक्षण में, उसे देख तो सबसे क्रूर तानाशाह भी नन्हें मुन्ने बच्चे समान निर्दोष लगेंगे।

सिर्फ ये सुनिश्चित करने के लिए की भाजपा कभी भारत के सांस्कृतिक राजधानी रहे कलकत्ता में अपने पैर ना जमा सके, ममता बनर्जी तो शैतान तक से हाथ मिलाने को तैयार है।

कुछ भी उनके राज्य के साथ बुरा हो, इनका घूम फिर के एक ही जवाब आता है – मोदी और भाजपा जिम्मेदार हैं। भाई मैंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी की ममता बैनेर्जी और केजरीवाल, जो अपने राज्यों की बलि तक चढ़ने, ताकि अपने प्रेम, 130 करोड़ भारतियों के ‘प्रधान सेवक’ की एक प्रेम भरी निगाह देखने को मिल जाये।

मज़ाक को अलग रखते हुये, ममता बनर्जी के लिए मुद्दे से भटकना हलवा खाने के बराबर है।  चाहे सारधा चिट फ़ंड घोटाले में इनके प्रताप से कितने ही बंगालियों ने अपने जीवन भर की पूंजी गंवा दी हो, या फिर सरदा फ़ंड घोटाले में इनके मंत्रियों की ज़बरदस्त मिलीभगत रही हो, ममता बनर्जी तो वो बला हैं जो सीधे मुंह और बेशर्मी से झूठ बोले। अरे रुकिए, थोड़ा मुक़ाबला तो केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से भी हैं। पर उनके बारे में बाद में।

इन्हे भाजपा से कोई दिक्कत नहीं है, पर फिर भी सत्ता में बने रहने की बेचैनी ये दर्शाती है की बंगाल सरकार में सब कुछ सही नहीं है। जब भारतीय थलसेना की एक कमांडिंग यूनिट ने विद्यासागर सेतु पर प्रशासनिक कार्य हेतु मौक ड्रिल का आयोजन किया, क्योंकि अफवाहों के अनुसार विमुद्रीकरण के बाद बांग्लादेशी तस्कर अपना बहुत सा अवैध पैसा घर ले जा रहे थे। इसके बाद जो ममता बैनर्जी का चीखता चिल्लाता और नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को गरियाता विडियो आया, उससे ये साबित होता है की अपने वोट बैंक को प्रसन्न करने के लिए ये कितना नीचे गिर सकती है। ये विडियो देख तो अरविंद केजरीवाल भी सयाना लगेगा।

https://www.youtube.com/watch?v=9-VrHb04fHI

ये हमारे लिए चौंकने वाली बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये वही मुख्यमंत्री है जिनहोने सूजेट्ट जॉर्डन के बिगड़े नवाबों और एक बांग्लादेशी मूल के गैंगस्टर दवारा बलात्कार को झूठा साबित करने में लग गयी और इसे एक राजनैतिक साजिश बताया, और जब इस केस की गुत्थी इनके आशाओं के विपरीत निकली, तो इनहोने केस लगभग क्रैक करने वाली पुलिस अफसर दमयंती सेन का बंगाल के सुदूर इलाकों में स्थानांतरण करा दिया। तो यह हास्यास्पद लगता है जब ये भाजपा पर फासीवाद के आरोप लगती है, जबकि खुद इनकी पुलिस एक अत्याचारी तानाशाह के दलालों की तरह बर्ताव करती है, किसी पे भी एफ़आईआर ठोंक देती है, और असली अपराधियों को सदैव दरकिनार करती रहती है।

पर जुनून चाहे जितना महान क्यों ना हो, यदि सही नहीं, तो कुछ नहीं, अगर मेरी याददाश्त कमजोर नहीं है तो। ममता के मोदी के लिए यह जुनून उनही के शासन के लिए घटक बन रहा है, क्योंकि ये उनके हाथों से उनही के शासन को छीनने के लिए तैयार है। भाजपा को शासन से बाहर रखने की जुगत में ये सिर्फ इनकी राह और आसान बना रही है। जैसे आईबी चीफ़ भास्करन ने ‘कहानी’ में विद्या बसु को मिलन दामजी तक पहुँचने से रोकने की नाकाम कोशिश की थी, उसी प्रकार ममता जी अपनी कब्र अपने हाथों से खोद रही हैं। यकीन नहीं होता तो यह देखिये।

आंकड़ों को दुरुस्त करते हैं, तो दिखेगा की 2006 तक एनडीए कहीं नज़र ही नहीं आती थी, और 2011 के एक उपचुनाव में ही बंगाल विधानसभा को पहला भाजपा विधायक मिला पर 2016 के चुनावों में अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुये 5.92% से अपना वोट प्रतिशत बढ़ाते हुये इनहोने 10.7% तक अपना वोट प्रतिशत किया। तब से धीरे धीरे इनहोने बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत की है। स्थानीय चुनावों में इनहोने अपने वोट प्रतिशत को 48% से बढ़ाया, और इतना लाभ कोई हंसी मज़ाक की बात नहीं। ये बात हमसे ज़्यादा ममता की सरकार अच्छी तरह जानती है।

अपने खुद के नमूने अगर छोड़ दें, तो भाजपा की बंगाल इकाई को आए दिन ममता की बंगाल सरकार का प्रकोप झेलना पड़ता है। प्रोफेसर राकेश सिन्हा और सुधीर चौधरी जैसे बुद्धिजीवियों पर ऊटपटाँग एफ़आईआर हो या फिर कैलाश विजयवर्गीय और रूपा गांगुली के खिलाफ बिना किसी सबूत झूठे मुकदमे दर्ज करना हो, भाजपा के लिए राइटर्स बिल्डिंग तक पहुँचना आसान नहीं है। पर अपने एकमुश्त भाजपा विरोधी एजेंडे से ममता वही गलतियाँ दोहरा रही है जो कभी उत्तरप्रदेश के पूर्व, घमंडी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने की थी। तो आश्चर्य नहीं होगा यदि बंगाल भाजपा वाकई में पीड़ित का कार्ड खेलकर 2021 में सत्ता पर विजय प्राप्त कर सके।

ये तो कुछ भी नहीं है। 2009 में सिर्फ 6.1% वोट से 2014 में आश्चर्यजनक 16.8% तक, भाजपा ने अपने इरादे साफ ज़ाहिर कर दिये हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, जो तानाशाही ममता दिखा रही हैं हजारों निर्दोष बंगाली नागरिकों पर अपने गुंडों द्वारा, उससे उनका फायदा होने के बजाए हानि ज़्यादा हो रही है। और इनके आशीर्वाद से भाजपा बड़ी तेज़ी से फल फूल रही है। इनके पास अभी भी चार साल हैं, और एक सुदृढ़ कल के लिए इनके पास अपनी गलतियाँ सुधार कर, अपने राज्य को दरकने से बचाने का यह सुनहरा मौका है, यदि इनमें थोड़ी बहुत भी शर्म है।

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