सावधान!!! चेतावनी दी जा चुकी है, ‘वो भाग ज़रूर सकते हैं, छुप नहीं सकते’ यह शब्द सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के मुख से निकले हैं।
ये बात अजित डोभाल साब ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह को तब बताई, जब ये अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले के पश्चात की जा रही कारवाई से दोनों को अवगत करा रहे थे। अभी हाल ही में सोमवार, 10 जुलाई, को पहलगाम से 50 किलोमीटर दूर, एक गुफा में स्थित पवित्र अमरनाथ तीर्थस्थल से लौट रहे यात्रियों के एक काफिले पर इस्लामिक आतंकवादियों ने हमला बोल दिया। 7 लोग मारे गए, जिनमें 6 औरतें थी। इस हमले में 19 लोग घायल भी हुये।
उम्मीद के अनुसार, राजनैतिक नेताओं ने इस घटना की ‘कड़ी निंदा’ की और ये घोषणा की कि भारत को ‘ऐसे कायराना हमलों से हार नहीं माननी चाहिए।’ नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवारों से अपनी संवेदना जताई, तो अरुण जेटली ने इसे एक ‘निंदनीय कृत्य’ कि संज्ञा दी। जम्मू और कश्मीर कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इसे ‘कश्मीर की आस्था और परम्पराओं पर हमला’ बताया।
एनएसए अजित डोभाल
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, कीर्ति चक्र विजेता वैसे तो किसी परिचय के मोहताज नहीं। मिज़ो नेशनल फ्रंट के विद्रोह के समय इनहोने इस गुट के सात में से छह कमांडरों को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया था। इनहोने काफी समय तक बर्मा में अराकान योमा क्षेत्र में भेस बदलकर मिज़ो नेशनल आर्मी के साथ वक़्त बिताया। इतना ही नहीं, इनहोने बतौर गुप्तचर चीनी और पाकिस्तानी क्षेत्र में भी काफी समय बिताया है और साथ ही साथ समय समय पर आवश्यक सूचना भी भारत भेजते रहे हैं। इनहोने सिक्किम का भारत में विलय करने में भी अहम भूमिका निभाई है।
तो ऐसे रेकॉर्ड के साथ जब अजित डोभाल बोलें कि ‘वो भाग ज़रूर सकते हैं, छुप नहीं सकते’, तो समझ लीजिये आतंकियों के लिए खेल अब लगभग खत्म हो चुका है।‘
पिछले कुछ हफ्तों में एनएसए ने उन आतंकियों की सूची मुहैया कराई है, जिनहे पिछले कुछ हफ्तों में खत्म किया गया है। अब तक 50 से ऊपर आतंकी मारे जा चुके हैं। तीन हिजबुल गुटों को ‘सक्रिय कार्यकर्ताओं’ के तौर पर पहचाना गया है, और इनकी गतिविधियों पर भारतीय सेना की पैनी नज़र लगी हुई है। संक्षेप में कहा जाए तो इन गुटों को सेना ने चारों तरफ से घेर के रखा हुआ है। दो दलाल जो इन आतंकियों को हथियार और बारूद मुहैया कराते हैं, उन्हे भी पहचान लिया गया है। सरकार के पास उस मार्ग का नक्शा भी है जिसका सहारा यह आतंकी यदा कदा लेते रहते हैं। थर्मल सेंसर्स से लैस ड्रोन्स (जो हाइ रेसोल्यूशन इमेज निकालने में सक्षम है) को भी आतंकियों की तलाशी में लगाया गया है। इतना ही नहीं, आतंकियों के सफाये में राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन {एनटीआरओ} की भी सहायता ली जा रही है।
अलगाववादियों की फिसलती पकड़
तबसे यह यात्रा काफी हद तक संघर्ष मुक्त रही है। एक इंडियन एक्सप्रेस के लेख ने ये जताने का प्रयास किया की अलगाववादी नेता अमरनाथ यात्रा को कश्मीर मुद्दे के दायरे से बाहर रखने की हरसंभव कोशिश करते हैं, क्योंकि ये अलगाववादी अमरनाथ यात्रा को घाटी में सांप्रदायिक सौहार्द की एक जीती जागती मिसाल के तौर पर जताना चाहते हैं। जबसे घाटी के मूलनिवासी, यानि कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाया गया है, तबसे अलगाववादी नेताओं के लिए ये अवश्यंभावी है की यहाँ पर हिंदुओं के साथ किसी प्रकार की ज्यादती न हो, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण था अमरनाथ यात्रा। पर जबसे हमला हुआ है, और उसके बाद मारे गए आतंकियों को आईएसआईएस के परचम में लपेटना और फिर दुर्दांत आतंकी ज़ाकिर मूसा का इस्लामिक शासन के लिए मांग करना ये साफ दर्शाता है की हुर्रियत की इनपर पकड़ अब ढीली हो रही है, इनके हाथ से इनके चेले, यानि इस्लामिक आतंकी अब फिसलते जा रहे हैं।
आतंकियों की अब खैर नहीं
हाल ही में आतंकियों को नेस्तनाबूद करने की मुहिम में काफी इजाफा आया है। एक वरिष गृह मंत्रालय के अफसर के अनुसार, ‘सेना को कश्मीर घाटी में छुपे आतंकियों को ढूंढ ढूंढकर घेरने की खुली छूट दी गयी है, जिसके बाद निशाने की सही मैपिंग और उचित इंटेलिजेंस के साथ बिना ज़्यादा नुकसान किए इन आतंकियों को धराशायी किया जा सकता है’।
गौर कीजिएगा, इस अफसर के अनुसार 2 जुलाई तक 92 आतंकी मारे जा चुके हैं, जिनमें प्रमुख निशाने बड़े और खूंखार आतंकवादी रहे है, जैसे उदाहरण के लिए बुरहान वानी के उत्तराधिकारी सबजार अहमद भट्ट, बशीर अहमद इत्यादि।
घुसपैठ के आंकड़ों में भी गिरावट आई है। 2016 में दर्ज 371 घुसपैठों के मुक़ाबले अभी मई के अंत तक घुसपैठ से संबन्धित सिर्फ 124 केस ही दर्ज हुये हैं। एक गृह मंत्रालय के अफसर ने बताया है, ‘इन 124 आतंकियों में से कईयों का सफाया हो चुका है। न सिर्फ इनके विरुद्ध सक्रिय अभियान चलाये जा रहे हैं, अपितु इनके विरुद्ध सेना और अन्य पैरामिलिट्री सेनाओं की प्रतिक्रिया में काफी हद तक सुधार आया है।’
आतंकियों की फंडिंग
3 जून 2017 को कश्मीर घाटी, दिल्ली और हरियाणा में कुल मिलाकर करीब 23 स्थानों पर राष्ट्रीय इन्वैस्टिगेशन एजेंसी ने घाटी में व्याप्त आतंकी फंडिंग के सिलसिले में छापे डलवाए हैं। इन छापों में जो निकल के सामने आया, उसने राजनाथ सिंह के कुछ ही घंटों बाद दिये गए बयान की पुष्टि की है – “केंद्र पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को घाटी से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध है और सरकार समस्याओं से ग्रस्त कश्मीर के स्थायी समाधान की तरफ अपना कार्य बखूबी कर रही है।”
ये बात तुरंत साबित हो गयी की अलगाववादियों की अब खैर नहीं, जब एनआईए ने हुर्रियत के सरगना, सैयद अली शाह गीलानी के रिशतेदारों और करीबी सहायकों के घरों पर भी छापे पड़वाये, और हुर्रियत के बाकी नेताओं और उनके चमचों को भी नहीं बख्शा।
दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में राजनाथ सिंह ने बताया, ‘हम एक स्थायी समाधान के लिए काम कर रहे हैं। मैं ये सम्पूर्ण दायित्व के साथ कह रहा हूँ।’ ये जताते हुये की कश्मीर की समस्या स्वतन्त्रता से व्याप्त है, इनहोने कहा, ‘कश्मीर के समाधान को वक़्त अवश्य लग सकता है, पर हम एक स्थायी समाधान की तरफ काम कर रहे हैं।’
स्थायी समाधान
सुरक्षा एजेंसियों ने निस्संदेह देश की भलाई के लिए काम किया है, पर हमने उन्हे सदैव अलगा अलग टुकड़ियों में काम करते देखा है।
मुख्य खिलाड़ी
इस स्थायी समाधान के मुख्य खिलाड़ी इस प्रकार हैं:-
- भारतीय सरकार [केंद्र] और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
- भारतीय थलसेना
- रॉ और आईबी
- प्रवर्तन निदेशालय
- राज्य पुलिस और पैरामिलिट्री सेनाएँ
- इज़राएल
ऊपर दी गयी सूची में आपको इज़राएल की मौजूदगी थोड़ी अटपटी ज़रूर लगेगी, पर इस स्थायी समाधान का वे भी एक अहम हिस्सा है। जो अनुभव घुसपैठ को नेस्तनाबूद करने के मामले में इज़राएल के पास है, उसकी आवश्यकता भारतीय सेना को घाटी के आतंकियों को मार गिरने के लिए अवश्य पड़ेगी। रॉ और आईबी को ईडी को इन आतंकियों को मिलने वाली वित्तीय सहायता के रास्ते भी दिखने होंगे, और साथ ही साथ इन आतंकियों के पता और ठिकाने भी सेनाओं को बताने होंगे। अंदरूनी सफाई की ज़िम्मेदारी राज्य पुलिस को राष्ट्रीय राइफल्स और पैरामिलिट्री सेनाओं के साथ मिलकर करनी होगी। हर एक की अपनी भूमिका है कश्मीर समस्या के समाधान में, जिसे उसे बखूबी निभाना पड़ेगा।
लेखक के विचार –
श्रीनगर में तैनात 15 कॉर्प्स के कमांडिंग जनरल ऑफिसर, सेवानिर्वृत्त लेफ्टिनेंट जनरल सैयद आता हसनैन के अनुसार आतंकियों में बढ़ती बौखलाहट का ही परिणाम है निम्नलिखित घटनाओं के पीछे:-
- निहत्थे पुलिस कर्मियों पर हमला
- निहत्थे डीएसपी मोहम्मद आयुब पंडित की हत्या
- छुट्टी पर आए सेना के युवा अफसर, लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की अपहरण के बाद नृशंस हत्या
इससे साफ ज़ाहिर होता है की आतंकियों में अब कोई शर्म, कोई हया नहीं बची है। क्योंकि इनके सर्प्राइज़ में से सर्प्राइज़ पहले ही सेना ने गायब कर दिया, इसलिए घबराहट और बौखलाहट, दोनों में ये निहत्थे मासूमों को अपना निशाना बना अपनी ‘वीरता’ का परिचय दे रहे हैं।
इसी बौखलाहट और डर में ये इस्लामिक आतंकी अपनी आखरी सांसें गिन रहे हैं, और जिस स्तर पर राष्ट्रीय राइफल्स इन्हे कश्मीर घाटी से साफ करने में लगी है, वानी से लगाकर मट्टू तक, वो दिन दूर नहीं, जब घाटी से आतंकवाद का सफाया हमेशा हमेशा के लिए कर दिया जाएगा।
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Major setback for Pakistan backed terror group Lashkar-e-Toiba. 3 terrorists including LeT Commander Jibran killed by forces in Anantnag. pic.twitter.com/HAZZEm6Gq0
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) July 17, 2017