हाल ही में गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज के अस्पताल में घटना घटित हुई है। कथित तौर पर ऑक्सिजन की कमी से बच्चों की मौत पर बवाल मचा हुआ है। अब तक पिछले 7 दिनों में 64 बच्चों की मौत हो चुकी है। ये सभी बच्चें इंस्फलाइटिस (जापानी बुखार) नामक लाइलाज बीमारी से ग्रसित थे। इस बीमारी से गोरखपुर में औसतन 500-700 मौतें हर साल होती है। अब घटना को दुसरी ओर मोड़ा जा रहा है। ऑक्सिजन ख़त्म होने की वजह से यदि एक भी बच्चे की मौत होती है तो सरकार से जरूर सवाल पूछना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं परोक्ष रूप से सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो व्यवस्था पर ध्यान रखें।
लेकिन कल से मीडिया ने गोरखपुर मामले में एक व्यक्ति को मसीहा बना रखा है। उनका नाम है डॉ. कफ़ील अहमद खान। ये बीआरडी कॉलेज के इंसिफलाइटिस विभाग के मुख्य नोडल अधिकारी हैं। कॉलेज के परचेस कमिटी (खरीददारी समिति) के सदस्य भी हैं, मतलब क्या खरीदना है, क्या ख़रीदा जाना है, क्या ख़त्म हो रहा है, क्या आवश्यकता है, सब कुछ इनकी जिम्मेदारी और निगरानी में रहता है। तो इन्हें क्या नहीं पता था कि ऑक्सिजन की कमी हो गयी है ? या इनको इससे कोई मतलब नहीं था ? या कि डॉ. कफ़ील अहमद कहीं और व्यस्त थे ? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना के 2 दिन पहले इस अस्पताल का दौरा किया था। लेकिन उनके दौरे में किसी भी तरह से ऑक्सिजन की कमी की जानकारी उनको नहीं दी गयी। तो क्या मसीहा बने डॉ. कफ़ील को यह नहीं पता था कि ऑक्सिजन की कमी हो चुकी है ? क्या विभाग के नोडल अधिकारी होने के तहत उनको ऑक्सिजन की जरूरत और पेमेंट की परेशानी में मुख्यमंत्री से चर्चा नहीं करनी चाहिए थी ? और उन्होंने नहीं की तो क्यों नहीं की ?
दरअसल ऑक्सिजन देने वाली कंपनी का नियम है है कि 10 लाख से ज्यादा उधारी नहीं की जा सकती वो भी 15 दिनों के लिए। लेकिन इसके बाद भी 6 महीने तक 69 लाख रुपये को लटकाये रखा गया, आखिर किस वजह से ? इसकी वजह है कमीशन! लेकिन डॉ. कफ़ील अहमद को मीडिया द्वारा मसीहा कैसे बनाया गया ? ठीक वैसे ही जैसे हामिद अंसारी को उपराष्ट्रपति बनाया गया था। सेक्युलिरज़्म बचाने के लिए।
अब डॉ. कफ़ील अहमद के बारे में थोडा विस्तारपूर्वक बातें करते हैं:
मुन्ना भाई एमबीबीएस – डॉ. कफ़ील अहमद कुछ वर्ष पहले ‘मुन्नाभाई’ बनने के चक्कर में भी पकड़े गए थे। 2009 में NBA (नेशनल बोर्ड ऑफ़ एक्ज़ामिशन) द्वारा कराये गए FMGE (फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एक्ज़ामिशन) में किसी अन्य व्यक्ति के स्थान पर बैठकर परीक्षा देते समय रंगे हाथ पकड़े गए थे। विजय कुमार नाम के शख्स के नाम पर 3 लाख रुपये लेकर परीक्षा देने के जुर्म में इन्हें पुलिस ने पकड़ा था। विजय कुमार का बयान था कि वो एक परीक्षा को एक बार क्लियर करना चाहता है जिसकी वजह से डॉ. कफ़ील अहमद ने पैसे लेकर उसकी मदद की। आज मीडिया में मसीहा बने इस कफ़ील अहमद ने सिस्टम से खेलने की शुरआत उसी समय से कर दी थी।
कोर्ट केस – अपराधिक केस दर्ज होने के कारण उन्हें कॉलेज के हॉस्टल और कॉलेज से लाभ लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। डॉ. कफ़ील ने बंगलौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
बलात्कार के आरोपी – डॉ. कफ़ील अहमद बलात्कार के भी आरोपी हैं और अपने अस्पताल के नर्स से बलात्कार करने, सिस्टम से धोखाधड़ी करने के जुर्म एक वर्ष तक जेल की हवा भी खा चुके हैं।
ये रही कुछ लोकल अखबारों के स्क्रीनशॉट:
डॉक्टर कफील अहमद अपने ही अस्पताल में काम करने वाली एक मुस्लिम नर्स के साथ बलात्कार के केस में 1 साल जेल में रह चुके हैं pic.twitter.com/lwL4tYzNuc
— 🇮🇳Jitendra pratap singh🇮🇳 (@jpsin1) August 13, 2017
समाजवादी पार्टी से नजदीकियां: अटकलें ये भी लग रही हैं की दरअसल डॉ. कफ़ील अहमद समाजवादी परिवार के बड़े करीबी हैं और बलात्कार के आरोपी होने के बावजूद उन्हें समाजवादी परिवार के करीबी का फायदा ही उन्हें नोडल अधिकारी के पद के रूप में मिला था। अब ज़रा उनके ट्वीटस पर नज़र डालें, ये सब बयान कर रहे हैं:
इन ट्वीटस के वायरल हो जाने पर डाक्टर साहब ने अपना अकाउंट प्रोटेक्टेड कर दिया है, मतलब बिना उनकी अनुमति कोई उनके ट्वीट नहीं पढ़ सकता.
निजी अस्पताल – डॉ. काफ़ील एक निजी अस्पताल भी चलाते हैं। जो कि इन्हीं के नाम पर रजिस्टर्ड है। निजी अस्पताल के वो डायरेक्टर भी हैं और सरकारी अस्पताल में एक विभाग के नोडल अधिकारी। निजी अस्पताल चलाने के चक्कर में कहीं वो अपनी सरकारी अस्पताल वाले पेशे में लापरवाही तो नहीं बरतते गए?
हालाकि इनके अस्पताल की साईट डाउन कर दी गयी हैं, हमने गूगल कैश्ड सर्विस से जानकारियाँ निकाली – ये रहे कुछ स्क्रीनशॉट और लिंक्स:
कंपनी रजिस्ट्रेशन: https://www.zaubacorp.com/trademarks/proprietorid/1691577
कंपनी वेबसाइट: http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:http://medispringhospital.com/member.php
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ऑक्सिजन सिलेंडर से लेकर चिकित्सा मशीनों की खरीदी में कमीशनखोरी को छुपाने के लिए अंतिम क्षणों में आनन-फानन में किये गए लापरवाही वाले काम को आज मीडिया मसीहा के रूप में पेश कर रहा है। लेकिन यही साहब अगर समय पर मुख्यमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री को ही सूचना दे देते तो क्या हादसा इतना गंभीर हो सकता था?
इन सब कारनामों के बाद भी आज डॉ. कफ़ील अहमद मीडिया के नज़रों में हीरो हैं जबकि हादसे के पहले लापरवाही करने में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी।
मामले में कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्रा को अभियुक्त बनाया गया है लेकिन सम्बंधित विभाग के नोडल अधिकारी और खरीद फरोख्त विभाग के सदस्य डॉ. कफ़ील अहमद को मीडिया पहले ही हीरो की तरह पेश कर जनता में भ्रामक स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहा है, मीडिया के बनाये हीरो डॉ. कफ़ील भी इस हादसे के उतने ही जिम्मेदार होने चाहिए जितने अन्य अधिकारी।