पहले जब बताया गया कि दिसम्बर 2017 तक कश्मीर से आतंक होगा ख़त्म, तो झूठ लगा, अब लगता है सच है

एनआईए अबू दूजाना गीलानी

घाटी में व्याप्त आतंकियों और अलगाववादियों का हनीमून पीरियड अब खत्म होने को है। सेनाओं की अब भाजपा के नेतृत्व में प्रशासित केंद्र सरकार से उनके लंबे समय से बंधे हाथ खुल गए हैं, और उन्हे अपने हिसाब से निपटने की पूरी आज़ादी है।

1 अगस्त 2017 को सफलता की एक और इबारत सेनाओं ने लिखी, जब इनहोने दुर्दांत आतंकी अबू दूजाना को पुलवामा में ढूंढकर मार गिराया। मारे गए आतंकी की पहचान प्रतिबंधित आतंकी गुट लश्कर ए तैयबा के क्षेत्रीय मुखिया के तौर पे हुयी।

सुरक्षा कर्मियों के चंगुल से पाँच बार सकुशल भाग निकलने में सफल होने अबू दूजाना आखिरकार अपनी ही किस्मत का शिकार बन गए, और जनवरी 2017 से मारे गए आतंकियों में 102वें नाम के तौर पर जुड़ गए। 2010 से ये संख्या आतंकियों के खात्मे की संख्या में सर्वाधिक है, क्योंकि कश्मीर घाटी में अब सरकार ने ज़ीरो टोलेरेन्स की नीति अपनाई है। सैनिकों को सख्त निर्देश दिये गए हैं : या तो रोको, या फिर खत्म करो। न कम, न ज़्यादा! अगर सूत्रों की माने, तो भारतीय सेनाओं की सशस्त्र टुकड़ियों ने यह शपथ ली है की दिसम्बर तक आते आते घाटी से सारे आतंकी मार भगाएँगे। और अगर सब कुछ सही गया, तो काँग्रेस मुक्त भारत का तो पता नहीं, पर इस स्तर से एक आतंकी मुक्त कश्मीर ज़रूर एक सच्चाई बन जाएगी।

अबू दूजाना, जो मरने वालों की इस सूची में नए हैं, उनही कुछ महानों में से है, जो अपने इस अंत को एक मज़ाक समझते थे, क्योंकि अब सेना के नए ऑपरेशन के तहत घाटी को उसका पुराना गौरव लौटाने के लिए इन आतंकियों को रास्ते से हटाना अवश्यंभावी है।

इनके साथ एनआईए की कुशलता की भी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। 30 जुलाई को एनआईए ने सैयद आली शाह गीलानी के विश्वासपात्र, देविंदर सिंह बहल के पुश्तैनी घर पे छापे फड़वाये और कई संवेदनशील फ़ाइल खोज निकाले, जिनके दस्तावेज़ों के साथ साथ 4 सेल फोन और एक टैब्लेट कम्प्युटर भी इस छापे में इन्हे प्राप्त हुआ।

बहल, जो जम्मू और कश्मीर शांति फॉरम [जेकेएसपीएफ़] के अध्यक्ष हैं, जिसकी देखरेख गीलानी द्वारा शासित तहरीक ए हुर्रियत करता है, उन्हे सेना के जवानों द्वारा मारे गए आतंकियों के जनाज़ों में भाग लेते हुये भी पकड़ा गया है।

अलगाववादियों के अलावा आतंकियों पर कारवाई के अंतर्गत सरकारी नीतियों में ये भूचाल भारतीय नागरिकों के लिए एक उम्मीद की किरण लाया है, जो महबूबा, उमर, और राजनाथ सिंह के राज में कश्मीर के पुनरुत्थान की उम्मीद खो चुके थे। ये बदलाव पाकिस्तानी सेना के लिए भी असह्य है, जो वैसे भारत सरकार की लाचारी का खूब फायदा उठाती थी, और आराम से आतंकियों और उनकी गतिविधियों का घाटी में समर्थन दिलवाती थी।

बहल के घर पर पड़ा छपा एनआईए द्वारा किया मारा गया ऐसा चौदहवां छापा है , जिनहे जून की शुरुआत में हुर्रियत के नेताओं और उनके चापलूसों पर पकड़ बनाने के लिए शुरू किया गया था।

एनआईए का इरादा बिलकुल साफ था जब इनहोने अलगाववादी गुट के 7 अहम किरदारों को पकड़ा, जिनमें प्रमुख थे मिरवाइज़ उमर फारूक और गीलानी के दामाद, अलताफ़ शाह। स्थानीय कोर्ट, जहां इनकी पेशी 25 जून को हुई थी, ने इन्हे दस दिन एनआईए की हिरासत में भेजा। ये हुर्रियत के अंत के संकेत है, जिसने भारत के कश्मीर नीतियों में काफी समय से अड़ंगा डाला हुआ था।

जो चौंकाने वाली बात है, वो यह, की एनआईए महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व की राज्य सरकार की चिंताओं को अनदेखा कर यह कारवाई कर रहे हैं। इंसानियत के उनके प्रेम के नाते, और उनके अलगाववादियों से बातचीत करने की प्रवृत्ति को देखते हुये तो यह लगता है की केंद्र सरकार ने इन्हे भारत विरोधी ताकतों के पीछे जाने की पूरी स्वतन्त्रता दी है, बिना किसी शर्त के।

जैसा पहले कहा था, महबूबा मुफ़्ती की राज्य सरकार के लिए हुर्रियत के प्रति काफी लगाव होगा, पर उनका हनीमून अब खत्म हो चुका है। अब इनके जैसे भारत विरोधी दलों की शुरुआत हो चुकी है, और सेना किसी भी तरीके से इस मौके को हाथ से जाने देने के मूड में नहीं है, और ऐसा वो तब तक करते रहेंगे, जब तक वो हर आतंकी और अलगाववादी का इस घाटी से सफाया नहीं कर देते।

दिसम्बर 2017 आतंक मुक्त कश्मीर की समयसीमा है। पहले मुझे यह अतिशयोक्ति लगती थी, पर अब और नहीं।

और पाकिस्तान के लिए,………पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त.

जय हिन्द!

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