पिछले 2 महीने से चीन के विरूद्ध डोकलाम में जारी कूटनीतिक और मानसिक संघर्ष में भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है। भारत और चीन ने अपनी अपनी सेनाओं को सीमा क्षेत्र से हटाने का फैसला किया है। बिना किसी सैन्य लड़ाई के या किसी भी तरह के नुकसान उठाये बिना भारत को यह सफलता मिली है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि भूटान के क्षेत्र डोकलाम में चीन किसी तरह का निर्माण नहीं करेगा साथ ही स्थिति को 16 जून 2017 से पूर्व की स्थिति में स्थापित करेगा, इसी शर्त पर दोनों देशों की सेना ने पीछे हटने का फैसला किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की है। खुद को विश्व में महाशक्ति दिखाने वाला और जगह जगह पर अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन कर खोखली दादागिरी करने वाले चीन की वैश्विक पटल में बड़ी कूटनीतिक हार हुई है। चीन की इस हार और भारत के जीत के कई मायने निकलते दिख रहें हैं।
दरअसल भूटान, भारत और चीन के मध्य भूटान के स्वामित्व वाला एक पठारी हिस्सा है डोकलाम। इसी डोकलाम क्षेत्र को चीन ‘डोंगलांग’ कहकर लगातार अपने क्षेत्र का हिस्सा बताने की कोशिश कर रहा था। चीन की दखलअंदाजी हाल ही के समय में बढ़ती गयी जब चीन ने डोकलाम के क्षेत्र में सड़क बनाने और अपनी सेना खड़ी करने की कोशिश की। इस फैसले का भारत और भूटान ने कड़ा विरोध किया। पिछले 2 महीने से इसी विवाद के चलते डोकलाम सीमा क्षेत्र में भारत और चीन की सेना एक दूसरे के सामने सशस्त्र खड़ी थी। वहीं बीच बीच में चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा घुसपैठ की कोशिश भी किया था लेकिन भारतीय सेना से हर बार उन्हें मुँह बाकि खानी पड़ी।
डोकलाम भारत के लिए ख़ास क्षेत्र है। यदि इस क्षेत्र में चीन सड़क बनाने पर सफल हो जाता तो आने वाले समय में भारत के उत्तरपूर्व क्षेत्र में चीन घुसपैठ आसान हो जाती, जो भारत के लिए अहम खतरा साबित हो सकती थी। सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत को उत्तरपूर्व से जोड़ता है और इसी क्षेत्र में डोकलाम के होने से भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता पर भी यह एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन भारत ने 2 महीने तक किसी भी राजनैतिक, कूटनीतिक दबाव को दरकिनार करते हुए चीन का सामना किया। चीन की साम्राज्यवादी नीति की यह एक बड़ी हार हुई है।
चीनी मीडिया डोकलाम मुद्दे पर लगातार भारत को युद्ध की चेतावनी देता रहा। चीन की मीडिया में पिछले 2 महीने से लगातार भारत विरोधी लेख लिखे जा रहे थे, भारत विरोधी चर्चाएँ की जा रही थी।
लेकिन चीन की इस नापाक हरकत पर भारत सरकार पूरी तरह आक्रामक और मुखर रही। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी बयान दिया था कि ‘डोकलाम से चीनी सेना नहीं हटेगी, और हम भूटान से परंपरागत सहयोग बनाये रखेंगे।’ वहीं रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने भी चीन के खिलाफ पीछे नहीं हटने को लेकर बयान दिया था।
भारतीय सेना और भारत सरकार के आक्रामक और सकारात्मक रवैये का असर भारतीय नागरिकों पर भी आक्रामक रूप से पड़ा। भारतीय नागरिकों ने जहाँ चीन विरोधी भावना को फैलाते हुए चीनी वस्तुओं का बड़े स्तर पर बहिष्कार किया था। जिसके बाद चीन की 2 बड़ी कंपनी विवो और ओप्पो के 400 से अधिक आला दर्जे के कर्मचारी गिरते प्रभाव को देखकर भारत छोड़कर चीन चले गए थे। यह चीन को आर्थिक स्तर पर एक बड़ी चोट थी। चीन के इसी छटपटाहट को चीनी मीडिया ने ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ का नाम दिया था। साथ ही चीनी मीडिया ने तो युद्ध उकसाने के लिए भी ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ पर इल्जाम लगाया था। अपनी गीदड़ भभकी और खोखली धमकी से चीन ने भारत को दबाने की बहुत कोशिशें की थी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले माह ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने चीन जाने वाले हैं। प्रधानमंत्री मोदी के जाने से पहले भारत की चीन के खिलाफ यह कूटनीतिक जीत एक साकारत्मक सन्देश देती है। चीन के प्रति जिस आक्रामकता से भारतीय सेना और भारत सरकार अडिग रही वह सेना और भारत सरकार का देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए एक निष्ठा का परिचायक है। चीन के इस तरह पीछे हटने के बाद भारत और नरेंद्र मोदी की वैश्विक पटल में दबदबे को नकारा नही जा सकता।