योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर-काण्ड के लिए खरी-खोटी सुना ली? अब पूरी कथा पढ़िए

योगी आदित्यनाथ गोरखपुर इंसेफ्लाइटिस

इस लेख का पूरा विश्लेषण हमारे अंग्रेजी लेख “Done blaming Yogi Adityanath for the Gorakhpur Tragedy? Now read the Full Story” में आप पढ़ सकते हैं जहाँ इस जापानी इंसेफ्लाइटिस बीमारी के इतिहास और योगी आदित्यनाथ के प्रयास को पूरे विस्तार से बताया गया है

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिन परिस्थितियों में योगी आदित्यनाथ ने देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्य-सेवक के रूप में कमान संभाली थी , उस समय प्रदेश अत्यंत जर्जर अवस्था में था । सामाजिक रूप से, आर्थिक रूप से , प्रशासनिक रूप से , शिक्षा एवम् स्वास्थ्य की सुविधाओं की दृष्टि से और यह कल्पना करना कि चंद महीनों की अवधि में योगी जी प्रदेश की हर समस्या का निदान कर देंगे , यह किसी भी प्रकार से तर्क-संगत नहीं है।

लेकिन जो कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की परिणति हुई है , विशेषकर जो गोरखपुर के बाबा राघव दास चिकित्सा महाविद्यालय एवम् अस्पताल में करीब 60 बच्चों और नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई है , जिसमें अब योगी सरकार की कार्यशैली और संवेदनशीलता पर सवाल खड़े हो गए हैं , मुख्यमंत्री जी को शीघ्रातिशीघ्र उच्च स्तरीय जांच संपन्न करवा के सभी संबंधित विभागों , संस्थाओं तथा व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए तथा दोषियों के खिलाफ कठोरता से कार्रवाई कर के प्रदेश की प्राचीन सुस्त एवम् लापरवाह स्वास्थ्य व्यवस्था को एक कड़ा सन्देश देना चाहिए चाहे वो अस्पताल प्रशासन हो , ऑक्सीजन आपूर्त्ति कर्त्ता ठेकेदार हो , या फिर प्रदेश सरकार का स्वास्थ्य विभाग , किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए ।

जैसी जानकारियां सामने आ रही हैं कि गोरखपुर क्षेत्र में दर्जनों मासूम बच्चे कई दशकों से प्रति वर्ष जापानी इंसेफ्लाइटिस तथा सामान्य इंसेफ्लाइटिस के शिकार हो कर अपनी जान गवां देते हैं लेकिन बावजूद इसके पूर्व की सरकारों ने इस महामारी जैसी गंभीर समस्या से बच्चों की जान बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये । आँकड़ों के अनुसार 1978 में भारत में जापानी बुखार का पहला मामला सामने आया था और तब से लेकर अब तक कुल 40000 मामले सामने आ चुके हैं और करीब 14000 ज़िंदगियाँ इस बीमारी का शिकार हो चुकी हैं । जापानी इंसेफ्लाइटिस का प्रभाव मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और गोरखपुर के आस-पास के इलाकों तक ही सीमित रहा है । और BRD अस्पताल में वर्षों से फैली हुई गन्दगी के कारण हमेशा ही कम उम्र के रोगियों में इंफेक्शन फैलने का संकट मंडराता रहता था , गत वर्ष 2016 में BRD अस्पताल में करीब 200 मरीजों की इंसेफ्लाइटिस की वज़ह से मृत्यु हुई थी लेकिन ना ही अस्पताल प्रशासन ने और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कभी इस विषय में संज्ञान लिया ।

इस बात का अंदाज़ा स्पष्ट रूप से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था कितने लचर स्तर पर कार्यरत होगी विगत दो दशकों से । हालांकि सरकार गठन के तत्काल प्रभाव से ही मुख्यमंत्री योगी जी ने इस समस्या पर नज़र रखी हुई थी तथा इससे निपटने के लिए जरुरी इंतज़ामात तथा सुविधाएं मुहैया करवाने की दिशा में कार्य कर रहे थे ।

इस से पूर्व भी अपने सांसद के पद के कार्यकाल के दौरान योगी आदित्यनाथ ने कई बार लोकसभा में अपने संसदीय क्षेत्र में इस प्रकर की भीषण बीमारी तथा उसकी गंभीरता से अवगत कराते हुए जापानी बुखार को महामारी घोषित कर के केंद्र सरकार से मदद का आग्रह किया , लेकिन कभी भी ना तो केंद्र सरकार के कानों पर जूं रेंगी और ना ही तथाकथित सेक्युलर पार्टियों वाले राज्य सरकार पर।

और मीडिया को तो जैसे यह मामला टीवी पर दिखाने के लायक नहीं लगा लेकिन चूँकि अब भाजपा की सरकार है तो उसी समस्या की सारी ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी जी पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है।

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हमारे लिए यह भी जानना आवश्यक है कि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ग्रसित करने वाली जापानी इंसेफ्लाइटिस की बीमारी के इलाज़ के लिए कोई रामबाण दवा उपलब्ध नहीं है । मुख्य रूप से मस्तिष्क के क्रियाकलापों पर विपरीत असर डालने वाली इस बीमारी से ग्रसित होने के पश्चात अस्पताल तथा चिकित्सक ज्यादा से ज्यादा मरीज़ को जीवन-रक्षक प्रणालियों (वेंटिलेटर तथा ऑक्सीजन सिलिंडरों द्वारा कृत्रिम श्वास ) के द्वारा रोग के प्रभाव तथा लक्षणों को न्यूनतम करने का प्रयास करते हैं । अगर मरीज़ बीमारी से ठीक भी हो जाता है तो अधिकतर मामलों में उनके सोचने समझने की शक्ति हमेशा के लिए क्षीण हो जाती है । हालांकि इस बीमारी की रोकथाम के लिए चीन में निर्मित टीके का प्रयोग किया जाता रहा है ,बाद में वर्ष 2013 में भारत ने स्वदेशी निर्मित टीके में भी सफलता हासिल की । और मुख्यमंत्री बनने के पहले तीन महीनों में ही योगी जी ने 88 लाख बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित किया था ।

लेकिन इसके बावजूद भी आज जो हृदयविदारक घटना घटित हुई है , इसमें तीसरा पक्ष है अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्त्ति की ठेकेदार कंपनी पुष्पा सेल्स जिसने 1 अगस्त को अस्पताल प्रबंधन को यह सूचना दी थी कि उनकी कंपनी का अस्पताल पर 65 लाख रूपये का बकाया है , अगर बकाया राशि का भुगतान शीघ्र नहीं किया गया तो उनकी तरफ से अस्पताल को ऑक्सीजन की आपूर्त्ति रोक दी जाएगी । सरकार का कहना है कि अस्पताल की तरफ से सुचना मिलते ही 5 अगस्त को अस्पताल के खाते में राशि जमा कर दी गयी थी लेकिन उसके बाद ठेकेदार कंपनी को राशि भुगतान 11 तारीख को हुई और उन्होंने 10 अगस्त की रात को ही ऑक्सीजन की आपूर्त्ति रोक दी जिसकी वजह से यह दर्दनाक परिणाम सामने आया।

ये कहना कि इस घटना के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या सरकार की तरफ से बदइंतजामी जिम्मेदार है , पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश विशेषकर गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस के कहर से लगभग दो दशकों से अनेकों मासूम बच्चे अपनी जान गंवाते आये हैं लेकिन फिर भी समस्या जस की तस बनी हुई है , और नवनिर्मित सरकार से यह अपेक्षा करना कि वह कुछ महीनों में प्रदेश को समस्या मुक्त बना दे , यह ठीक नहीं है।

समस्या की गंभीरता व संवेदनशीलता को समझते हुए दो दिन पूर्व ही स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उस क्षेत्र तथा अस्पताल का दौरा कर के वहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था , सुविधाओं तथा साफ़-सफाई का जायज़ा लिया था और अधिकारियों को सख़्त निर्देश दिया था कि किसी प्रकार की लापरवाही होने पर कठोर कार्रवाई की जायेगी ।

लेकिन उसके दो दिन पश्चात ही इस प्रकार की घटना होने पर एक जिम्मेदार सरकार के जिम्मेदार मुख्यमंत्री होने का परिचय देते हुए उन्हें तीव्र जांच करके दोषियों को दंडित करना चाहिए। यह घटना स्पष्ट रूप से यूपी के कर्मचारियों की अकर्मण्यता , लापरवाह रवैये और असंवेदनशीलता को प्रदर्शित करती है जो उन्होंने पिछले सरकारों के कार्यकाल के दौरान अपनी प्रवृत्ति बना ली है , सभी कर्मचारियों को एक संदेश देना आवश्यक है ।

आपूर्ति विभाग के डॉक्टर कफ़ील अहमद खान को निलंबित करना एक सराहनीय कदम है, साथ ही साथ अस्पताल और कॉलेज के प्राचार्य को निलंबित किया गया है , लेकिन ऑक्सीजन आपूर्त्ति कंपनी की तरफ से आपूर्त्ति रोकने की चेतावनी के बाद और सरकार की तरफ से राशि आवंटित करने के बाद भी राशि के भुगतान में विलम्ब के लिए प्रचार्य तथा अन्य संबंधित महाविद्यालय पदाधिकारियों के ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ।

इसके अलावा पुष्पा सेल्स कंपनी जिन्होंने मामले की गंभीरता के बावजूद असंवेदनशील तरीके से ऑक्सीजन आपूर्त्ति बाधित करके अनेक बच्चों की ज़िंदगियाँ निगल ली , उनके ऊपर कार्रवाई करके उनका लाइसेंस रद्द किया जाना चाहिए । अगर राशि के भुगतान में 2-3 दिन का विलम्ब होता है तो ऑक्सीजन आपूर्त्ति अवरुद्ध करना उस कंपनी के मालिकों की मानवीय संवेदनाओं के प्रति निष्ठुरता का स्पष्ट प्रमाण है यह जानते हुए भी कि मरीजों के लिए ऑक्सीजन जीवनदायक है , उनके ऊपर आपराधिक मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई होनी चाहिए ।

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