ये क्या? आम आदमी पार्टी ने बिना लड़े ही मोदी जी के सामने घुटने टेक दिए

मोदी सिसोदिया

नोटबंदी और GST जैसी ‘कड़क चाय’ के बावजूद और जन-धन, उज्ज्वला, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, बेटी बचाओ बेटी पढाओ जैसी योजनाओ के साथ जिस कदर मोदी-शाह का विजय रथ चुनाव दर चुनाव आगे बढ़ता जा रहा है लगता नहीं है इसे आसानी से रोका जा सकता है आने वाले चुनावों में। पंचायत से लेकर पालिका तक मोदी शाह की गुगली ने सभी को बोल्ड कर दिया है। आने वाला समय विपक्ष के लिए और भी मुश्किल होने की पूरी उम्मीद है। ऊपर से मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना और राहुल गाँधी-केजरीवाल जैसे नेताओं के बलबूते विपक्ष के लिए 2019 टेढ़ी खीर साबित होगी।

इस समय में विपक्ष के लिए सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है की उसे मोदी के समकक्ष एक नेता खड़ा करना होगा जो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। विपक्ष के बड़े नेता भी येह मानने लगे है की विपक्ष को 2019 की बजाये 2024 की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। विपक्ष के पास फिलहाल मोदी के छवि का कोई नेता मौजूद नहीं है। ऐसे में विपक्ष के अन्दर से ही तमाम आवाजें उठने लगी है। विपक्ष के पास समय बहोत कम बचा हुआ है ऐसे में एक बार फिर विपक्ष राहुल गाँधी पर दांव खेल सकता है शायद यही कार हो की विपक्ष से मोदी के बढ़ते कद और अमित शाह के विजय रथ को न रोक पाने का दुःख झलकने लगा है।

अभी लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू भी नहीं हुई है, विपक्ष हार मान बैठा है। कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया है जब एक साक्षात्कार में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने स्वीकार किया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी के बदले कोई दूसरा नेता नहीं है देश के पास।

विपक्ष में मोदी का मुकाबला करने के लिए कोई नेता नहीं है क्योंकि देश के पास ईमानदार और मजबूत विपक्ष है ही नहीं। बहुत से मायनों में यह बात सच भी है अनायास ही कभी कभी विपक्षी नेताओं के मुंह से सच्चाई निकल जाती है।

यह पहली बार नहीं है जब किसी विपक्षी बड़े नेता ने यह बात कही हो इसके पहले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मार्च में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव नतीजे के बाद कहा था की यह लहर नहीं सुनामी है अब भाजपा को हराना मुश्किल है इसलिए अब विपक्ष को 2019 को भूलकर 2024 की तयारी में लग जाना चाहिए। आज 6 माह बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है विपक्ष अब भी एक नेता की तलाश में है। हालाँकि कांग्रेस ने अब भी राहुल गाँधी पर दांव लगाया हालाँकि राहुल गाँधी के विपक्ष के नेता के रूप में भाजपा को नुक्सान कम फायदा ज्यादा है।

विपक्ष का गणित तो है, लेकिन मजबूत नेता नहीं है :

मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि देश में फिलहाल विश्वसनीय विपक्ष नहीं है, यह हो भी नहीं सकता। क्योंकि एक मजबूत विपक्ष गणित के आधार पर तो दिख सकता है, लेकिन राजनीति गणित के आधार पर चलती नहीं। सिसोदिया की यह बात कई मायनो में सही भी है जहाँ एक और कांग्रेस जैसे बड़े दल के साथ राजद, राष्ट्रवादी, ममता, केजरीवाल, मायावती और तमाम बड़े छोटे पार्टियाँ एक बड़ा महागठबंधन बनाये हुए 2019 की आस लगाये बैठा है वही दूसरी और भाजपा की अपनी विचारधारा वाली शिवसेना भी उससे मुंह मोड़ लिया है तो कहीं न कहीं भाजपा मोदी-शाह के भरोसे एकला चलो की नीति अपनाये हुए चल रही है। हाँ जनता जरुर साथ दे रही है।

अब ऐसे में गणित के हिसाब देखा जाये तो विपक्ष का महागठबंधन एक बहुत ही शक्तिशाली गठबंधन नजर आता है क्यूंकि ये देश के अनेक राज्यों के बड़े क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लिए चल रहा है जो देश की राजनीती कभी बदलने का माद्दा रखते है बावजूद इसके विपक्ष के पास मोदी के समक्ष खड़ा करने के लिए एक भी कद्दावर नेता नहीं दिखाई देता। आज प्रधानमंत्री मोदी की जो छवि है एक भरोसेमंद, निष्ठावान, मेहनती, निस्वार्थ, प्रधानमंत्री की जिसने देश में एक नया आयाम स्थापित किया है की अब देश जब भी प्रधान मंत्री की बात करेगा तो उसकी तुलना मोदी के कद से की जाएगी। दूसरी तरफ सोचने वाली बात ये है की एक मजबूत विपक्ष की परिकल्पना तो की जा सकती है। लेकिन जहां पांच महत्वपूर्ण नेता विभिन्न विचारों को लेकर एक साथ बैठें, उन सभी की अपनी महत्वाकांक्षा है। सभी को  को पीएम या सीएम बनना है। ऐसे में गणिती तौर पर मजबूत दिखनेवाला विपक्ष अन्दर से खोखला जरुर है।

सिसोदिया ने आगे कहा भ्रष्टाचार मुक्त देश, विकसित भारत का कॉन्सेप्ट एक मजबूत विपक्ष बना सकता है। लेकिन इसके लिए काम करेगा कौन? कौन इसको आधार बनाकर चुनाव लड़ेगा? विपक्ष के पास वो दूरदर्शिता भी नही है न ईमानदार छवि जिसपे जनत भरोसा कर सके। विपक्ष को शिक्षा और स्वास्थ्य की बदहाली पर जोरदार आवाज उठानी चाहिए। उसे चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए।

आखिर क्या कारण है की विपक्ष से बदलाव की आवाजें उठने लगी है। कुछ कारण इस प्रकार है : 

विपक्ष ने पहले अमित शाह की रणनीति समझने में बड़ी भूल की और अब नोटबंदी और GST जैसे अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने वाली योजनाओ को मुद्दा बनाना विपक्ष को भारी पड़ा है। नोटबंदी के बाद जितने चुनाव हुए चाहे पालिका से लेकर पंचायत तक भाजपा प्रचंड बहुमत से जितने में सफल रहीं। पहले ओड़िसा, फिर महाराष्ट्र-मुंबई नगरपालिका (१० में से ८ महानगरपालिका) अपने नाम कर ली और फिर सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य उत्तरप्रदेश में तिन चौथाई बहुमत प्राप्त कर ये तो साफ हो गया की नोटबंदी को समझने में विपक्ष चुक कर गया और अब विपक्ष को भी आगे बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने होगे।

राहुल गाँधी पर से उठने लगा कार्यकर्ताओं का भरोसा :

 राहुल गाँधी की परफॉरमेंस का अंदाजा तो अबतक सब को होही गया होगा, उनकी एक के बाद एक असफलता को देखते हुए अब नेता तो नेता कार्यकर्ताओं का भी सब्र टूटने लगा है। जबसे राहुल गाँधी सक्रीय राजनीती का हिस्सा बने है उसके बाद तमाम छोटे बड़े चुनाव उनके नेतृत्व में लडे गए, लेकिन आजतक सभी चुनावों में राहुल गाँधी को असफलता ही हाथ लगी। राहुल गाँधी की नाकामयाबी का पैमाना इसी बात से समझ आता है की जहाँ उन्होंने प्रचार किया कई जगह पर तो वह सीट कांग्रेस को गवानी पड़ी और कई जगह वोट शेयर पहले से कम हुआ है। मतलब यह की राहुल गाँधी के आने से सीट बढ़ने की बजाये कम होती चली गयी। हाल ही में उत्तर प्रदेश में भाजपा को तीन-चौथाई बहुमत मिला है वही कांग्रेस चारो खाने चित्त होगई। कई जगह देखा गया है की चुनावी उम्मीदवार अपने क्षेत्र में राहुल गाँधी के प्रचार करने से परहेज करते दिखाई दिए।

उनके राजनीती में आने के बाद एक दमदार छवि पेश की गयी थी और एक युवा नेता होने के नाते इस देश के नौजवानों को राहुल गाँधी से बहुत उम्मीदें थी, लेकिन एक के बाद एक नाकामयाबी, उनकी न समझ आनेवाली भाषण शैली, उनपर बनाये गए जोक्स आदि सोशल मीडिया पर इस कदर हावी हो गये की सोशल मीडिया के उदय के कुछ ही वर्षो में राहुल गाँधी की छवी एक युवा जोशीले नेता से ‘पप्पू’ की बनकर रह गयी। राहुल गाँधी के किस्से, कहानियां तो अब जनता भी समझ गयी की राहुल जिस ‘एस्केप वेलोसिटी ऑफ़ जुपिटर’ से सोचते है ये राजनीती अब उनके बस की नहीं, हालाँकि ये अलग बात है कांग्रेस्सियों को ये बात समझने में आधा दशक और लग जायेगा और जो समझ गए है वो कांग्रेस छोड़ चुके है।

केजरीवाल सरकार के भ्रष्ट्रचारों से जनता में रोष: 

दुसरे सबसे बड़े विरोधी के रूप में नितीश कुमार का नाम था जिनकी भ्रष्ट्राचार विरोधी की साफ़ छवि रही है लेकिन उनके NDA के पाले में जाने के बाद विपक्ष इस कदर कमजोर हुआ है की एक कद्दावर नेता की दरकार बाकि है। एक और जो नाम प्रमुखता से लिया जाता है केजरीवाल के रूप में लेकिन केजरीवाल, मोदी का मुकाबला करने में सक्षम नही है क्यूंकि केजरीवाल द्वारा दिल्ली की जनता को दिया गया धोका और भ्रष्ट्रचारी विरोधी छवि से भ्रष्ट्राचार में लिप्त होने तक का उनका सफ़र उन्हें प्रधानमंत्री उमीदवार बनने नही देगा।

हाल ही में शुंगलू कमिटी ने अपने रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार के तमाम अनियमित्ताओ की परत खोल के रख दी थी। कमेटी ने दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक घोटाला, डीटीसी बसों में जमा टिकिटों का घोटाला, गत वर्ष 400 करोड़ का वाटर टैंकर घोटाला, लाभ के पद का मामला हो जिस तरह से मनमानी ढंग से केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार के घोटाले सामने आरहे है लगता नही केजरीवाल मोदी का मुकाबला कर पायेगे और विपक्ष उनपर दांव लगा सकता हो। इसीलिए विपक्ष के खेमे से 2019 के आम चुनाव के लिए एक कद्दावर नेता की दरकार होना लाजमी है और अगर विपक्ष एक साफ छवि का मजबूत नेता खड़ा नहीं कर पाया तो 2019 के चुनाव से हाथ धोना पड़ सकता है।

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