अगर आप नदी में सिक्के फेंकते हैं, तो आज ही रुक जाए – आप पुण्य के चक्कर में पाप कर रहे हैं

नदी में सिक्के

आज का युग तीव्र गति से आधुनिकीकरण को अपना रहा है| ऐसे समय में स्वच्छता और जागरूकता महज एक पहेली बन कर रही है| जनमानस में जागरूकता की कमी और पुराने रीति रिवाजों के नाम पर जाने अनजाने में वे भयंकर जल प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं| जिससे अन्य प्रकार की गंभीर बीमारियाँ पनप कर मानव जाति के साथ साथ विलुप्त होने की कगार पर खड़े जलचरों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर रहीं है|

आइये कुछ गंभीर प्रश्नों का विश्लेषण कर उत्तर प्राप्त करते है

‘नदी, जलाशयों या पानी में हम सिक्के क्यों फेकते हैं’?

हमारे पूर्वजों व बुजुर्गों द्वारा सुना और देखा गया और जिसे हम भी अपना रहें है कि अक्सर यात्रा के दौरान जब भी हम कभी किसी नदी, कुंआ, धार्मिक स्थल पर बने जलाशय या किसी पानी के श्रोत के सामने से गुजरते हैं तो हाथ जोड़कर उसमें “सिक्का” (मुद्रा का हिस्सा) डाल देते हैं| हमारे संस्कारों में यह एक पवित्र कार्य माना गया है, कहते है कि पानी में सिक्के को प्रवाहित करने से जीवन में नकारात्मक प्रभाव दूर होता है| इसलिए लोग समझते हैं की इससे ईश्वर की कृपा बढ़ेगी और जीवन में खुशहाली आएगी|

प्राचीन और वर्तमान सिक्कों में क्या अंतर है?

पुराने समय से पानी में सिर्फ तांबे के सिक्के प्रवाहित करने की परंपरा रही है जबकि एक लेख के अनुसार आज के सिक्कों में लगभग 75% लोहा और लगभग 15% क्रोमियम के साथ कुछ मात्रा स्टील की भी होती है|

प्राचीन तांबे के सिक्कों का महत्व और वर्तमान सिक्कों के दुष्परिणाम?

वास्तविकता में सिक्के प्रवाहित करने का चलन तांबे के सिक्कों से शुरू हुआ है| कहते हैं कि एक बार लोगों में दूषित जल से बीमारियाँ फ़ैल गयी जिसके बाद राजशाही द्वारा नदी, जलाशयों में तांबे के बने सिक्के फेकना अनिवार्य कर दिया गया क्योंकि तांबा जल को शुद्ध करता है| प्राचीन समय में तांबे को सूर्य का प्रतीक एवं मृत पूर्वजों को प्रसन्न करने के माध्यम मानकर धार्मिक पहलू के रूप में अर्पित किया जाता था| विज्ञान के अनुसार भी यदि रात्रि में किसी तांबे के पात्र में जल डालकर रखा जाए और उसे सुबह ग्रहण किया जाए तो वह उबले हुए पानी से भी ज्यादा शुद्ध होता है| साथ ही साथ विज्ञान यह भी मानता है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से पाचन तंत्र मजबूत होता है| आयुर्वेद ने भी जल ग्रहण करने के लिए तांबे के बर्तनों के उपयोग को कारगर नुस्खा माना है|

वर्तमान में हमारे द्वारा जल में प्रवाहित किये जा रहे सिक्कों के मिश्रण में उपस्थित क्रोमियम, जल के संपर्क में आने बाद उसे दूषित कर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है| साथ ही साथ ज्यादातर रेल यात्रियों द्वारा फेंके जाने वाले इन सिक्कों से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है| अतः अगली बार ऐसा करने से पहले जल प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले इस कार्य के रोकथाम के लिए अवश्यम्भावी श्रमदान देकर, अपने मित्रों, सम्बन्धियों को भी जागरूक करें|

ज्ञात हो कि माननीय प्रधानमंत्री जी के “स्वच्छ भारत” अभियान से देश में एक खासा परिवर्तन की लहर चल रही है और यह अभियान अपने आप में जागरूकता और जानकारी की मिसाल पेश कर रहा है|

आपका ये सिक्के ना फेंकने वाला एक कदम, स्वच्छ भारत अभियान एवं विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में दिए जा रहे आपके योगदान द्वारा मील का पत्थर साबित होगा|

जल्द ही मैं इस गंभीर विषय पर माननीय प्रधानमंत्री को सुझाव दूंगा और आशा करूँगा कि वे इस विषय को “मन की बात” कार्यक्रम में शामिल कर देशवासियों को इस दिग्भ्रमित दिशा से निकलने का मार्ग बताकर “स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित जल” अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे|

बहरहाल मैंने और मेरे परिवार ने इस अभियान में अपना योगदान देना प्रारम्भ कर दिया है, विश्वास है कि आप भी योगदात्री बन सहयोग करेंगे|

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