नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट में आए नए चेहरों में एक केरल से है, वो राज्य जहां भाजपा एक इज्जतदार स्थान ग्रहण करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। अभी के लिए, जिस राज्य में हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई तीनों लगभग बराबर के हिस्सेदार हैं, भाजपा का सदन में एक विधायक है और संसद में कोई सांसद नहीं। ऐसे में अल्फॉन्स कन्ननथनम, जिनहे एक मजबूत राजनेता कम, एक कुशल प्रशासक के तौर पर ज़्यादा जाना जाता है, एक काफी रोचक विकल्प है। ऐसे में इनकी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में नियुक्ति मोदी शाह के जोड़ी के दिमागी कौशल के बारे में काफी कुछ कहता है, जो ये सुनिश्चित करना चाहते हैं की केरल के ‘लाल सलाम की ऊंची दीवार’, जिसने राज्य को भाजपा से दूर रखा है, 2019 तक ढह जाये।
हाल ही में नियुक्त पर्यटन मंत्री [स्वतंत्र प्रभार] एवं इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी मंत्री [मिनिस्टर ऑफ स्टेट], अल्फॉन्स कन्ननथनम अपने आईएएस कार्यकाल के उपलब्धियों के साथ साथ केरल के ईसाई समुदाय के भी एक अहम सदस्य हैं, जिसे भाजपा इस राज्य में अपना भाग्य बदलने की कोशिश में मना रही है।
अल्फॉन्स कन्ननथनम 1953 में कोट्टायम में पैदा हुये थे। इनहोने अर्थशास्त्र में अपने परास्नातक की डिग्री पूरी की और जल्द ही भारतीय प्रशासनिक सेवा [आईएएस] के सदस्य बन गए। उनके नाम 1989 तक अपने गृह नगर कोट्टायम को शत प्रतिशत साक्षर बनाने का श्रेय है। फिर वे दिल्ली स्थानातरित हुये, जहां उन्हे विध्वंसक पुरुष की उपाधि दी गयी, क्योंकि बतौर दिल्ली विकास प्राधिकरण [डीडीए] के अध्यक्ष, उन्होने कई अवैध मकान और बिल्डिंग गिराई थी। टाइम मैगज़ीन ने इन्हे इनके कार्यों के लिए इन्हे एक ‘युवा वैश्विक नेता’ की सूची में शामिल किया। 2006 में इनहोने आईएएस से इस्तीफा दे दिया और एलडीएफ़ के सहयोग से ये केरल में विधायक बन गए। पर समय के साथ इन्हे साम्यवाद रास नहीं आया और सदन को त्यागते हुये इनहोने 2011 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुधार के लिए हाल ही में गठित किए गए समिति के ये सदस्य भी हैं। ऐसे में इनके मंत्रिमंडल में प्रवेश से ये साफ है की मोदी सरकार को कुशल प्रशासकों की न सिर्फ आवश्यकता है, बल्कि पहचान है। यही नहीं, इससे देश के एक अंछुए प्रांत को भी प्रतिनिधित्व का सुनहरा अवसर मिला है।
यह कहते हुये अतिशयोक्ति न होगी की इसके पीछे की राजनीति क्या है। भाजपा उस राज्य में अपना पकड़ बनाने का पूरा ज़ोर लगा रही है, जहां हिंदुओं की जनसंख्या महज 54% है, और मुस्लिमों और इसाइयों की जनसंख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ते हुये 26% और 18% पहुँच चुका है।
इस बात को नज़रअंदाज़ न करते हुये की केरल काँग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ़ और वामपंथी एलडीएफ़ के बीच झूलती रही है, यह तो साफ है की भाजपा की यहाँ पहले कोई खास अहमियत नहीं थी, और ये बस पिछले साल ही केरल की राजनीति में कोई पैठ जमा पायी थी, जब विधानसभा चुनाव में इनका वोट प्रतिशत 15.2%, जिसमें लगभग 8% का उछल आया है, और पहली बार इन्हे एक विधायक भी मिला है। भाजपा को आभास हुआ है की अन्य राज्यों की तरह केरल में पैठ जमाना अगर नामुमकिन नहीं, तो कठिन अवश्य है, और सिर्फ हिन्दू वोटों पर निर्भर रहना तो कतई मुनासिब नहीं है। मुस्लिम तो रीति अनुसार भाजपा विरोधी हैं, पर भाजपा को कुछ ईसाई वोट अवश्य मिले है। गोवा में जहां लगभग एक चौथाई आबादी ईसाई है, वहाँ तो भाजपा ने कई बार सरकार बनाई है।
केन्द्रीय त्रवीणकोर के ईसाई समुदाय से अल्फॉन्स कन्ननथनम आते हैं। इनके चर्च के साथ अच्छे संबंध है और इसीलिए भाजपा इन्हे दो कारणों से एक उपयोगी मनुष्य के तौर पर देखते हैं।
एक तो इन्हे मोदी सरकार के सुशासन के संदेश को आगे ले जाना है, और दूसरा, इन्हे चर्च, नहीं तो ईसाई समुदाय के एक अहम कड़ी को भाजपा की तरफ मोड़ना है। वो अपने आप में भाजपा के लिए एक सम्मानजनक विजय समान होगा, जिसे उत्तर भारतीय समझके बेइज़्ज़त किया जाता है। अगर भाजपा ने केरल में धूम मचाई, तो ये उनके अखिल भारतीय पार्टी होने के इरादों पर एक वैधानिक ठप्पा लगा सकती है, और इनके कैडरों के लिए किसी वरदान से कम न होगा। अभी तो बस शुरुआत हुई है, पर अल्फॉन्स कन्ननथनम के पास काम काफी है।