मानवता की आड़ में ये लोग सिर्फ अपना एजेंडा चला रहे हैं

रोहिंग्या मुसलमान

आज मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में जहाँ तहाँ रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा गर्माया हुआ है। एक तरफ जहाँ केंद्र सरकार ने रोहिंग्या मुस्लिमों को देश से बाहर करने का फैसला कर लिया है वहीं दूसरी तरफ लिबरल जमात रोहिंग्या समुदाय के पक्ष में एक होती दिख रही है। दरअसल रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भागकर बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में जा रहें हैं। बौद्ध बहुल देश म्यांमार में अशांति फ़ैलाने, आतंकी गतिविधियों में शामिल रहने और धार्मिक उन्माद को बढ़ाने की वजह से वहाँ की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से भगाना शुरू कर दिया है। मूल रूप से म्यांमार के रखाइन प्रान्त से ताल्लुक रखने वाले रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार पुलिस बल पर आतंकी हमले करने का भी आरोप है। एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लड़ चुके रोहिंग्या म्यांमार के गाँवों में लोगो को आतंकवाद की ट्रेनिंग दे रहें हैं।

अब आतंकी संगठनो से रोहिंग्या मुस्लिमों की मिलीभगत साफ़ साफ़ नज़र आ रही है तो भारत के ये स्वघोषित उदारवादी लोग और कुपढ़ धर्मनिरपेक्ष लोग इन्हें भारत में बसाने के पक्ष में क्यों लगे हुए हैं ? क्या कारण है कि जिस समुदाय के बारे में इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में भी आतंकी संगठनों से मिले होने की बात कही गयी हो उसको भारत में शरण देने के लिए भारत के मीडिया और अन्य संस्थानों में बैठे लोग मुखर हो कर सामने आ रहें हैं ? जिस कश्मीर में आज रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने के लिए बड़े बड़े लेख लिखे जा रहें हैं, दलीले दी जा रही है, पिटीशन डाले जा रहें हैं, उस कश्मीर में कभी कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए क्यों सभी चुप हैं ? जम्मू कश्मीर में जो दोमुँहे लोग रोहिंग्या की पैरवी कर रहें हैं वो जम्मू कश्मीर में 35A से हो रहे शोषण पर चुप क्यों हैं ?

भारत में बैठे ऐसे ही भारतविरोधी तत्व जो रोहिंग्या के लिए प्राइम टाइम में दलीले पेश कर रहें हैं लेकिन इन्होंने कभी कश्मीरी पंडितों के दर्द को नहीं समझा। आज़ादी के बाद से ही 70 वर्षों से जम्मू कश्मीर में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आये हिन्दू समुदाय के लिए कभी प्राइम टाइम नहीं चलाया जिनको आज तक जम्मू कश्मीर की स्थायी निवासी पात्रता नहीं मिली है। पत्रकार, प्रोफेसर, विचारक, आंदोलनकारी, एक्टिविस्ट के रूप में बैठे दलालों ने कभी 35A से शोषित महिलाओं के लिए कोई कदम नहीं उठाया लेकिन इन्हें रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए पीड़ा हो रही है।

रोहिंग्या समुदाय की हाफ़िज़ सईद के जमात उल दावा से भी संबंध सामने आये हैं। जमात उल दावा में हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम शामिल हो चुके हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों की तालिबान और अलकायदा से भी संपर्क हैं। 2013 से ही अलकायदा की नज़रें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर टिकी हुई है। इसी दौरान असम की ख़ुफ़िया एजेंसी ने भारत सरकार को सतर्क किया था कि आईएसआईएस और अन्य आतंकी संगठन असम, म्यांमार और कश्मीर के युवकों को आतंकी संगठनों में शामिल कर रहा है। इस रिपोर्ट के बाद भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसपर ध्यान नहीं दिया था ना ही मीडिया में बैठे प्राइम टाइम करने वाले पत्रकारों ने इस पर कोई चर्चा की थी जो आज इन रोहिंग्या मुसलमानों पर आँसू बहा रहे हैं।

भारत में रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन करने वाले कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जिनकी प्रशंसा अंतराष्ट्रीय मोस्ट वांटेड आतंकी हफ़ीज़ सईद ने खुद भी की है वहीं कुछ ऐसे भी जिनके ट्वीट को पाकिस्तान सरकार द्वारा भारत के खिलाफ़ रिट्वीट कर इस्तेमाल किया जाता है।

“कट्टर इस्लामी” पाकिस्तान और “कम्युनिस्ट” चीन भारत को अस्थिर करने में लगातार लगे हुए हैं। रोहिंग्या मुस्लिम आने वाले समय में पाकिस्तान और चीन के लिए भारत के विरूद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जा सकते हैं इसमें कोई शंका नहीं है। भारत में बैठे वामपंथी उदारवादी विचारक और छद्म धर्मनिरपेक्ष भारत को अस्थिर करने में कितना साथ देते हैं यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। इसी क्रम में यह स्वघोषित बुद्धिजीवी समुदाय रोहिंग्या मुस्लिमों के पक्ष में तो खुलकर मुखर हो रहा है लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए इनके जबान में ताला लगा हुआ है। रोहिंग्या समुदाय के महिलाओं की तस्वीरों को दिखाकर यह संवेदना जता रहें हैं लेकिन इन्हें 35A से शोषित महिलाएं नहीं दिखती। इन्हें रोहिंग्या के बच्चे तो दिख रहे लेकिन जम्मू कश्मीर के दलित सफाईकर्मी के बच्चे नहीं दिखते जो पीएचडी करने के बाद भी सफाईकर्मी ही बन सकते हैं। इन्हें 5 साल से भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या को तो नागरिकता दिलानी है लेकिन 70 सालों से शरणार्थी की ज़िन्दगी जी रहे जम्मू कश्मीर के हिंदुओं के समय इनको कुछ दिखाई नहीं देता।

ये सिर्फ और सिर्फ इनका दोहरा चरित्र है। भारत को अस्थिर करने में ये सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं। वैचारिक विरोध की आड़ में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में, संविधान की आड़ में ये लोग सिर्फ अपना एजेंडा चलाने में लगे रहते हैं। दुष्प्रचार ही इनका एकमात्र हथियार है। इन सफ़ेद कॉलर के बीच में बैठे हुए ऐसे लोगों को अच्छे से पहचानने की ज़रूरत है, ऐसे लोगो के बहिष्कार की ज़रूरत है।

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