2 रोहिंग्या शरणार्थी सरकार के खिलाफ कोर्ट गए, सरकार की प्रतिक्रिया ने किया कोर्ट को स्तब्ध

रोहिंग्या, सर्वोच्च न्यायालय
रोहिंग्या मामले में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार ना ही इन अवैध प्रवासियों को भारत में बसने की इजाजत देंगे ना ही उस संबंध में माननीय न्यायालय के हस्तक्षेप को स्वीकार करेंगे।

संक्षेप में बताते हैं कि केंद्र सरकार ने अंततः रोहिंग्या के मुद्दें पर सीधे खड़े होने का फैसला कर लिया है और सर्वोच्च न्यायालय के सामने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या लोगो को भारत में किसी भी तरह से रहने की अनुमति नहीं देंगे।

रोहिंग्या और म्यांमार डैनिजंस के बीच की लड़ाई जिसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर मुख्य रूप से म्यांमार की प्रमुख आंग सान सू की और फायरब्रांड बौद्ध भिक्षु ऐशिन विराथु के नेतृत्व से जोड़कर देखा जा रहा है। स्वघोषित मानवाधिकारों की संस्था यूएनएचआरसी, एमनेस्टी इंटरनेशनल, एनएचआरसी और उदारवादी बुद्धिजीवियों के समूह (जो 9/11 के हमले के मास्टरमाइंड के रूप में कथित रूप से शामिल है, सऊदी अरब) द्वारा इन रोहिंग्या लोगो को फ़ासीवादी और तानाशाह सरकार से पीड़ित और नर्क जीवन जीने वाले गरीब और निर्दोष रोहिंग्या के रूप में अन्य देशों के सामने चित्रित करने की कोशिश किया जा रहा हैं।

यही लोग बेशर्मों की तरह छुप जाते हैं जब सीरिया और इराक में कुर्द लोगो के साथ अत्याचार होता है, जब बलोच और पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के क्षेत्र में लोगो के साथ अत्याचार होता है, जब भारत में कश्मीरी सनातनियों के साथ वास्तविक अत्याचार होता है, लेकिन उन्ही अपराधियों पर एक खरोंच भी आने पर ये लोग शोर मचाने और चिल्लाने लगते हैं। वो स्वीडन, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस जैसे यूरोपीय देशों के इस्लामीकरण पर तो चुप रहते हैं लेकिन ऐसे व्यक्ति को ‘बौद्ध का आतंकी चेहरा’( हमने तो भारत में यह पहले भी सुना है) बताने से परहेज नहीं करते जो ऐसे राक्षसों से अपने देश की रक्षा कर रहा है। लेकिन इस बार ये लोग गलत राष्ट्र के साथ गड़बड़ कर लिए हैं, और बिना शक़ के निश्चित रूप से गलत सरकार के साथ, गलत समय पर।

भारत अब वो देश नहीं है जो अपने ही देश के नागरिकों के बलिदान पर और सुरक्षा के समझौते पर शरणार्थियों का स्वागत करे। इस बार सरकार एनडीए की है ना कि युपीए की जिसने ख़ुशी ख़ुशी आतंकवादियों को शरण दी और तो और अपनी ही सेना के जवानों पर ‘हिन्दू आतंकी’ जैसे शब्द गढ़ कर लांछन लगाया, जिसका मिथक आखिर 9 साल बाद जाकर खुलकर सामने आया।

अपने इरादों को पूर्ण रूप से घोषित करने के बाद केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में 2 रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दायर याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने 15 पन्नों का हलफनामा जारी करते हुए यह स्पष्ट किया कि रोहिंग्या समुदाय कोई शरणार्थी नहीं है, उन्हें किसी भी प्रकार के विशेषाधिकार नहीं दिए जा सकते।

उन्होंने कहा “……. संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार भारत के किसी भी क्षेत्र में व्यवस्थित होने का अधिकार और भारत के किसी भी क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से जाने का अधिकार किसी को तभी है जब वह भारत का नागरिक हो। कोई भी अवैध आप्रवासी न्यायालय में रिट याचिका नहीं कर सकता है, यह सीधे या परोक्ष रूप से मौलिक अधिकार हैं जो भारत के नागरिकों को दिए जाते हैं। यह भी दिखता है कि भारत में रोहिंग्या समुदाय के अवैध घुसपैठ एक गंभीर मसला होने के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर और खतरा होने की संभावना हो सकती है।

इस मामले में सबसे मुखर वक्तव्य कुछ इस प्रकार था कि सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा पीठ सहित सभी आश्चर्यचकित कर गया :

“देश के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिखाया गया कि कोई भी अवैध व्यक्ति अवैध आसार को हमारे देश में प्रोत्साहित करेगा और इसके साथ ही भारत के नागरिकों को उनके मौलिक और बुनियादी अधिकारों से वंचित करेगा।”

यह केंद्र सरकार द्वारा लिया गया अपने आप में एक बड़ा साहसिक कदम है। हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी लोगो के बीच यह तेजी से माना जा रहा है कि रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ केंद्र सरकार का यह रुख विपक्ष को पूरी तरह चित कर चुका है, उनके पास अब कहने को कुछ नहीं रह गया है। इसके आलावा यह भी देखते हुए कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दही हांडी के दौरान त्यौहार को विनियमित करना और कश्मीरी पंडितों के याचिका को सुनने से इंकार करना, इसको देखकर यह सरकार के लिए मौका है कि वह रोहिंग्या समुदाय के याचिका को हल्का कर इस आने वाली समस्या से निजात दिलाये।

यह तय करना आसान नहीं है कि कितने रोहिंग्या लोगों ने भारत में शरण ले रखा है। संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े 16000 का अनुमान लगाते हैं जो निश्चित रूप से हास्यास्पद नजर आता है। अकेले जम्मू कश्मीर राज्य में 40000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमान अवैध तरीके से रहते हैं, यह विडंबना ही है कि एक राज्य जिसने अपने ही कश्मीरी पंडितों को अपने घरों में पुनर्वास करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया, जहाँ अनुच्छेद 35A की वजह से किसी भारतीय को जम्मू कश्मीर राज्य में स्थापित होने का अधिकार नहीं देता वो अब रोहिंग्या को आश्रय दे रहा है। क्या कश्मीर घाटी ऐसे ही लोगों के लिए कुख्यात है ?

ऐसे मामले में भारत यदि गंदगी को साफ़ करना और इस्लामी साम्राज्यवाद की धमकियों से प्रतिरक्षा करना चाहता है तो इसमें हर्ज क्या है ? क्या आत्मरक्षा अपराध है ? यह कुछ वकीलों जैसे फली नरीमन, कॉलिन गोंजाल्विस, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण जैसो के लिए हो सकता है लेकिन भारत के अन्य हिस्सों के लिए नहीं और निश्चित ही रूप से वर्तमान भारत सरकार के लिए तो बिल्कुल भी नहीं, जो राष्ट्र के हित में अपने गियर को आक्रामक तरीके से बदलने में संकोच नहीं करेंगे। इसके अलावा म्यांमार उनमे से बहुत को वापस लेने के लिए तैयार है तो फिर भारत क्यों बिन बुलाये मेहमानों को रखेगा ? क्या हम भूल जाए कि उनमें से कितने ही 150 से अधिक वर्षों से रुके हुए हैं ?

सूत्र :-

ANI

Press Trust of India

http://www.hindustantimes.com/india-news/centre-says-rohingas-have-links-with-islamic-state-and-isi-urges-supremecourt-to-leave-deportation-decision-to-govt/story-9tNoTHQPTMa082Vlbj5UJM.html

http://www.deccanchronicle.com/nation/current-affairs/180917/rohingyathreat-to-national-security-centre-files-affidavit-in-sc.html

 

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