फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई), पिछले कुछ समय से यह संस्थान विवादों में रहा था। 2015 में गजेन्द्र चौहान को एफटीआईआई का चेयरमैन बनाने के बाद से ही वहाँ के “वृद्ध छात्रों” लगभग 139 दिनों तक आंदोलन किया था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि ये ‘वृद्ध छात्रों’ के साथ साथ अब लिबरल समूह फिर सक्रिय हो चुका है। कारण है, बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता और कश्मीरी पंडित अनुपम खेर का एफटीआईआई के चेयरमैन के रूप में चुना जाना।
जैसे ही घोषणा हुई कि अनुपम खेर को चेयरमैन बनाया जा रहा है, तुरंत ही सोशल मीडिया में इस फैसले के विरोध में माहौल बनाना शुरू कर दिया गया। एफटीआईआई के ‘वृद्ध छात्रों’ से लेकर मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया में उगे हुए मीडिया समूहों ने लगातार विरोधाभासी प्रोपगंडा की शुरआत कर दिया।
अनुपम खेर की नियुक्ति को उनकी सांसद पत्नी से लेकर देखा जा रहा है, राष्ट्र के पक्ष में किये गए कार्यों से देखा जा रहा है, और तो और उन्हें इस पद के लिए नाकाबिल भी बताया जा रहा है।
अनुपम खेर जिनका एफटीआईआई के वृद्ध छात्र विरोध करने में तुले हैं, उसका असल कारण है विचारधारा। पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित अनुपम खेर ना सिर्फ एक मंझे हुए कलाकार हैं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर वो मुखर होकर अपनी बात रखते हैं। अनुपम खेर इससे पहले एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा) के निदेशक और केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 62 वर्ष के अनुपम खेर खुद एनएसडी और एफटीआईआई के विद्यार्थी रह चुके हैं। खेर उन गिने चुने अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने ना सिर्फ बॉलीवुड बल्कि हॉलीवुड में भी पहचान बनाई है। ऑस्कर अवार्ड जीतने वाली हॉलीवुड फ़िल्म ‘सिल्वर लाइनिंग्स प्लेबुक’ में उन्होंने अभिनय किया था। 500 से अधिक बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय करने के बाद आज अनुपम खेर को यह मुक़ाम हासिल हुआ है।
लिबरल गैंग और एफटीआईआई के ‘वृद्ध छात्रों’ का विरोध होना लाजिमी है। क्योंकि अनुपम खेर उन अभिनेताओं में से नहीं हैं जो पाकिस्तानी कलाकारों की पैरवी करते हो, खेर उनमें से नहीं है जो कश्मीर की आज़ादी चाहते हो, खेर उनमें से नहीं है जिन्हें भारत और हिन्दू असहिष्णु लगते हो, खेर उन निर्देशक जैसे भी नहीं जिन्हें हिन्दू आतंकवादी लगते हो, खेर एक परिवार के चाटुकार भी नहीं हैं, खेर ‘इंदु सरकार’ जैसी फ़िल्म में काम भी करते हैं, खेर ‘वामपंथ’ को आईना दिखाती फ़िल्म ‘बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम’ में भी काम करते हैं, खेर कश्मीरी पंडितों की भी बात करते हैं, खेर भारत के लिए ‘तिरंगा मार्च’ भी निकालते हैं, क्या इतने कारण काफी नहीं है ? वैसे कारण तो और भी हैं लेकिन इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को एक मंझा हुआ कलाकार, विश्व पटल में भारत की पहचान में वृद्धि कराने वाला अभिनेता और सबसे महत्वपूर्ण जमीन से उठकर कामयाबी के शिखर तक अपने बल पर पहुँचने वाला व्यक्ति भी खटक रहा है, तो इसका एक और कारण है कि अनुपम खेर उनके खाँचे में फिट नहीं बैठते।
जब तथाकथित बुद्धिजीवियों का समूह बिहार चुनाव को मद्देनजर रखते हुए भारत को असहिष्णु बताकर ‘अवार्ड वापसी’ में लगा हुआ था, तब अनुपम खेर जैसे व्यक्ति ने ना सिर्फ मुखर होकर इसका विरोध किया बल्कि ‘मार्च फॉर इंडिया’ के नाम से तिरंगा मार्च भी निकाला, जिसे देश भर बड़े स्तर में समर्थन मिला। जेएनयू प्रकरण के दौरान भी अनुपम खेर ने देशविरोधी गतिविधियों की कड़ी आलोचना की थी। एनआईटी श्रीनगर में छात्र रूपी गुंडों ने जब ‘भारत माता की जय’ और ‘वन्दे मातरम’ के नाम पर राष्ट्रवादी छात्रों के साथ मारपीट की थी तो सबसे पहले उनके समर्थन में खड़े होने वाले अनुपम खेर ही थे। बस यही सब तो एफटीआईआई के वृद्ध छात्रों और लिबरल गैंग की समस्या है।
एफटीआईआई को वामपंथ ने शुरू से अपना गढ़ बनाया हुआ है। कुछ समय पहले वहाँ देशद्रोह के आरोपी और अंतरिम जमानत में रिहा कन्हैया कुमार के भाषण की भी तैयारी थी। यही वजह है कि अनुपम खेर को एफटीआईआई का चेयरमैन बनाना एक तुरुप का इक्का साबित होगा। उम्मीद है कि अनुपम खेर के संस्थान में आने के बाद माहौल, विचार और गतिविधियों में कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।