इस साईट कि माने तो भारत का एक राज्य आधिकारिक तौर पे “ईसाई” राज्य बन चुका है

ईसाई, मिज़ोरम

आजादी के 70 साल बाद और 79 प्रतिशत हिंदू होने के बावजूद भी भारत को अभी भी अपनी धार्मिक पहचान प्राप्त करनी है। हालांकि भारत के गैर हिंदू बहुसंख्यक वाले राज्यों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। मिजोरम ने अपनी धार्मिक पहचान “ईसाई” के रूप में खोजी और शर्मनाक रूप से इसे अपनी वेबसाइट में डालकर इस बात को विश्वसनीयता भी दे दी।

यह लिंक है जहाँ मिज़ोरम की आधिकारिक वेबसाइट जहाँ धर्म ईसाई पढ़ा जा सकता है, मिजोरम की gov.in साईट पर ऐसा कुछ नहीं लिखा है, परन्तु nic.in पर लिखा है, गौरतलब हो कि दोनों सरकारी साइट्स हैं

http://mizoram.nic.in/about/glance.htm

मिजोरम ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि 13% आबादी जो गैर ईसाई है, राज्य की सामूहिक पहचान में शामिल नहीं है। 13 प्रतिशत में अधिकांश लोग बौद्ध चकमा, हिंदू बरु और अन्य गैर ईसाई आदिवासी, ज्यादातर जीव वादी हैं।

मिजोरम कुछ भयंकर धार्मिक और जातीय भेदभाव का ठिकाना रहा है जो की अनौपचारिक रुप से लगातार राज्य सरकारों द्वारा समर्थित है। धार्मिक भेदभाव वास्तव में जातीय भेदभाव के मुखौटे में है। जातीय मिजो जनजाति लगभग इसाई है जबकि माना जाता है कि गैर जातीय जनजातियां धार्मिक संबंधों में गैर ईसाई हैं।

हाल ही में राज्य के चार चकमा छात्रों को राज्य सरकार द्वारा राज्य के कोटा के तहत मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देने से इंकार कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ना केवल जातीय मिजो द्वारा ही कोटा का लाभ लिया जा सकता है और इसे गैर जातीय मिजो के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता।

मिजोरम राज्य की एकमात्र चकमा मंत्री (कांग्रेस नेतृत्व मंत्रिपरिषद) “बुद्ध धन चकमा” को नस्लीय भेदभाव के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा। उन्हें इस मामले का हवाला दिया गया जिसमें नीट की प्रवेश परीक्षा पास करने के बावजूद चार चकमा छात्रों को दाखिला से इनकार किया गया था। बाद में उच्च तकनीकी शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य के कोटा की सभी सीट मिजोरम के जो-जातीय जनजातियों के लिए है और चूँकि चकमाएं उनमें से नहीं है इसलिए उन्हें मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया जा सकता।

यह माना जा सकता है कि यह ऐसी ही घटनाओं का एक और परिणाम है जिसका उद्देश्य राज्य में ऐसा माहौल स्थापित करना है कि “यह ईसाइयों का एक घर है” और जातीयता राज्य में एक मुखौटा है जो बड़े पैमाने पर हो रहे धार्मिक भेदभाव को छुपाता है। गैर-जातीय मिजो जनजातियों का उत्प्रवास राज्य में बड़े पैमाने पर रहा है और राज्य विधान सभा द्वारा चकमा स्वायत्त परिषद को भंग करने का प्रयास भी किया गया है। स्वायत्त परिषदों को भंग करने और राज्य की राजनीति के स्पेक्ट्रम में जो कुछ भी हिस्सा है उनमें से चकमाओं को दूर करने के लिए राज्य विधायिका द्वारा 21 संकल्प पारित किए गए हैं।

राज्य धर्म के ऐसे घटिया प्रदर्शन का समर्थन केवल उस समर्थन की सुई कार्य समिति है जो राज्य द्वारा नफरत की राजनीति को दिया जाता है।

यह तब हुआ जब मैं मिजो समूह ने अपने साथ हुए भेदभाव के बारे में शिकायत की, जब वे एकीकृत असम राज्य का हिस्सा थे। वैसे रूप लिए बेहद संवेदनशील हो सकते थे जो एक ऐसेअल्पसंख्यक समुदाय का सामना कर रहे हैं जिस तरह के लक्षित नफरत के माहौल में है।

यह इस बात से स्पष्ट है कि जब तक हिंदू या गैर अब्राह्मिक बहुसंख्यक है तब तक ही भारत धर्मनिरपेक्ष है। जब अब्राह्मिक विश्वास वाले बहुसंख्यक होंगे तो निश्चित रुप से भारत अपना धर्म निरपेक्ष चरित्र खो देगा।

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