शिवसेना भाजपा का पुराना लेकिन एक अशिष्ट साथी रहा है। उद्धव ठाकरे ने तो एक बार यह तक कह डाला था कि राज्य सरकार में उनके मंत्री जेब में इस्तीफा लेकर बैठे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा शिवसेना को ज्यादा सीटें नहीं देने के बाद भी शिवसेना ने ऐसे ही कोरी धमकियां दी थी। उसके बाद से ही भाजपा-शिवसेना के गठबंधन में लगातार गर्माहट दिखी है। यह मात्र एक चमत्कार ही है कि गठबंधन टूटने से बचा रह गया। लेकिन यह नए युग की भाजपा इन गीदड़ भभकी को पसंद नहीं करती और पीठ पीछे वार करने वाले को तो बिल्कुल भी नहीं।
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ही कदम है जो शिवसेना को अनुशासित करने और बेहतर सहयोगी के रूप में काम करने की ओर ले जा सकता है।
महाराष्ट्र में अपने साथी राजनेताओं राज ठाकरे और शरद पवार की तरह अपने डूबते राजनैतिक कैरियर को बचाने के लिए नारायण राणे ने 1 अक्टूबर 2017 को अपनी नई पार्टी ‘स्वाभिमान पक्ष’ का गठन किया हैं। एक शाखा प्रमुख से भारत के सबसे समृद्ध राज्य के मुख्यमंत्री तक का सफ़र करने वाले नारायण राणे ने आखिरकार अपनी राजनैतिक पार्टी बना ली है।
कुछ दिन पहले कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही यह अफवाह थी कि नारायण राणे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के उपस्थिति में भाजपा में शामिल होकर कोंकण क्षेत्र में भाजपा का चेहरा बनेंगे।
यह देखते हुए कि कोंकण क्षेत्र में जहाँ बीजेपी की कोई पकड़ नहीं है उस क्षेत्र में जनता के बीच सर्वमान्य राजनेता को भाजपा में शामिल करना एक अच्छा कदम होगा। लेकिन जब वह राजनेता नारायण राणे हो तो भारतीय जनता पार्टी के लिए हालात थोड़े मुश्किल हो गए। स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों ने नारायण राणे को भाजपा में शामिल करने पर भाजपा नेतृत्व के खिलाफ बड़े स्तर में विद्रोह करने की धमकी भी दे डाली। यूपीए शासन के दौरान अपने राजस्व मंत्री के कार्यकाल में भाजपा के खिलाफ दिए बयान और कृत्यों की वजह से पुरे देश में भी नारायण राणे को भाजपा में शामिल करने पर नाराजगी और निराशा बढ़ती।
यह सिर्फ भाजपा और राणे के बीच अलग विचारधारा की ही बात नहीं थी बल्कि उसके विद्वेष में अतीत में किए गए काम भी थे जो इसमें रूकावट बने। यूपीए के शासन में राजस्व मंत्री रहने के दौरान राणे का नाम कई ऐसे घोटालों से भी जुड़ा जिसने देश को स्तब्ध कर दिया था। आदर्श सोसाइटी घोटाला, कथित तौर पर पत्नी और बच्चों के नाम पर जमीन हथियाने का घोटाला, फर्जी (शेल) कंपनियों का घोटाला समेत एक लंबी सूची है। और यह सूची इतनी लंबी है कि भाजपा स्पष्ट रूप से नारायण राणे को यह कह सकती है कि राणे के समर्थन से तो कोई ऐतराज नहीं लेकिन उसके भाजपा में शामिल होने की कोई संभावना नहीं है।
हमने 29 सितंबर 2017 को अपने एक लेख में यह स्पष्ट अनुमान लगाया था और देखिए 1 अक्टूबर नारायण राणे ने वही किया। राणे की कांग्रेस छोड़ने की वजह यह भी है कि उन्हें वादा करने बाद भी कांग्रेस पार्टी द्वारा महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता। और यह स्वाभाविक सी बात है कि इनके जैसा अवसरवादी राजनेता कांग्रेस जैसे डूबते जहाज के आसपास भी क्यों रहेगा।
नारायण राणे के लिए अपनी ही पार्टी स्थापित करना सबसे अच्छा रास्ता था और यह भाजपा और राणे दोनों के लिए स्वाभाविक जीत की स्थिति है।
नारायण राणे के लिए कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़कर हारने के बजाय यह अपने स्थापित चेहरे को बचाने और शर्मिंदगी से बचने का बढ़िया मौका है। यही समय है जब वो अपने बच्चों निलेश और नितेश के लिए कुछ विरासत खड़ी करे जैसा बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के लिए किया था। और बीजेपी के लिए यह मौका है कि तटीय क्षेत्र जहाँ वो कमजोर है उस जगह पर शिवसेना के बल पर भरोसा किये बिना एक मजबूत सहयोगी हासिल कर सकती है।
यह राजनीतिक व्यवस्था भाजपा के लिए तो अच्छी है लेकिन लंबे समय से भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना के लिए यह एक बड़ा झटका है। सटीक और कड़क निर्णयों के लिए जाने जाने वाले अमित शाह ने एक बार फिर अपने सारे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को दिखा दिया कि भारतीय राजनीति अब 10 जनपथ से प्रशासित नहीं होती। इन सब के बीच यह उम्मीद की जा सकती है शिवसेना विपक्ष की जगह अब सहयोगी की भूमिका में काम करेगी और 2019 के चुनाव में सभी भगवा दल एक होकर लड़ेंगे।