कुछ विशेष लोगो के लिए ख़ुशी की बात है कि देश के बड़े ‘बुद्धिजीवी व्यक्ति’ अब अपने घोटालों से लगभग ख़त्म हो चुकी सबसे पुरानी पार्टी ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की बागडोर सँभालने वाले हैं। यह विरोधाभासी जरूर लग सकता है, लेकिन मिलिंद देवरा ने यह खुलासा किया है क़ि राहुल गांधी को एआईसीसी (आल इंडिया कांग्रेस कमिटी) के चुनाव के बाद आगे बढ़ाया जा सकता है। यह पहली बार नहीं है जो इस तरह की खबरे बाहर आई है, ऐसी खबरे पहले भी आ चुकी है। कांग्रेसियों की मानी जाए तो सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी अब पहले अधिक परिपक्व और लोकप्रिय हो चुके हैं और उनके द्वारा यूके के बर्कले युनिवेर्सिटी में दिए भाषण को शुभचिंतकों और द्वारा वफादार लोगों द्वारा काफी सराहा गया, इससे हम उम्मीद कर सकते हैं कि दीपावली के बाद राहुल बाबा का राज्यभिषेक हो सकता है। उनकी पदोन्नति के बाद कांग्रेस पार्टी में कुछ दिलचस्प बदलाव को देखा जा सकता है।
राहुल गांधी ‘गांधी परिवार’ के वफादार लोगों को इनाम देने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि उन्होंने अपने वफादार युवा राजनेताओं की एक टीम तैयार की है जो उन्हें सलाह भी देगी, उनके विचार को व्यवस्थित भी करेगी और निर्बाध रूप से जुड़े रहेगी। लेकिन कांग्रेस के भीतर से ही गहरे असंतोष की आवाज़ उठ रही है। ऐसे में राहुल गांधी की टीम को कांग्रेस की कोर टीम के रूप में माना जा सकता है। वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलेट, एआईसीसी सचिव राजीव सातव और कांग्रेस के सोशल मीडिया की प्रमुख दिव्या स्पंदन को राहुल के मुख्य टीम का हिस्सा माना जा रहा है।
यह भी बताया जा रहा है कि रणदीप सुरजेवाला की राहुल गांधी तक पहुँच अब काफी ज्यादा है और पार्टी की रणनीति पर वह लगभग रोजाना चर्चा करते हैं। पार्टी के सोशल मीडिया प्रमुख दिव्या स्पंदन की नियुक्ति पर कई लोगों ने उँगलियाँ उठाई, बाद में यह स्पष्ट हुआ कि खुद राहुल गांधी ने उनकी नियुक्ति की थी। और तो और उन्हें बजट के लिए खुलकर छूट दी गई है, जो कि कांग्रेस पार्टी में दुर्लभ है। यह साफ़ दर्शाता है कि दिव्या पर राहुल को कितना भरोसा है। राजीव शंकरराव सातव जो कि महाराष्ट्र के 2 सांसदों में से एक हैं वो उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विज़न को आगे बढ़ाने वाले और आक्रामक वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। आधार के मुद्दें पर इन्होंने ही विपक्ष के मोर्चे का नेतृत्व किया था। ये एआईसीसी के 4 सचिवों में से एक हैं जो कांग्रेस के गुजरात अभियान में एक प्रमुख सदस्य भी होंगे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो कि गांधी वंश के साथ अपनी मित्रता और विश्वसनीयता का पूरा आनंद लेते हुए लोकसभा में बड़ी भूमिका के लिए तैयार होंगे। वहीं सचिन पायलट भी इसका हिस्सा रहेंगे और आने वाले समय में उन्हें राजस्थान में पूरी छूट दी जा सकती है। यूके के बर्कले में हुए राहुल गांधी के भाषण के गैराधिकारिक आयोजक सैम पित्रोदा जो कि राजीव गांधी के मित्र भी थे, वो भी राहुल गांधी के वफादार लोगो में शामिल हैं, वैसे वो परदे के पीछे रहकर काम करना पसंद करते हैं। मिलिंद देवरा और शशि थरूर को भी कुछ हद तक विश्वासपात्र के रूप में लिया जा सकता है।
यदि कांग्रेस पार्टी में बदलाव होता है तो इन चेहरों को हम पार्टी में प्रमुख रूप से देख सकते हैं। राहुल गांधी के वैसे सोनिया गांधी के कैंप के साथ उतने बेहतर संबंध नहीं है।
समय समय पर हमने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के वफादार लोगों के बीच शीत युद्ध देखा ही है।
ऐसा ही एक मामला है सत्यव्रत चतुर्वेदी का जो कि सोनिया गांधी का वफादार था और उसने राहुल के अक्षमता को लेकर आलोचना की थी। सोनिया गांधी के कैंप से आशीष कुलकर्णी ने भी कांग्रेस छोड़ते वक़्त राहुल गांधी और पार्टी नेतृत्व की आलोचना की थी। उनके द्वारा लिखे पत्र में स्पष्ट हो गया था कि ‘माँ-बेटे’ के जोड़ी के अलावा कुछ शुभचिंतक प्रियंका वाड्रा के भी हैं। प्रियंका वाड्रा का कोई ऐसा प्रमुख कैंप नहीं है लेकिन यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं न कहीं गांधी भाई-बहन के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष जरूर है। प्रमुख बात यह भी है कि कांग्रेस के पुराने रणनीतिकार अहमद पटेल और राहुल गांधी के बीच भी कोई सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं है।
राज्यसभा चुनाव के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि यह चुनाव कांग्रेस के लिए कितना भी महत्वपूर्ण क्यों ना हो राहुल की पूरी टीम यह चाहती थी कि अहमद पटेल यह चुनाव हार जाये। सोनिया ने पटेल को शुभकामनाएं दिया, पटेल ने राहुल जी समेत सभी को शुभकामनाएं दिया, लेकिन राहुल गांधी मूकदर्शक बने बैठे रहे और किसी को शुभकामनाएं देना जरुरी नहीं समझा। वहीं एक ओर देखा जाए तो दिग्विजय सिंह वो राजा है जिसके पास अब कोई राज्य नहीं है।
तो राहुल गांधी की बढ़ती साख के साथ हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि पार्टी के भीतर बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। अहमद पटेल, एकनाथ खड़गे, मनीष तिवारी, जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह जैसे सोनिया गांधी के वफादारों की महत्ता अब अप्रासंगिक हो जायेगी। पार्टी के प्रमुख पदों में राहुल के लोगों के शामिल होने और सोनिया गांधी कम सक्रिय रहने के बाद सोनिया के वफादारों को असली कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।