मराठी कवि जी.डी. मदगुलकर द्वारा संगीतबद्ध और सुधीर फड़के द्वारा गाया गया गीत रामायण मराठी साहित्य में एक विशेष स्थान रखता है। यह महाकाव्य रामायण का वर्णन करते 56 गीतों से बना है। आलोचनात्मक रूप से भी प्रशंसित गीत रामायण ने जी.डी. मदगुलकर को ‘आधुनिक वाल्मीकि’ की ख्याति दिलवाई जिसकी श्रृंखला 1955-56 में लोगो के दिलों में घर कर गई थी। इस श्रृंखला में दूसरा गीत अयोध्या शहर की महिमा को दर्शाता है। इसमें लिखा है,
“सरयू तिरावरी अयोध्या मनुनिर्मित नगरी…
(सरयू नदी के तट पर अयोध्या का निर्माण मनु द्वारा किया गया था)
त्या नागरीच्या विशलतेवर, उभ्या राहिल्या वास्तू सुंदर
मधुन वाहती मार्ग समानांतर, रथ, वाजी, गज, पथिक चालती, नटुनि त्यांच्यावरी
(खूबसूरत इमारते, शहर की महानुभवता को प्रतिबिंब करते हुए रथ, घोड़े, हाथी पर सवार होकर घूमते हुए संगीत मंडल)
घराघरावर रत्नतोरणे, अवती भवती रम्य उपवने
त्यांग रंगती नृत्य गायने, मृदंग वीणा नित्य नादती, अलका नगरीपरी
( हर तोरण से सजा हुआ है, सुंदर बगीचे नृत्य, मृदंग, वीणा की आवाज़ से गूंजते हुए, इंद्र के अलकापुरी को पार करते हुए सजाया गया है।)”
अयोध्या का वर्णन, जिसका शाब्दिक अर्थ अदम्य है, प्राचीन ग्रंथों में भी विचारोत्तेजक है। महर्षि वाल्मीकि की वर्णन के अनुसार अयोध्या एक समृद्ध, सांस्कृतिक और शांति का शहर है। यह प्राचीन अयोध्या के नागरिक जैसा महसूस कराता है और अयोध्या को भारतीय सभ्यता के केंद्र के रुप में स्थापित करता है। हालांकि समय अयोध्या के प्रति उदार नहीं है। एक पवित्र भूमि जिसमें श्री राम के चरणों का आशीर्वाद है उससे निकलकर अयोध्या में मध्यकालीन युग में गिरावट आई। अयोध्या के आसपास के क्षेत्र में मुस्लिम प्रभुत्व बढ़ा जिन्होंने मंदिर में आने वाले तीर्थ यात्रियों पर कर लगाना शुरू किया। भगवान राम के जन्म स्थान पर मंदिर को ढककर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया। ब्रिटिश ने सत्ता के आगमन के बाद हिंदू और मुसलमानों के बीच शक्ति का समीकरण अपने हिसाब से बदल दिया। राम मंदिर को वापस पाने की कोशिश 19वीं शताब्दी में की गई लेकिन मामले को मुकदमेबाजी में फँसा दिया गया। 1980 के दशक और 90 के शुरुआती दिनों में राम जन्मभूमि आंदोलन को पुनर्जीवित किया गया और बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की उत्साही भीड़ ने गिरा दिया। दुर्भाग्यवश, आंदोलन के साथ हिंसा और दंगों के चलते अयोध्या की छवि को केवल दूषित किया गया। भारतीय सभ्यता के केंद्र होने से दूर निकल अयोध्या बाहरी आक्रमणों से घबरा गया, विजय से निकल दंगों में उलझ गया, और हाथ में लिया काम वापस छोड़ दिया गया।
जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था वहाँ आज एक अस्थायी तम्बू उस स्थान का प्रतीक है। आज वहाँ सुरक्षाकर्मियों ने कई तीर्थयात्रियों को मंदिर से दूर कर दिया है जबकि कुछ लोग जो अयोध्या पहुंचते हैं वह एक सोई हुई अपस्वास्थ्य शहर को देखते हैं जिसमें बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की अत्यंत कमी है।
सौभाग्य से अब सब कुछ मंच पर होने के लिए तैयार है। यदि सबकुछ योगी सरकार के योजना के मुताबिक हुआ तो अयोध्या जल्द भारत के सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपने सही स्थान को पुनः प्राप्त करेगा। अन्य सरकारों के विपरीत, जो अयोध्या को भारत के हिंदू अतीत से जुड़े हुए होने के कारण सक्रिय रुप से इसके विकास की अवहेलना करते थे, योगी सरकार उनका प्रशासन सभी को यह सुनिश्चित करने जा रहा है कि प्राचीन शहर अयोध्या अपने विकास के साथ परंपरा के सम्मान के लिए आदर्श साबित होगा। सुविधाओं और बुनियादी ढांचे की कमी के बावजूद भगवान राम के भक्तों की धार्मिकता ने यह सुनिश्चित किया जिसकी वजह से अयोध्या उत्तर प्रदेश के धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से रुका हुआ है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने अब शहर की पर्यटन क्षमता को भुनाने और साथ ही इसका विकास करने का इरादा मजबूत कर लिया है।
शुरआत करते हुए, योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के तुरन्त बाद ही मार्च में रामजन्म भूमि मंदिर का दौरा किया था। वह 2002 के बाद ऐसा करने वाले पहले मुख्यमंत्री बने। योगी आदित्यनाथ ने न केवल राम जन्मभूमि स्थल पर प्रार्थना की बल्कि उन्होंने सरयू नदी तट पर भी पूजा की, और साथ ही उन्होंने सरयू नदी के घाटों को सुशोभित करने और विशाल सरयू महोत्सव का आयोजन करने का वादा भी किया। अब उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ अपने मंत्रियों के साथ दीपावली की शाम अयोध्या में 1,71,000 दीयों और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ विशाल दीपावली समारोह करेंगे। और सबसे ऊपर, राज्य सरकार ने सरयू नदी के किनारे पर भगवान राम प्रतिमा का निर्माण करने का निर्णय लिया है। हालांकि राम प्रतिमा का यह प्रस्ताव अभी केवल ड्राफ्ट हुआ है लेकिन इसके बाद भी कुछ उदारवादी और बुद्धिजीवियों में हलचल मच गई है। हमेशा की तरह मूर्ति बनाम बुनियादी ढांचे, मूर्ति बनाम शिक्षा, मूर्ति बनाम स्वास्थ्य जैसे सामान्य तर्कों का दौर शुरू हो गया है।
योगी सरकार का अयोध्या पर अतिरिक्त ध्यान देने का निर्णय 2 कारणों से पैदा होता है।
पहला तो स्पष्ट रुप से सरकार का सांस्कृतिक एजेंडा है जिसके तहत सरकार ने यूपी की सांस्कृतिक स्थलों को मजबूत करने और समाजवादी और बीएसपी शासन के द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है, जिन्होंने अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए हिंदू सांस्कृतिक स्थलों के साथ उदासीन रवैया अपनाया था। और दूसरी बात योगी सरकार एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में अयोध्या के विकास के आर्थिक पहलुओं पर विचार करती दिख रही है। अयोध्या पहले से ही राज्य का दूसरा सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है। उत्तर प्रदेश में 2019 में अर्धकुंभ मेला होना है जो बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों और भक्तों की मेजबानी करेगा। बुनियादी ढांचे और नए राम प्रतिमा जैसे नए पर्यटन केंद्र बनाने से अयोध्या तीर्थयात्रियों और भक्तों को आकर्षित करेगा, यह अधिक राजस्व के रूप में भी योगदान देगा। योगी सरकार ने यहां नैदानिक परिशुद्धता के साथ निष्पादित करने के लिए किया है इसमें संभावना है कि यह अपने निवेश को 2019 के पर्यटन सीजन के शुरू होने तक कवर कर लेगा। हालांकि जाहिर है कि इसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का एक तत्व है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं किया एक ठोस आर्थिक विचारों से भी जुड़ा हुआ है।
एक भव्य राम प्रतिमा तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में काम करेगी।
ना सिर्फ भव्य राम प्रतिमा, बल्कि राम कथा गैलरी और दिगंबर अखाड़ा में एक सभागार की भी योजना है। अन्य के साथ यह सारी योजनाएं योगी सरकार के पुराने गंदगी और उन्मूलित अयोध्या को बदल कर ‘नव्य अयोध्या’ के दृढ संकल्प को जोड़ते हैं जो सालों से भारतीय सांस्कृतिक दुर्बलता का प्रतीक है।