यह तो साफ़ है कि इस बार फिर से भाजपा गुजरात चुनाव में जीत दर्ज करेगी। देखने लायक दिलचस्प बात यह है कि क्या भाजपा, अमित शाह द्वारा निर्धारित 150 से अधिक सीटों का लक्ष्य प्राप्त कर पाएगी या नहीं।
भाजपा क्यों जीतेगी?
- औसत गुजराती भाजपा को वोट देते हैं, नरेंद्र मोदी के लिए वोट देते हैं, भारत के प्रधानमंत्री और गुजरात के बेटे को वोट देते हैं।
- शासन विरोधी संभावनाओं से बचने के लिए भाजपा मौजूदा विधायकों में से लगभग 50% विधायकों को बदल देगी।
- अन्य पिछड़ा वर्ग मजबूती से भाजपा के साथ है।
- वाघेला के कांग्रेस छोड़ने के बाद से कांग्रेस की परेशानियाँ बढ़ गई हैं।
- कांग्रेस ने सभी मौजूदा विधायकों को उनकी वफादारी के लिए टिकट दिए हैं।
बेशक, भाजपा ने यूपी चुनावों से बहुत सी बातें सीखीं है, जिसमें उन्होंने ज्यादा सीटें पाने के लिए, कुछ जाति आधारित छोटे दलों के साथ गठजोड़ किया था। इन दलों का कुछ सीटों पर भारी प्रभाव था और इन दलों से संबंधित जातियों के लोगों ने बीजेपी की पूरे राज्य में व्यापक सहायता की। परिणाम सब के सामने है।
गुजरात में पटेल समुदाय के लोग बीजेपी के मुख्य मतदाता समूहों में से एक हैं, पटेल आंदोलन के रूप में एक बड़ी बाधा का सामना करते हुए भाजपा अब कई ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देने पर विचार कर रही है। गुजरात में ओबीसी 35-40 प्रतिशत मत हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन उसी हिसाब से उनका सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं रहा है। दूसरी ओर, पटेल समुदाय केवल 13% वोट रखते हैं, लेकिन फिर भी राजनीति और सरकार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हैं। गुजरात में पटेलों का राजनैतिक और व्यापारिक आचरण गुजराती शैली का पर्याय है, लेकिन कुछ पटेल शिक्षा और सरकारी नौकरीयों में अपने कोटे के लिए मैदान में उतर आए। इसलिए उन्होंने खुद ओबीसी बनकर इस मुद्दे को हल करने का फैसला लिया। बीजेपी ने उनकी मांग के मुताबिक कार्य नहीं किया और इबीसी कोटा के माध्यम से पटेल समुदाय को समर्थन देने की पेशकश की, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।
अगर हम यह भी मान ले कि 70% पटेलों भाजपा का साथ छोड़ रहे हैं, तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे कांग्रेस को ही वोट देंगे।
ऐसे राज्य में जहां चुनाव मुख्यतः दो दलों के बीच होते हैं, वहाँ पटेल समुदाय असहाय स्थिति में फसा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने ओबीसी में उन्हें शामिल करने की उनकी मांग को खारिज कर दिया और इसके बजाय पटेल समुदाय के नेताओं के लिए तीन प्रस्तावों पर विचार-विमर्श करने की पेशकश की।
खैर, अब पटेलों ने कई प्रस्तावों को ठुकरा दिया हैं और, यह अनुमान लगाना वास्तव में मुश्किल है कि वे क्या चाहते हैं और उनकी आदर्श पसंद क्या होगी। इसके अलावा, जब सभी संकेत भाजपा के पक्ष में हैं, तो कांग्रेस का समर्थन करके पटेल समुदाय को क्या लाभ होगा?
खैर, पटेल समुदाय की व्यवसायिक दक्षता को देखते हुए, यह एक सवाल है जो निस्संदेह उनके नेताओं के दिमाग में होगा।
यहाँ तक कि अगर कांग्रेस ओबीसी श्रेणी में उन्हें शामिल करने की मांग को स्वीकार करती है, तो इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस और भाजपा के बीच वोट का अंतर, अन्य समुदायों के वोट ध्रुवीकृत होने के कारण, बीजेपी के पक्ष में बढ़ जायेगा। ऐसी स्थिति इस समुदाय को कहा ले जाएगी?
ऐसा लगता है कि, बीजेपी को खारिज करने और कांग्रेस का समर्थन करने का हार्दिक पटेल का दृढ़ फैसला केवल उनकी राजनैतिक ताकत को कम करने का कार्य करेगा, जिसका वे अभी तक आनंद उठा रहे हैं। वैसे भी, भाजपा में पटेल दावेदारों की संख्या कम होगी। अगर भाजपा बड़े अन्तर के बिना चुनाव में विजयी होती है, तो पार्टी स्वाभाविक रूप से यह ही मानेगी कि पटेलों ने पार्टी छोड़ दी है। अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के निर्वाचित प्रतिनिधि न केवल अपने समुदाय के हितों को आगे बढ़ाने का काम करेंगे बल्कि पटेल समुदाय के लोगों के हितों को सूची में सबसे नीचे हस्तांतरित कर सकते हैं। समय के साथ-साथ पटेल और भाजपा के बीच की खाई और अधिक बढ़ेगी, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग, भाजपा पार्टी के पक्ष में होगा। अब तक, अगर भाजपा गुजरात में जीतती रही है, तो भाजपा अगले चुनावों में भी हमेशा कि तरह गुजरात के लोगों की प्रिय पार्टी रहेगी। जैसा कि शंकरसिंह वाघेला ने कहा था कि भाजपा सबसे कमजोर स्थिति में थी और कांग्रेसियों ने ही इसे एक मजबूत पार्टी बनाया था।
पाटीदार आंदोलन के कुछ नेता कुछ कम समय के लिए इस महत्व और ताक़त का लाभ ज़रूर उठाएंगे लेकिन पटेल समुदाय लम्बी रेस में हार का ही स्वाद चखेगा। यदि पटेल किसी व्यवस्थित आंदोलन के बिना भाजपा को हराते तो भाजपा यह सोचकर पीछे हट जाती कि ये एक नियमित रूप से सत्ता विरोधी लहर थी। परन्तु अब हार हो या जीत का अंतर कम, ठीकरा पटेलों के सर ही फूटेगा। यदि पटेल समुदाय अड़ा रहा तो इसका अर्थ बस एक है कि गुजरात में पटेल और ओबीसी समुदाय दो सशक्त परन्तु पारस्परिक विरोधी वोटब्लॉक बन कर उबरेंगे, दुसरे शब्दों में गुजरात बनेगा जातिगत राजनीती का नया अखाड़ा।
हार्दिक पटेल के साथ आरक्षण की माँग करते हुए पटेलों ने अपनी शक्ति ज्यादा आंक ली, और उसका प्रदर्शन भी किया। ठीक उसी प्रकार जैसे उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमान समुदाय के लोग अपने आप को किंगमेकर समझते थे। आरक्षण कोटे में शामिल होने का भ्रम एक तुच्छ और अर्थहीन धारणा है, पटेलों की मौजूदा व्यापारिक शक्ति में उनकी राजनैतिक शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। केवल पटेल ही नहीं बल्कि किसी भी समुदाय को “विशिष्टता” का दावा करने से पहले आरक्षण या राजनैतिक दबाव की तलाश होती है, जो केवल उसी समय समाज से विमुख हो जाएगा।
आरक्षण, समुदायों के लिए केवल एक अस्थाई समाधान है। अंबेडकर ने केवल दस वर्षों के लिए आरक्षण की माँग की थी, जो राजनीतिज्ञों द्वारा दलित और अन्य वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने के लगातार आगे बढ़ाया गया। वास्तव में, पटेलों के लिए ईबीसी कोटे का विस्तार करने से उनको बहुत सहायता मिलेगी क्योंकि इससे उनके बीच के गरीबों को लाभ होगा। यदि उन्हें सामान्य आरक्षण मिला तो अमीर पटेल अपनी और उन्नति के लिए इसका दुरुपयोग कर सकते हैं और इस प्रकार समुदाय में असमानता तथा असंतोष की भावना को बढ़ावा मिल सकता है।
मैं सिर्फ यही चाहता हूँ कि पटेलों की प्रसिद्ध व्यवसायिक सोंच, कुछ आरक्षणलोलुप नेताओं पर भारी पड़े। केवल पटेल ही पटेलों को सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय बनने से बचा सकते हैं।