छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक समारोह के दौरान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, महंत योगी आदित्यनाथ ने धर्मनिरपेक्षता की महानगाथा का खंडन किया, जिसे आजादी के बाद से हमारे देश में सच्चे उपदेश के रूप में प्रचारित किया गया है। भगवाधारी धर्माचार्य ने इस विषय पर कहा, “मुझे विश्वास है कि स्वतंत्रता के बाद से ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द सबसे बड़ा झूठ है। जिन लोगों ने इस शब्द का इस्तेमाल किया है, उन्हें देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। कोई भी प्रणाली धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकती है।“ उन्होंने अपनी राय दैनिक जागरण में हिन्दी के अपने एक स्तम्भ में जाहिर की। वास्तव में, लंबे समय के बाद हमारे पास एक ऐसा राजनेता है, जो इस समय हमारे देश में चल रही इस उग्र बहस के बारे में प्रबल स्पष्टता के साथ बात करता है तथा विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने का साहस रखता है।
आजादी के बाद हिन्दू धर्म को भारत का आधिकारिक राज्य धर्म घोषित नहीं किया गया था, यह एक बड़ा अन्याय था जो हजारों वर्षों से चली आ रही हिंदू सभ्यता के खिलाफ था। राष्ट्र का विभाजन आंतरिक-धार्मिक संघर्ष का नतीजा था, यह ‘धर्मनिरपेक्षता’ और सरकार के धार्मिक रूपों के आधार पर नहीं था और जब विश्व के सबसे शांतिप्रिय समुदाय को राष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा प्रदान किया गया वहीं हिंदुओं को अपने ही देश से वंचित किया गया था।
उसी कार्यक्रम में, योगी आदित्यनाथ ने एक और चीज कही जो इतनी स्पष्ट है कि इसे भी कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, परंतु हम ऐसी परिस्थितियों से भी गुजर रहे हैं जब एक स्पष्ट सच्चाई को नफरत युक्त भाषण और वक्ता की धर्मांधता के रूप में चिह्नित किया जाता है।
गोरखपुर के योद्धा पुजारी ने कहा, “कोई भी तंत्र धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता, राजनीतिक व्यवस्था पंथ-तटस्थ हो सकती है”। लेकिन अगर कोई कह रहा है कि सरकार को एक तरह से प्रार्थना चलाया जाए, तो यह संभव नहीं है। धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी अवधारणा है जो विफलता के लिए बनी है क्योंकि राज्य के लिए एक विशेष विश्वसनीय समूह का समर्थन नहीं करना असंभव है।
योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि “इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना राजद्रोह के अपराध से कम नहीं है।” बहुत लंबे समय तक, हिन्दू भावनाएं मनोरंजन उद्योग और अभिजात्य वर्ग के लिए मजाक का विषय रही हैं।
फिल्म इण्डस्ट्री द्वारा समय-समय पर तर्कहीन तथ्यों से हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुँचाई गयी है। उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल हिंदुओं की सहायता और संस्कृति को अपशब्द कहने तरक ही सीमित है और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिसको कि वे अपनी ताकत समझते हैं, तब खतम हो जाती है जब हिंदुओं के अलावा उन्हें किसी और वर्ग के बारे में बोलना होता है क्योंकि उन्हें डर होता है कि उनको या उनके चाहने वालों को इससे खतरा हो सकता है।
पद्मावती से संबंधित लोगों को धमकियां क्यों मिल रही हैं, इसका कारण यह है कि हिंदुओं ने महसूस किया है कि इस तरह के व्यवहार को अतीत में उदारता से पुरस्कृत किया गया है और उन्होंने यह सोचा है कि जब नम्रता से उनकी बात नहीं बन रही है, तो शायद उन्हें ऐसी रणनीतियों को अपनाना चाहिए जिनके सफल होने के आसार हैं।
दैनिक जागरण (हिंदी में) के अपने कॉलम में योगी आदित्यनाथ ने सनातन धर्म की अनन्त प्रकृति को स्पष्ट किया और कहा कि धर्म और राजनीति अनिवार्य रूप से अविभाज्य हैं। धर्म और राजनीति पूरक हैं, एक दुसरे के विरोधाभासी बल नहीं हैं, उन्होंने कहा। धर्म और राजनीति के लक्ष्यों को एक दूसरे के पूरक बनने की जरूरत है और जब वे एक-दूसरे के पूरक नहीं होते हैं, तो जब चीजें एक गलत मोड़ लेती हैं जो करीब सालो पहले डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था, दोहराते हुए योगी आदित्यनाथ ने लिखा, “धर्म दीर्घकालिक राजनीति है और राजनीति अल्प अवधि है।”
गोरखपुर मठ के महंत ने फिर से अपने कॉलम में कहा कि सहिष्णुता, करुणा और सम्मान जैसे गुण उन लोगों के लिए आरक्षित हैं, जो इसके योग्य हैं और उन लोगों के लिए जो शालीनता के बुनियादी मानदंडों को मानने से मना करते हैं और किसी अन्य व्यक्ति की गरिमा का सम्मान नहीं करते हैं, उन्हें उस भाषा में जवाब देना चाहिए जो वे बोलते हैं। ‘दुर्जन’ सामाजिक विकास के रास्ते में रुकावट हैं और देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है और ऐसे लोगों को कभी भी शांति से जीता नहीं जा सकता है और उन्हें अपनी बातें समझाना, किसी भी माध्यम से, अनिवार्य है। योगी आदित्यनाथ ने श्री राम के बारे में बात की जो न्याय के लिए युद्ध में गए, हालांकि वह कभी युद्ध नहीं चाहते थे , उन्होंने श्रीकृष्ण के बारे में बात की, जिन्होंने अर्जुन को कौरवों के खिलाफ हथियार उठाने की इजाजत दी थी, भले ही श्री कृष्ण स्वयं कभी युद्ध नहीं चाहते थे। योगी जी कहते हैं कि समाज का उद्देश्य ‘पुरुषार्थी’ बनने का होना चाहिए, ना कि कायर बनने का। और एक थप्पड़ खाने के बाद अपना दूसरा गाल पेश करना कायरता है।
अपने शब्दों से, यह काफी स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ श्री कृष्ण और श्री राम के जीवन के सिद्धांतों का पालन करते हैं, मोहनदास करमचंद गांधी के शब्दों का नहीं।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुओं के खिलाफ किये गए हर अन्याय जिसे कि एक आम राजनेता मानने तक से इनकार कर देता है, उसे योगी आदित्यनाथ न सिर्फ मानते है बल्कि उसकी खिलाफ बोलते और लिखते भी हैं। योगी आदित्यनाथ का कद भाजपा के राष्ट्रीय नेता के रूप में लगाता बढ़ रहा है, ऐसे में ये उम्मीद की जा सकती है कि वे हिंदू धर्म के खिलाफ एक षड्यंत्र जिसे भारत में धर्मनिरपेक्षता कि संज्ञा मिली है उसके धूर्त मिथक का खुलासा करते रहेंगे।