रोहित सरदाना पर किया जाने वाला हर हमला, आपके वजूद पर प्रहार है

रोहित सरदाना दुर्गा फ़िल्म

भारत में पिछले कुछ समय से अभिव्यक्ति की आजादी पर लगातार बात हो रही। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर तथाकथित बुद्धिजीवी समय समय पर विवाद उत्पन्न कर देश में दिन प्रतिदिन नया माहौल बनाने में लगे हुए हैं। इनकी अपनी लॉबी बरसों से बनी हुई है, लेकिन आज सत्ता से कमजोर होती पकड़ पर यह खुलकर सामने आ चुके हैं। बरसों से देश की जनता के बीच अपना नैरेटिव सेट करने वाले, अपना विचार थोपने वाले, अपने प्रोपगंडा को आम जनों के बीच वास्तविक बनाकर स्थापित करने वाले लोग आज सोशल मीडिया के जमाने में बाहर आती अपनी असलियत से कुछ परेशान से हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कभी वो भारत के टुकड़े करने वाले नारों का समर्थन करने मार्च निकालने लग जाते हैं, कभी हिन्दू देवी देवताओं की नग्न पेंटिंग्स बनाने वाले के लिए मुहीम चलाते हैं, अपनी देश की सेना के जवानों को बलात्कारी कहते हैं, देश में अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं, राष्ट्रगान-राष्ट्रगीत का अपमान करने में गर्व महसूस करते हैं तो कभी प्रोपगंडा के नए नए स्तर पर जाकर हिन्दू धर्म और भारत भूमि को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं, लेकिन एक ख़ास समुदाय के प्रति इनकी सारी अभिव्यक्ति की आजादी की ज्वाला ठंडी पड़ जाती है।

हाल ही का मामला एक फ़िल्म और एक टीवी पत्रकार एंकर से जुड़ा हुआ है। दक्षिण भारत के एक फ़िल्म निर्देशक सनल कुमार ससिधरन ने एक फ़िल्म बनाई जिसका नाम उन्होंने एस. दुर्गा (हम इस फ़िल्म का नाम नहीं लेंगे इसे एस. दुर्गा के नाम से ही लिखा जाएगा) रखा। अब तक तो आप जान ही चुके हैं कि इस एस. दुर्गा में एस का तात्पर्य किस शब्द से है और यह तो पूरी दुनिया जानती है कि “दुर्गा” हिंदुओं के लिए परम आराध्य देवी है। अब विचार कीजिए कि क्या फ़िल्म बनाने वाले व्यक्ति को नहीं पता कि दुर्गा हिंदुओं के लिए क्या है ? यह तो मुमकिन नहीं कि उन्हें नहीं पता हो, लेकिन फिर भी उन्होंने ऐसा विवादित नाम क्यों रखा ? दरसअल इन सब के पीछे वही मानसिकता है जिसे भारत पिछले 70 सालों से झेल रहा है, हिंदुओं और हिंदुओं के आराध्यों का तिरस्कार कर खुद को तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगो के बीच शामिल करने की। हालांकि भारत सरकार ने गोवा में 48वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव से इस फ़िल्म को हटा दिया। बढ़ते विवाद के बाद रचनात्मक-कलात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश का एक वर्ग फिर से इकट्ठा होने लगा।

फ़िल्म का नाम ही ऐसा रखा गया था जिस पर विवाद होना लाजिमी था, और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उपजे इस विवाद पर सबसे असरदार प्रतिक्रिया टीवी पत्रकार रोहित सरदाना की तरफ से आई। रोहित सरदाना ने ट्वीट कर लिखा कि “अभिव्यक्ति की आज़ादी फिल्मों के नाम सेक्सी दुर्गा, सेक्सी राधा रखने में ही है क्या ? क्या अपने कभी सेक्सी फ़ातिमा, सेक्सी आएशा या सेक्सी मेरी जैसे नाम सुने हैं फिल्मों के ?”

अब इन पंक्तियों को पढ़िए! क्या गलत लिखा है रोहित सरदाना ने ? जब से एस. दुर्गा फ़िल्म पर विवाद बढ़ा उसके बाद से ही लिबरल समुदाय एक होकर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहे थे, हमने तो पहले भी मान लिया था तो अब भी मान लिया।

लेकिन सेक्सी फ़ातिमा और सेक्सी आएशा से इतनी दिक्कत कैसी ? दरअसल रोहित सरदाना के इस ट्वीट के बाद से ही उनके खिलाफ इस्लाम के धर्मान्धों ने अपने धर्म में खतरा देखकर हुड़दंग शुरू कर दिया है। रोहित सरदाना के खिलाफ कई थानों में धार्मिक भावना भड़काने के लिए एफआईआर दर्ज कराये गए, उन्हें लगातार फोन पर अनजाने नंबरों से धमकियां दी जा रही है, उनको और उनके परिवार को मारने की बातें की जा रही, रोहित सरदाना जिस मीडिया संस्थान से जुड़े हैं उस संस्थान (टीवी टुडे इंडिया) के बैंगलुरु कार्यालय में भी इस्लामी गुंडों ने तोड़फोड़ की, एक मौलाना ने तो रोहित सरदाना को मारने पर 1 करोड़ का इनाम भी रख दिया और इन सब के बाद भी अभिव्यक्ति की आजादी बचाने वाला “गिरोह” शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में सर गड़ा कर छुप गया है।

अभी कुछ दिनों पूर्व हिन्दू विरोधी कथित पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुयी थी। हत्या के चंद घंटों के अंदर ही आजादी गैंग और स्वघोषित बुद्धिजीवी समुदाय ने पुलिस से पहले हत्या करने वालों का पता लगा लिया था। उनके मुताबिक गौरी लंकेश की हत्या “हिन्दू आतंकियों” ने की थी और गौरी लंकेश की हत्या के साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी की भी हत्या कर दी गयी थी, लेकिन रोहित सरदाना और उनके परिवार को मिल रही जान से मारने की धमकी क्या अभिव्यक्ति की आजादी को धमकी नहीं है ? और उन्हें अब तक धमकी देने वालों के धर्म का भी नही पता चला है। क्या रोहित सरदाना पत्रकार समूह में नहीं है ? गौरी लंकेश की मौत के बाद जगह जगह पत्रकार समूह ने विरोध दर्ज कराया था, एडिटर्स गिल्ड ने विरोध सभा का आयोजन किया था। यही नहीं, कुछ दिनों पूर्व छत्तीसगढ़ में सीडी कांड में फँसे पत्रकार विनोद वर्मा के समर्थन में भी पत्रकार गिरोह और एडिटर्स गिल्ड आगे आया था लेकिन आज जब रोहित सरदाना सरीखे वरिष्ठ पत्रकार को धमकियाँ दी जा रही है, एक ट्वीट पर पुलिस एफआईआर की जा रही है तो जनता यह जानना चाहती है कि एडिटर्स गिल्ड से लेकर रुदाली करने वाले पत्रकारों का समूह कहाँ छुपा बैठा है ? क्यों रोहित सरदाना के समर्थन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाने के लिए कोई पत्रकार मार्च नहीं निकाल रहा है ? आखिर वो पूरी जमात अब चुप्पी साध कर क्यों बैठी है जब देश के एक प्रतिष्ठित पत्रकार को गालियां दी जा रही है ? सिर्फ इसीलिए क्योंकि रोहित सरदाना सच बोलने की हिम्मत रखते हैं या उन आज़ादी गैंग की लगातार पोल खोल रहे हैं जिन्होंने बरसों तक देश को गुमराह किया है ?

अभी कुछ दिनों पहले एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय के घर में फर्जी कंपनियों द्वारा करोड़ों के धोखाधड़ी के आरोप में छापा पड़ा तथा जिसके बाद इसे भी प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया गया था जबकि मीडिया संस्थान से जुड़े किसी भी कार्यालय में कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। इसके बाद देश के एक और बड़े पत्रकार ने प्रधानमंत्री मोदी को सोशल मीडिया में हो रहे दुर्व्यवहार और अपशब्दों के इस्तेमाल को देखते हुए एक ओपन लेटर लिखा था लेकिन इस बार सीधे सीधे पत्रकार को धमकी दी जा रही है, सोशल मीडिया में तरह तरह के भद्दे कॉमेंट किये जा रहे हैं और इन सब के बाद भी प्रेस की स्वतंत्रता को बचाने या रोहित सरदाना को सोशल मीडिया में दी जा रही भद्दी गालियों के विरोध में कहीं कोई ओपन लेटर नहीं दिख रहा है।

आम जनता अब यह सब ना सिर्फ देख रही है बल्कि समझ भी रही है कि पत्रकारों का एक विशेष समूह किस तरह अपनी विचारधारा को बचाने के चक्कर में दिन ब दिन अभिव्यक्ति की “छद्म” आजादी को बचाने लिए प्रोपगंडा करता है और हर बार उसकी पोल रोहित सरदाना जैसा कोई व्यक्ति आकर खोल देता है। इस पुरे प्रकरण ने एक बार फिर पत्रकारों और छद्म बुद्धिजीवियों का असली चेहरा सामने ला दिया है।

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