गुरुवार को हिमाचल प्रदेश में करीब 74 फीसद वोटिंग हुई। चुनाव आयोग के अनुसार चुनाव बेहद शांति पूर्ण ढंग से पूरा हुआ। हालांकि यह आंकड़ा शाम पांच बजे तक है। प्रदेश में पहली बार सभी सीटों पर वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रोल (वीवीपैट) मशीनों का उपयोग किया गया। सुचारू मतदान के लिए प्रदेश भर में 7525 मतदान केंद्र बनाए गए थे। मतों की गिनती गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ ही 18 दिसंबर को होगी।
नवीनतम जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, भाजपा के लिए पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कम से कम ६० से ७० प्रतिशत सीटें जीतने की उम्मीद जताई जा रही है। चूंकि भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करने के साथ-साथ, अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पीके धूमल का नाम भी स्पष्ट कर दिया है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हिमाचल प्रदेश के लोग भी अब मोदी लहर के मार्ग पर चलने के लिए तैयार हैं।
यहां कुछ कारण दिए गए हैं कि क्यों मोदी के नाम की सूनामी सम्पूर्ण हिमाचल को सफलतापूर्वक अपनी लहरों में समेट लेगी, क्यों भाजपा को हिमाचल से एक बहुत बड़ी जीत दर्ज कराने की उम्मीद है, और क्यों हिमाचल में कांग्रेस पार्टी का विनाश हो जाएगा।
हिमाचल प्रदेश में जब भी सत्ता विरोधी लहर की बात आती है तो हमें इसका एक अनोखा इतिहास देखने को मिलता है। १९७१ में, जब हिमाचल प्रदेश, भारत का १८ वाँ राज्य बना, उसके बाद से ही इस राज्य में हमेशा से दो पार्टियाँ कांग्रेस और भाजपा ही देखने को मिली। १९८५ के बाद से हिमाचल प्रदेश में एक अनोखी प्रवृत्ति देखने को मिली, जिसके परिणामस्वरुप कोई भी सरकार लगातार चुनाव नहीं जीत पाई और १९७१ में, राज्य की स्थापना के बाद, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल (८० के दशक में ), वर्तमान के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को छोड़कर लगातार दो बार मुख्यमंत्री के पद पर कार्यरत रहे। भले ही हिमाचल प्रदेश दो ही पार्टियाँ भाजपा या कांग्रेस सत्ता में हैं, इसके बावजूद भी इस राज्य में शासन-विरोधी भावनाएं निरन्तर विद्यमान रहती हैं। हिमाचल प्रदेश में किसी भी सरकार के लिए फिर से चुनाव जीतना, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों को लांघने के समान दुर्गम है। इस परिप्रेक्ष्य से यह पता चलता है कि वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भाजपा सरकार को लगभग एक निश्चित विजेता मान लिया गया है, हालांकि, यह मामला अभी भी पूरी तरह से सुलझा नहीं है कि भाजपा इस चुनाव में कितनी सीटों से जीत रही है।
भाजपा की इस संभावित बड़ी जीत के कारण अगले कुछ कारण हैं:
८३ वर्षीय राजा वीरभद्र सिंह, हिमाचल प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान अपने नाम कर चुके हैं। हालांकि, वीरभद्र सिंह ने २०१३ के चुनाव के दौरान आखिरी बार चुनाव लड़ने और चुनाव में मदद करने के लिए हिमाचल की जनता से अनुरोध किया था, लेकिन हिमाचल की जनता को यह यकीन है कि वीरभद्र सिंह निश्चित रूप से एक बार फिर चुनाव के मैदान में उतरेगें। वीरभद्र सिंह अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को अपनी यह विरासत देने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके पुत्र को अभी मुख्यमंत्री पद के कार्यभार को संभालने के लिए और अधिक समय लेने की जरूरत है। क्या लोग हिमाचल प्रदेश में उन्हें फिर से लाने के लिए इच्छुक हैं? जवाब है नहीं! वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश में बढते भ्रष्टाचार के आरोपों, कोटकाई बलात्कार और सामान्य शासन-विरोधी असंतोष भावनाओं से पहले ही इस राज्य वीरभद्र के विरुद्ध विरोधी भावनाएं पैदा हो गई हैं।
२०१४ के आम चुनावों से आधिकारिक तौर पर वीरभद्र विरोधी की भावनाओं की शुरूआत हुईं, जब राजा वीरभद्र सिंह की पत्नी महारानी प्रतिभा सिंह, पूर्व हिमाचल प्रदेश भाजपा सचिव राम स्वरूप शर्मा से मंडी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में ४० हजार वोटों से हार गई। जबकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए इस सीट को हमेशा से एक “सुरक्षित सीट” माना जाता था और इसके लिए हिमाचल के लोगों को वीरभद्र सिहं के प्रति सम्मान और वफादारी की भावना रखने के लिए श्रेय दिया जाता है। हालांकि, मंडी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र) के लोगों ने यह संकेत दिया कि अब राजा वीरभद्र सिंह इस पद पर अधिक समय तक कार्यरत नहीं रह सकेगें और हिमाचल प्रदेश के लोगों ने अब अपने स्वयं के जनमत से राम स्वरूप शर्मा और नरेंद्र मोदी के पक्ष में जाने का फैसला लिया है।
सीबीआई ने राजा वीरभद्र सिंह और उसके परिवार के खिलाफ, आय के ज्ञात स्रोतों से ६.१ करोड़ रूपये से अधिक संपत्ति के मालिक होने के सम्बन्ध में एक मामला दर्ज किया। जिसने पूरे देश में राजा वीरभद्र सिंह की छवि को खराब करने का कार्य किया। वीरभद्र सिंह से सम्बन्धित मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जिसने वीरभद्र विरोधी आंदोलन को और बढ़ावा दिया है।
इसके साथ-साथ वीरभद्र के अपराधों की सूची में कोटकाई के उनके पूर्व निर्वाचन क्षेत्र में हिंसा के एक जघन्य अपराध भी नाम शामिल है। इस मामले कि अनदेखी करने के लिए सरकार को सीधे सीधे ज़िम्मेदार माना गया। सरकार ने अपनी ओर से इस मामले को गलत दिशा प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास किया जैसे मुख्यमंत्री के फेसबुक पेज पर झूठी संदिग्धों की तस्वीरें पोस्ट किये गए और साथ ही साथ देर से प्रतिक्रिया दी गयी, जैसे पुलिस द्वारा संदिग्धों को पकड़ने में विफल रहने के बहुत बाद सीबीआई को इसकी जाँच सौंप दी गई और यहां तक कि एक संदिग्ध ने पूलिस हिरासत में ही आत्महत्या कर ली)। कानून, सरकार के लिए मात्र एक तिनके के समान है, लेकिन यही कानून आम लोगों के लिए निश्चित रूप बहुत महत्व रखता है।
२०१४ से मोदी के लिए वोटिंग पैटर्न (मतदान स्वरुप)
जैसा कि पहले बताया गया है कि वीरभद्र की पत्नी महारानी प्रतिभा सिंह, मंडी निर्वाचन क्षेत्र में राम स्वरूप से चुनाव हार गई थी, जिसे हिमाचल राज्य में कांग्रेस के लिए एक “सुरक्षित सीट” माना जाता था। २०१४ के चुनाव के दौरान, भाजपा ने २-३ सीटें जीतने का अनुमान लगाया था, लेकिन भाजपा सभी ४ सीटों को अपने कब्ज़े में कर लिया। हिमाचल में पहली बार ऐसा हुआ कि जब हिमाचल के लोगों ने भाजपा के लिए इस जोश के साथ मतदान करने का फैसला किया, जिसके परिणामस्वरुप हिमाचल में कांग्रेस को मात्र एक सीट ही हासिल हुई। २०१४ के हिमाचल प्रदेश के चुनावों का परिणाम भाजपा के पक्ष में आना संभव था, क्योंकि कांग्रेस के कई परंपरागत मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी का साथ देने के लिए, अपनी कांग्रेस पार्टी को खाई में जाने दिया
हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत नया भाजपा आंदोलन
हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भाजपा अधिक से अधिक सीटे क्यों जीत रही है, इसका कारण भाजपा के भीतर हुए महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं। अमित शाह के घोषणा करने के बाद अटकलों को विराम मिला और ये तय हुआ कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ही हिमाचल प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री बनाएं जायेंगे, अब हिमाचल में भाजपा का भविष्य भी कुछ अलग होगा। इससे पहले भी कुछ मजबूत अफवाहों ने संकेत दिया था कि आरएसएस प्रचारक अजय जमवाल भाजपा के अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं। हालांकि पूरे हिमाचल राज्य में यह व्यापक रूप से जाना जाता है कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा में सत्ता तीन राज्य नेताओं के हाथों में है, जिसमें दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल, कांगड़ा के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी शामिल हैं। शान्ता कुमार सेवानिवृत्त हो चूके हैं, जिसके कारण वे इस पद का कार्यभार अब नहीं संभाल सकते और अब केवल एक अन्य शक्तिशाली नेता जेपी नड्डा बचे, जिन्हें कमान नहीं सौंपी गयी। शक्ति संघर्ष से बचने के लिए, बीजेपी उच्च नेतृत्व ने अपनी बुद्धिमानी से पीके धूमल को यह पद दिया, जोकि एक प्रभावी नेता हैं और उन्होनें हिमाचल प्रदेश में भाजपा को बहुत सम्मान दिलाया हैं (जैसा कि नीचे लिस्ट में दिए लेख में विस्तार से बताया गया है)।
निष्कर्ष
भाजपा, राज्य को जो उम्मीदें दे रही है, वे बहुत अनूठे है और कांग्रेस की पेशकश से बिलकुल अलग है। राज्य के इतिहास का विश्लेषण करते हुए यह देखना बहुत आसान है कि भाजपा फिर से सत्ता में आएगी। हालांकि अगला प्रश्न यह है कि क्या भाजपा की एक बहुत बड़ी जीत होगी? जनमत सर्वेक्षणों और अन्य सर्वे द्वारा दिये गये आंकड़ो से तो यही लगता है कि हिमाचल के लोग प्रधान मंत्री मोदी के शब्दों आत्मसात करने में लग गए, जब उन्होंने कहा कि “कांग्रेस दीमक की तरह है, उन्हें मिटा दें”।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि यह एक तरफ़ा लड़ाई है। हिमाचल की स्थिति बहुत जल्द भगवा होने जा रही है। मैं ६८ सीट विधानसभा में से ५२-५५ सीट पर शर्त लगा सकता हूं।
References:
https://tfipost.com/2017/09/gudiya-rape-murder-himachalpradesh-01/
https://tfipost.com/2017/10/ajay-jamwal-cm-himachalpradesh-01/